Monday, 26 April 2021
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विष्णु शर्मा पंचतंत्र के रचयिता-हर्ष नारायण दास
विष्णु शर्मा पंचतंत्र के रचयिता
अमरशक्ति दक्षिण भारत के माहिलारोप्य नामक राज्य के राजा थे। उनके तीन लड़के थे- बहु शक्ति, उग्रशक्ति और अनन्त शक्ति। ये तीनों लड़के महामूर्ख, नटखट और उपद्रवी थे। पढ़ने में इन तीनों में से किसी की भी रुचि नहीं थी। अपने पुत्रों के इन अवगुणों को देखकर राजा अमरशक्ति बहुत दुखी और चिन्तित रहा करते थे। एक बार राजा अमरशक्ति ने भरे दरबार में अपनी यह चिन्ता प्रकट की। राजा की बात सुनकर सभा में सन्नाटा छा गया। कोई भी राजकुमारों को योग्य बनाने के लिए आगे बढ़कर नहीं आया परन्तु उसी सभा में बैठे विष्णु शर्मा ने राजा से कहा कि "आप इन राजकुमारों को मुझे सौंप दीजिए, मैं छह महीने के भीतर ही इन्हें राजनीति के सभी गुर सिखा दूँगा। राजा अमरशक्ति ने पण्डित विष्णु शर्मा की बात मान ली और उन्हें तीनों राजकुमारों को सौंप दिया। विष्णु शर्मा उन तीनों राजकुमारों को अपने घर ले गए और उन्हें मनोहर कहानियाँ सुनाने लगे। उन्हीं कहानियों का संग्रह बाद में "पंचतन्त्र" के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
पण्डित विष्णु शर्मा की ये कहानियाँ रोचक और शिक्षाप्रद थीं। इन कहानियों को सुनकर ही तीनों राजकुमार पूर्ण राजनीतिज्ञ बनकर अपने राजमहल में लौटे। "पंचतंत्र'' पण्डित विष्णुशर्मा द्वारा रचित एकमात्र ग्रन्थ है जिसमें मित्रभेद, मित्रलाभ, कौआ और उल्लू, लब्ध का नाश तथा अपरीक्षित काम शीर्षक से पाँच विषयों की चर्चा की गई है। इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि हर भाग की जो पहली कथा है, वही उस भाग की मुख्य कथा भी है। उस कथा के अंतर्गत उपकथाएं होती हैं परंतु पहली कथा और उनकी उपकथाओं का अंत में निचोड़ यही निकलता है कि पहली कथा का अंत कैसे हुआ?
पंचतंत्र की ये कथाएं केवल मन बहलाव की ही कथाएँ नहीं हैं बल्कि उन कथाओं में नीति के मूल सिद्धांतों के रहस्य भी छिपे हुए हैं। प्रत्येक कहानी नीति के किसी अंग का प्रतिपादन करती है। इस ग्रंथ में जो कहानियाँ हैं, उनमें मनु, शुक्राचार्य और चाणक्य के राजनीति संबंधी वाक्यों का निचोड़ रोचक और सरल रूप में दिया गया है। इन गूढ़ विषयों की प्रस्तुति इतनी सरलता से की गई है कि मोटी से मोटी बुद्धि वाले भी इसे आसानी से समझ सकते हैं। विष्णु शर्मा की कथाएँ संसार की सभी कथाओं से प्राचीन और सुन्दर हैं जो बच्चों के अपरिपक्व मानस पर अपना अधिकार जमाकर उन्हें मानव बनाने में सहायता करती है।
पंचतंत्र के प्रथम भाग में पण्डित विष्णु शर्मा ने राजकुमारों को समझाने के लिए "मित्रभेद" का प्रकरण दिया है। संजीवक नामक बैल एवं पिंगलक नामक शेर की कहानी के माध्यम से बताया गया है कि किस प्रकार अन्य लोग मित्रता में फूट डालने की कोशिश करते हैं परन्तु अगर दोनों ही मित्र कान के कच्चे न बनकर दोस्ती पर विश्वास रखते हैं तो सभी फूट डालने वालों की योजना खटाई में पड़ जाती है। इन कथाओं और उपकथाओं के अधिकतर पात्र या तो जानवर हैं या फिर पक्षी लेकिन इन जानवरों और पक्षियों की कथाएं इतनी रोचक और शिक्षाप्रद है कि दो हजार वर्ष बाद भी हम उन्हें बड़े चाव से पढ़ते हैं। कहानियां प्राचीन होने के बावजूद नई सी प्रतीत होती है। उनकी यह नवीनता देश और काल की सीमा से परे है। इन कहानियों में इतनी रोचकता है कि "पंचतंत्र'' की एक कहानी पढ़ते ही उसके अंत तक की सभी कहानियों को पढ़ने की जिज्ञासा जाग उठती है। पंचतंत्र की कहानियां रोचक होने के साथ-साथ शिक्षाप्रद भी हैं। समाज में कैसे रहना चाहिये, दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिये, बड़ो का सम्मान कैसे किया जाना चाहिये। आलस्य को त्यागकर किस प्रकार लक्ष्य को पाया जा सकता है। इनमें अनेक ऐसी कहानियाँ दी गई हैं जिनके पढ़ने से व्यक्ति का निर्माण तो होता ही है साथ ही जीवन के अनेक प्रकार के रहस्यों से भी साक्षात्कार होता है जिससे बालक का संस्कार और विचार प्रगाढ़ होने लगता है।
पंचतंत्र का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में भी हुआ है। विश्व की कोई ऐसी पुस्तक नहीं है जिसका अनुवाद पंचतन्त्र पुस्तक के समान हुआ हो। विश्व के कोने-कोने में छा जानेवाली "पंचतंत्र'' रूपी जादुई पुस्तक में चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व निर्माण, राष्ट्रनिर्माण आदि अनेक ऐसी कहानियाँ हैं जो उभरते हुए नौजवानों, नौनिहालों के मस्तिष्क पर सहज ही अपना प्रभाव डाल देती है और बच्चों को अपने दायित्व का आभास करा डालती है। भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार बाल दिवस के अवसर पर बच्चों को सम्बोधित करते हुए कहा था कि "राष्ट्र के निर्माण में बच्चों का बहुत बड़ा योगदान होता है"। आज के बच्चे ही कल के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी होंगे जिनके हाथ में भारत की बागडोर होगी। चाणक्य की तरह बुद्धिमत्तापूर्ण शासन तभी किया जा सकता है जब प्रारम्भ से ही चारित्रिक शिक्षा पर बल दिया जाय। "पंचतंत्र'' के समान विश्वविख्यात कहानियों को पढ़कर ही बच्चों का चरित्र निखर सकता है। आज के बच्चों को "कॉमिक्स" के जालों से निकलकर "पंचतन्त्र" जैसी कहानियों का अध्ययन अवश्य ही करना चाहिये ताकि सम्पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण हो सके।
''पंचतंत्र" संसार को भारत की अमर देन है। इसकी कथाएँ देश और काल से परे हैं। इसकी कहानियां जितनी 300 ई० में उद्देश्य पूर्ण थी उतनी ही 2021 ई० में भी है और शायद 3000ई० में भी रहेगी। वस्तुतः पंचतंत्र के रचयिता पण्डित विष्णुशर्मा न सिर्फ अमरशक्ति के तीनों लड़कों के हितार्थ "पंचतन्त्र की रचना किये बल्कि संसार के अरबों बालकों के हितार्थ "पंचतन्त्र'' की रचना करके आज भी बच्चों के मानस पटल पर विराजित हैं। पंचतंत्र के रचयिता को कोटिशः नमन। आशा करता हूँ कि देश के अन्य बच्चे भी पंचतंत्र कथा को पढ़ेंगे।
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