प्रकृति की ओर चलें-राजीव नयन कुमार - Teachers of Bihar

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Thursday 13 May 2021

प्रकृति की ओर चलें-राजीव नयन कुमार

प्रकृति की ओर चलें

          आज मानव जीवन गहरे संकट में है। कोरोना पूरे विश्व में अपना कोहराम मचा रखा है। चारो तरफ भागदौड़, आपाधापी एवं मौत का तांडव चल रहा है। सभी अपने-अपने घर में दुबके हुए है। ऑक्सीजन के बिना लोग मर रहे हैं। आखिर ऐसा क्यों ? बहुत ही गहरे प्रश्न है। हमे मिलकर सोचना होगा। 
          प्रकृति ने हमें वो सब कुछ दिया है, जिसकी हमें जरूरत है। हवा, पानी, फल, फूल, लकड़ी जैसे ना जाने कितने अनमोल वस्तु प्रकृति ने हमें दिया है। लेकिन हमसब इसका सदुपयोग नहीं बल्कि दुरुपयोग करने लगे हैं। जब बर्दाश्त से बाहर हो जाती है तब प्रकृति भी अपना रौद्र रूप दिखाती है।आज हम  सभी प्रकृति से दूर होते चले गए। जंगलों को हमने नष्ट कर दिया। पहाड़ों को हमने तोड़ डाला। कंक्रीट रूपी इमारतों का जंगल खड़ा कर दिया। मानव को गुरुर हो गया, कि हम सर्वश्रेष्ठ है; हम ही भाग्यविधाता है; हम जो चाहे वो करेंगे। यहां तक कि मानव अपने स्वाभाविक प्रकृति को भी खोता चला गया।
          हमारे पूर्वज प्रकृति के साथ-साथ रहकर ही मानव सभ्यता को बचाकर यहां तक लाए थे। लेकिन हमसब अपने पूर्वजों से भी कुछ नहीं सीख पाए। बल्कि उन्हें पुरातन कहकर नकार दिए। उनके दिखाए रास्तों को छोड़कर हम विशुद्ध रूप से नए रास्तों को अपनाने लगे। प्रकृति से ऊपर विज्ञान को मानने लगे। जबकि विज्ञान को प्रकृति के साथ-साथ चलना चाहिए। हमारे पूर्वज  प्रकृति के साथ चलते थे। वे पीपल को पूजते थे। उन्हें इसके महत्व के बारे में पता था। वे जानते थे कि यही हमारे जीवन का आधार है। एक-एक सांस के लिए ये वृक्ष महत्वपूर्ण है। तभी तो इस वृक्ष को वे शुभ और अशुभ दोनों में इसके महत्व को स्थापित किए थे। शुभ कार्य में पीपल के वृक्षों में धागा बांधते थे, तो अशुभ कार्यों में घट टांगते थे। ये कहीं ना कहीं इस वृक्ष को बचाकर रखने के लिए ऐसा करते थे। आज विज्ञान ने भी सिद्ध कर दिया कि पीपल चौबीस घंटे ऑक्सीजन देता है।
          मनुष्य भी प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ रचना है। इसे प्रकृति से अलग होकर नहीं देखना चाहिए। जब-जब हम अपने प्रकृति से अलग होने की कोशिश की है तब-तब हमने विनाश को न्योता दिया है। आज इस महामारी में कुछ लोग अपने प्रकृति से अलग हटकर सौदेबाजी में लगे हुए है। मनुष्य का मूल प्रकृति मदद करने का है। यदि ऐसा नहीं होता तो मानव समूह में नहीं रहता। मनुष्य का मूल स्वभाव समूह में रहना है। यही कारण है कि मनुष्य समूह में ही अपने गांव बसाते आए हैं।
          आइए हम सब मिलकर वृक्ष लगाते है; प्रकृति को बचाते हैं, ताकि  आनेवाली पीढ़ी को सांसे न खरीदना पड़े। यदि एक-एक वृक्ष भी लगाएंगे तो एक सौ तीस करोड़ वृक्ष लगा लेंगे। मानव इस आपदा में अपने मूल प्रकृति (स्वभाव) के अनुरूप एक दूसरे की मदद करे। अपने पुराने कुओं और तालाबों को बचाएं। अपने पूर्वजों के बताए हुए रास्ते पर चलते हुए विज्ञान का सहयोग लें। मानव सभ्यता को बचाना है तो ऐसा करना ही होगा। यदि हम नहीं सम्हले तो प्रकृति स्वयं इसे सम्हाल लेगी। प्रकृति की ओर चलने का समय आ गया है। आइए हम सब मिलकर प्रकृति  को बचाते हैं ताकि आने वाली पीढ़ियां हमे याद रख सके।

मौलिक एवं स्वरचित


राजीव नयन कुमार

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