Wednesday, 12 May 2021
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फ्लोरेंस नाइटिंगल और अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस-गौरव कुमार
फ्लोरेंस नाइटिंगल और अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस
कोविड-19 महामारी के इस दौर में जहां डॉक्टर हमारे लिए भगवान स्वरुप हैं वहीं नर्सों के कार्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। आपसब इस बात से भली-भाँती अवगत हैं कि डॉक्टर मरीज के मर्ज का इलाज करते हैं लेकिन वो नर्सें होती हैं जो चौबीसों घंटे मरीज की देखभाल करती हैं। बिना नर्सों के किसी अस्पताल की कल्पना नहीं की जा सकती है। कोविड-19 के इस दौर में इनकी भूमिका काफी बढ़ गई है। आज जो पूरे विश्व स्तर पर वैक्सीनेशन का कार्य चल रहा है उसमें इन नर्सों की काफी महत्वपूर्ण भूमिका है। 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है जो कि फ्लोरेंस नाइटिंगल का जन्म दिवस है। तो आइए संक्षिप्त में चर्चा करते हैं कि कौन थी "फ्लोरेंस नाइटिंगल"?
फ्लोरेंस नाइटेंगल का जन्म 12 मई 1820 ईस्वी को इटली में हुआ था। इनका जन्म एक संपन्न और सुखी परिवार में हुआ था। फ्लोरेंस इटली के एक खूबसूरत शहर का नाम था। इनके पिता विलियम एडवर्ड और माता मैरी काफी उदार प्रवृत्ति के लोग थे। इन्होंने गणित, इतालवी, शास्त्रीय साहित्य और दर्शनशास्त्र का अध्ययन किया। सांख्यिकी का भी इन्हें बहुत अच्छा ज्ञान था। फ्लोरेंस नाइटिगल इरादे की काफी मजबूत महिला थी। ऐसा माना जाता है की इनके घर वाले इनकी शादी किसी बड़े राजनीतिक परिवार में करना चाहते थे लेकिन उन्होंने इससे साफ इनकार कर दिया। इनके ज्यादातर दोस्त पुरुष थे। उस समय ऐसी मान्यता थी की समाज में महिलाओं को सहानुभूति की दृष्टि से देखा जाता है। हालांकि उन्होंने महिला सशक्तिकरण के लिए भी काफी उत्कृष्ट कार्य किए हैं। इनकी मुस्कुराहट को दैवीय माना जाता था। ऐसा कहा जाता है कि ईश्वर के फरिश्ते इनसे सीधा संवाद करते थे और ईश्वर का सबसे बड़ा कार्य होता है मानवता की सेवा करना। इसलिए इन्होंने नर्सिंग को अपना कार्य क्षेत्र चुना। मानवता की सेवा करने का इससे कोई बेहतर कार्य हो नहीं सकता था। जब इन्होंने इसकी चर्चा अपने परिवार से की तो प्रारंभ में तो काफी बाधाएं आई लेकिन बाद में सारे लोग तैयार हो गए। फ्लोरेंस नाइटिंगल एक धार्मिक महिला भी थी। इन्होंने पूरे यूरोप का भ्रमण किया था और वहाँ के रीति-रिवाजों को काफी करीब से देखा था। उन्होंने एक महिला प्रीस्ट के रूप में भी कार्य किया था। फ्लोरेंस नाइटेंगल को आधुनिक नर्सिंग के संस्थापक के रूप में भी जाना जाता है। इन्होंने नर्सिंग के क्षेत्र में काफी उत्कृष्ट कार्य किए हैं।
फ्लोरेन्स नाइटिंगल की प्रसिद्धि क्रीमिया युद्ध के दौरान नर्सों के प्रबंधक और प्रशिक्षक के रूप में कार्य करने से हुई। इन्होंने नर्सिंग को एक अनुकूल प्रतिष्ठा दी। 1853 से 56 के दौरान जब क्रिमीया युद्ध चल रहा था। यह पूरे यूरोप के लिए बदलाव का समय था। युद्ध के दौरान घायल सैनिकों की देखभाल के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी। हॉस्पिटल की कहानी बहुत खराब थी। चारो तरफ गंदगी का अंबार फैला हुआ था। इसी समय फ्लोरेंस नाइटिंगल अपने 38 नर्स साथियों के साथ इनकी देखभाल का जिम्मा उठाया। हालात इतने खराब थे कि लोग गोली से कम और गंदगी से ज्यादा मर रहे थे। इन्होंने साफ सफाई पर सबसे ज्यादा जोर दिया। अस्पताल में बिजली अक्सर चली जाती थी, उस स्थिति में फ्लोरेंस नाइटिंगल लैम्प लेकर घायलों के देखभाल करने जाती रहती थी। इसीलिए इन्हें लेडी विद द लैम्प की उपाधि से भी नवाजा गया है। उनका मानना था कि नर्सिंग का मुख्य कार्य है साफ-सफाई का पूरा-पूरा ख्याल रखना। इन्होंने हाथ धुलाई पर भी विशेष ध्यान दिया था। कोई भी नर्स जब किसी घायल की देखभाल करती थी, उनको छूती थी तो उसके बाद उन्हें सबसे पहले अच्छे से हाथ धोना होता था। इनके इस तरीके को पूरे विश्व ने अपनाया। यही वजह है कि जिस अस्पताल में फ्लोरेंस नाइटिंगल कार्य कर रही थी वहां के मरीजों की मृत्यु दर 42% से घटकर मात्र 2% हो गई।
1956 में क्रिमीया युद्ध के पश्चात जब ब्रिटेन वापस गई तो इनके उम्मीद से बढ़कर इनका स्वागत किया गया। तब तक फ्लोरेन्स नाइटिंगल पूरे ब्रिटेन के लिए एक नायक बन चुकी थी। पूरा ब्रिटेन इनके स्वागत में बाहें पसार कर खड़ा था। यह देखकर उनकी आंखों में आंसू आ गए थे। बड़े-बड़े घरों की लड़कियां नर्सिंग के क्षेत्र में अपना योगदान देने को तैयार खड़ी थी। ब्रिटिश सरकार ने भी उन्हें एक बड़ी राशि तकरीबन ढाई लाख डॉलर इनाम स्वरूप दी जिसका इस्तेमाल नाइटेंगल फंड के रूप में किया गया। 1857 में रॉयल कमिशन की स्थापना की गई जिसमें सैनिटेशन का खास ख्याल रखा गया। साफ सफाई के क्षेत्र में काफी सुधार किए गए। उस समय भारत ब्रिटिश सरकार के अधीन थी। इसलिए इनके प्रयास से भारत में भी सेनेटरी कमीशन का गठन हुआ था जिसका मुख्य काम था युद्ध के दौरान घायल हुए सैनिकों की अच्छे से देखभाल करना। अमेरिका के पहले ट्रेंड नर्स को भी इन्होंने ही प्रशिक्षण दिया था। इन्हें एंजल ऑफ मर्सी के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने बहुत से क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान दिया है। इनके द्वारा 200 से अधिक पुस्तकें लिखी गई है। इनके द्वारा लिखी
गई नोट्स ऑन नर्सिंग पूरी दुनिया के लिए एक वरदान साबित हुई। इसमें मुख्य रूप से वेंटीलेशन, हेल्थ, डाइट, क्लॉथिंग, साउंडलेस इन्वोर्न्मेंट, क्लीनलीनेस, बेडस आदि पर विशेष व्यख्या की गई है। फ्लोरेंस नाइटेंगल पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है। इन्हीं के प्रयास से नर्सो की बहाली शुरू हुई। यह पहली महिला थी जिन्हें ऑर्डर ऑफ मेरिट पुरस्कार से भी नवाजा गया। इन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन मानवता की सेवा में व्यतीत कर दिया। 13 अगस्त 1910 ईस्वी को हमारी ये फरिश्ता धरती से स्वर्ग को कूच कर गई।
कोविड-19 की इस पैनडेमिक में हमारी नर्सें मुख्य वारियर हैं जो आज बिना किसी स्वार्थ के मानवता की सेवा कर रही हैं। आज के दिन को नर्सों के लिए समर्पित किया गया है। सलाम है उन तमाम नर्सों को जो कई-कई दिनों तक अपने घर से दूर रहकर मानवता की सेवा में निरंतर जुटी हुई हैं। हमें इन नर्सों का पूरे दिल से सम्मान करना चाहिए।
✍️...गौरव कुमार
प्राथमिक विद्यालय अहमदपुर
रफीगंज, औरंगाबाद
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Yes really,
ReplyDeleteNurses, doctors, health workers should be our front line warriors. This day is observed to show respect towards them.