ज्यामिति शास्त्र का जनक यूक्लिड-हर्ष नारायण दास - Teachers of Bihar

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Tuesday 8 June 2021

ज्यामिति शास्त्र का जनक यूक्लिड-हर्ष नारायण दास

ज्यामिति शास्त्र का जनक यूक्लिड

          यूक्लिड का जन्म 330 ईसा पूर्व अलेक्जेंड्रिया में हुआ था। उन्होंने ज्यामिति की समस्त जानकारी को लिपिबद्ध कर दिया था इसलिए उन्हें ज्यामिति का जनक माना जाता है।अपनी पुस्तक एलिमेंट्स में जो 13 खंडों में है, उसके प्रथम पुस्तक में बिन्दु, रेखा, वृत, त्रिभुज आदि की परिभाषा दी गयी है। दूसरी पुस्तक में ज्यामिति, बीज गणित द्वारा रेखागणित की विभिन्न आकृतियों को बनाने के तरीके दिए गए हैं। तीसरी और चौथी पुस्तक वृत से सम्बंधित है। पांचवीं और छठी पुस्तक में अनुपात सिद्धान्त और उसके उपयोग को बताया गया है। 7वीं, आठवीं, नवीं और दसवीं पुस्तक में अंक गणित सिद्धांत प्रस्तुत किया गया है। ग्यारहवीं, बारहवीं और तेरहवीं पुस्तकों में ठोस ज्यामिति से संबंधित है। इन पुस्तकों में घन, पिरामिड, अष्ट फलक, गोला आदि का विवरण प्रस्तुत किया गया है। वे ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने तार्किक योजना को जन्म दिया। यह पुस्तक पहले अरबी में और फिर लैटिन में छपी।1570 में इसका अँग्रेजी में अनुवाद हुआ। इनकी मृत्यु ईसा पूर्व 275 में हुई थी।
          जब यूक्लिड का शव दफनाने के लिये घर से बाहर निकाला गया तब आज की तरह पड़ोस के दो-चार व्यक्ति ही बस उपस्थित थे। वे ईश्वर से यही प्रार्थना कर रहे थे कि "भगवान किसी का भी मस्तिष्क यूक्लिड की तरह विक्षिप्त न करे।'' ज्यामिति शास्त्र का जनक, जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन इसी शोध कार्य में लगा दिया, उसके व्यक्तित्व का यह मूल्यांकन लोगों ने किया था। यूक्लिड ही नहीं संसार में अधिकांश महापुरुषों का जीवन इसी प्रकार उपेक्षा, उत्पीडन तथा प्रतारणाओं से भरा हुआ है? जीवन का रस तिल-तिल करके वे जलाते हैं- विश्व को प्रकाशित करने के लिए दुनिया उन्हें पागल, विक्षिप्त तथा शैतान तक कहने से नहीं चूकती।
          यूक्लिड बचपन से ही तीव्र बुद्धि के प्रतिभावान बालक थे। किन्तु उनके इस अनोखे आविष्कार के कारण किसी ने भी उन्हें पहचान नहीं पाया। स्कूल में उनको तनिक सा भी समय मिलता पृथ्वी पर आड़ी-टेढ़ी रेखाएं खीचा करते थे। इसे देखकर उनके शिक्षक ने उनके पिता को एक पत्र लिखा, जिसमें कहा गया था कि यूक्लिड का मस्तिष्क विकृत हो गया है और वह जमीन पर व्यर्थ के नक्शे बनाया करता है। ''सभी टोकते, किन्तु यूक्लिड की लगन में कोई कमी नहीं आई। वे निरंतर पृथ्वी पर ज्यामिति सम्बन्धी कोण बनाया करते तथा नये-नये सिद्धांतों कानिर्माण किया करते। कभी-कभी तो वे अपनी साधना में इतने तन्मय हो जाते थे कि उनको खाने-पीने तक की सुधि नहीं रहती। उसकी माता कहती, चलो यूक्लिड खाना खा लो ''औरभूखा यूक्लिड अपनी कार्य श्रृंखला में बँधा-बँधा ही कहता-खाना? क्या चीज होती है। पिता आकर कहते यूक्लिड? चलो रात बहुत हो गयी है। अब सो रहो और अपनी तल्लीनता में डूबा यूक्लिड कहता, मैं अभी-अभी सोकर उठा हूँ। उनके पिता यूरेनस परेशान हो उठते। एक दिन यूरेनस बैठे हुए अपने मित्रों के साथ वार्तालाप में मग्न थे। सामने ही यूक्लिड पृथ्वी पर तरह-तरह के रेखा चित्र बना रहा था।एकाएक वह रेखाएं खींचते हुए बड़ा ही आनंदित होकर गाना गाने लगा। जिसको देखकर सभी विस्मित हो उठे। गाने का आशय था "किसी त्रिभुज की तीनों भुजाएँ बराबर होने पर उसके तीनों कोण आपस में बराबर होते हैं। इसी तरह त्रिभुज के तीनों कोण बराबर होने पर उसकी तीनो भुजाएँ बराबर होती है।'' इस प्रकार यूक्लिड अपनी खोज में निमग्न रहता और ज्यामिति के नये-नये सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया करता। आज जब इस प्रकार उसे गाना गाते देखा गया, जो न उनके पिता की समझ में आया और न उनके किसी मित्र को-तो उनके पिता ने एक उपाय सोचा और वे अपनी पत्नी से बोलेे "यूक्लिड की इन बेसिर पैर की हरकतों का उपाय मैंने सोच लिया है। उसे पागलखाना भेज देना चाहिए''। लेकिन माँ का हृदय बड़ा कोमल होता है। वह पागलखानों की बात सुनकर द्रवित हो उठीं और किसी प्रकार पति को ऐसा करने से रोक दिया। माँ ने यूक्लिड को एकान्त में ले जाकर पूछा- "मेरे अच्छे बच्चे तुम मुझे बताओ कि तुम यह दिन-रात क्या किया करते हो। सबलोग तुम्हें पागल समझते  हैं, पर मैं नहीं समझती।''
यूक्लिड ने हँसकर कहा- सच माँ! मुझेकुछ नहीं हुआ है बात केवल इतनी है कि मुझे एक ऐसे विषय की जानकारी हो गयी है जिसे अभी तक कोई नहीं जानता इसी कारण लोग मुझे पागल समझते हैं। माँ तो आश्वस्त हो गई किन्तु यह संसार यह नहीं समझ सका कि यूक्लिड एक नया ही विज्ञान रच रहा है। वह निरन्तर उसे पीड़ित ही करता रहा। 
          यूरेनस का एक मित्र था, एनोबर्बास केवल उसने यूक्लिड की प्रतिभा  को समझा। तब उसने यूरेनस से कहा- तुम यूक्लिड का विवाह कर दो। उससे इसका ये दिन-रात अपने काम में लगे रहना कम हो जायेगा और उसने अपनी सुन्दरी कन्या यूरेका के साथ यूक्लिड का विवाह करवा दिया।फिर भी उसकी लगन पद्धति में कोई अन्तर न आया और न हीं दुनिया वालों का विरोध कम हुआ। जब एनोबर्बास ने देखा कि एक महान प्रतिभा को यों ही व्यर्थ दबाया जा रहा है तब उसने यूक्लिड को अपने घर पर ही रहने को बुला लिया। यूक्लिड का पिता यूरेनस भी उसका बराबर विरोध करता रहता था पर एनोबर्बास ने यूक्लिड को बुलाकर मानो आफत ही बुला ली थी। उनके घर वालों ने उसे इस बात के लिए विवश किया कि यूक्लिड को घर से निकाल दें। आखिर उसे अपनी इच्छा के विरुद्ध यूक्लिड तथा यूरेका को को पृथक करने को बाध्य होना पड़ा। यूक्लिड की अखण्ड साधना चलती रही। जब-तक उसे विश्वास न हो जाता कि अमुक सिद्धान्त पूरा हो गया तब-तक वह उसी में लगा रहता। परी जैसी सुन्दर पत्नी भी उसकी निष्ठा में कमी न ला सकी थी। वह अपने इस नवीन विषय की खोज में दिन-रात मग्न रहता।
          आज ज्यामिति-शास्त्र को लोगों ने जाना तथा समझा है। तभी उसके स्रष्टा को भी समझने का प्रयास किया गया है।परन्तु अपने जीवन में उसे सिवाय दुःख तथा अवहेलना के कुछ नहीं मिला। हर भवन की नींव में विज्ञान के प्रत्येक चरण के प्रत्येक कोण में तथा सम्पूर्ण व्योम-मण्डल के प्रत्येक ग्रह की गति की जानकारी में यूक्लिड की प्रतिभा प्रतिबिम्बित है।
जब उसके पिता यूरेनस का देहान्त होने लगा तब उन्होंने यूक्लिड से कहा यदि तुम ये बेकार के नक्शे बनाना तथा व्यर्थ के गाने गाना छोड़ दोगे, तो मैं तुम्हें अपनी जायदाद का मालिक बना सकता हूँ, अन्यथा नहीं। पर यूक्लिड को तो दूसरी जायदाद मिल चुकी थी। उसने साफ मना कर दिया और सम्पत्ति उसके एक नाते के भाई को दे दी गई। यूरेनस का कहना था कि "यूक्लिड अपना सिर उस दिन के लिए खपा रहा है जो कभी आएगा ही नहीं पर एक दिन ऐसा अवश्य आता है जब प्रतिभाशालियों के कृतितत्वों का मूल्यांकन होता है। भले ही वह दिन कभी भी-कितने ही समय बाद क्यों न आये?
यही यूक्लिड ने भी कहा था, जब वह मृत्यु शैया पर पड़ा था।उसने अपनी पत्नी से कहा "यूरेका अब मुझे मौत से कोई शिकायत नहीं है क्योंकि मैंने अपना लक्ष्य पूरा कर लिया है।सुनो, यूरेका लोग मुझे अभी तक पागल ही समझते रहे लेकिन भविष्य बतलाएगा कि मैं विक्षिप्त नहीं था। मैंने जो कुछ किया है उसे लोग एक दिन जरूर समझेंगे।'' आज, जब उसने अपनी मंजिल, अपना लक्ष्य पा लिया तब उसे अवकाश  मिला था अपने विषय में, पत्नी तथा बच्चों के विषय में सोचने का। उसने दोनों पुत्रों को बुलाया और कहा, "मेरे पुत्र! तुम्हें मालूम होना चाहिए कि तुम्हारी माता ने मेरे साथ जीवन भर कष्ट उठाये हैं। मैं उसे कभी सुख न पहुँचा सका। अब तुम उसे कष्ट न होने देना।" और अपने बड़े पुत्र युडेमास को सम्बोधित करते हुए कहा"अब तुम लोगों को क्या देकर जाऊं कुछ समझ में नहीं आता। फिर भी तो कुछ तो दिए ही जा रहा हूँ। ये ज्यामिति के तत्व तुम्हें दिए जाता हूँ। विश्वास रखो, भविष्य में संसार को इसकी आवश्यकता पड़ेगी।'' अपने छोटे पुत्र यूफोन की ओर उन्मुख होकर कहा" तुम्हें मैं अपनी डायरी दिये जाता हूँ। भविष्य में लोगों को शायद इसकी आवश्यकता पड़े। दोनों भाई बहुत सम्भाल कर रखना इन चीजों को" अपने अथक परिश्रम का प्रतिफल-संसार को सौंप कर वह इस संसार से विदा हो गया। एक महान गणितज्ञ, जिसे संसार ने सिवाय उपहास, तिरस्कार तथा अवहेलना के कुछ न दिया, संसार का ज्यामिति-शास्त्र की शोध करके नई थाती सौंप गया।
एक ईमानदार त्यागी महापुरुष का जीवन अपनी निजी सुख-सुविधाओं तथा  आवश्यकताओं को जिसने सदैव तुच्छ समझा एक प्रयोगशाला बनकर रह गया। किन्तु कालान्तर में उसकी महत्ता तथा उपयोगिता को लोगों ने समझा तथा उसका मूल्यांकन किया।
          आज संसार की दृष्टि में यूक्लिड का जो महत्व है, वह किसी भी महान शोधकर्त्ता, वैज्ञानिक से कम नहीं। नींव के पत्थरों को सदा अंधकार तथा सीलन सहन करना ही होता है।
यूक्लिड का जीवन उपेक्षा, कष्ट और पीड़ाएँ सहते हुए निरन्तर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता ही रहा। संसार के इस महान गणितज्ञ को कोटिशः नमन।


हर्ष नारायण दास
मध्य विद्यालय घीवहा (फारबिसगंज)
अररिया

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