स्वार्थ संग विलुप्त होती देशभक्ति-शुकदेव पाठक - Teachers of Bihar

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Thursday 29 July 2021

स्वार्थ संग विलुप्त होती देशभक्ति-शुकदेव पाठक

स्वार्थ संग विलुप्त होती देशभक्ति

          भारतीय जीवन शैली तथा लोक परंपरा में देशभक्ति को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता रहा है। भारतीय समाज में वैदिक काल से आधुनिक काल तक अपनी मातृभूमि के प्रति समर्पण का इतिहास खास रहा है। यह हमारी मातृभूमि भारत की पहचान है। आजादी के बाद भारतीय बदलते स्वरूप में देश के प्रति जनमानस की भावना कुछ इस तरह बदलती रही कि लोग व्यक्तिगत सोच में बहने लगे। शायद कुछ चंद लोगों के द्वारा व्यक्तिगत सोच को बढ़ावा सा दिया जाने लगा। मुझे ऐसा लगता है कि देशभक्ति को अपने देश के प्रति देशप्रेम की भावना तथा ईमानदारी से जोड़कर देखा जाना चाहिए चाहे वो किसी कर्म तथा धर्म के साथ ही क्यों न हो।
          किसी भी व्यक्ति का देश के प्रति अमूल्य प्रेम तथा समर्पण देशभक्ति की भावना को परिभाषित करती है। “हम अपने देश के प्रति और इसके निर्माण के लिए जब किसी भी हद को छूना चाहते हैं यही भावना सर्वोपरि है।” पूर्व में जब हमारा देश ब्रिटिश शासन के अधीन था तब हमारे देशवासी अपनी देशभक्ति की प्रबल भावना के साथ आगे आए। देशभक्त नेतृत्व करते हुए सामान्य जनमानस को गोष्ठी, भाषण तथा दरवाजे-दरवाजे जाकर उत्साहित किए। पुनः हमारे राष्ट्रीय त्योहारों जैसे 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस), 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) तथा 2 अक्टूबर (गांधी जयंती) की तिथियों पर विशेष रूप से और अधिक बल देने की आवश्यकता है। इसी प्रकार का समारोहिक वातावरण अधिकतम व्यक्तिगत समारोहों तथा व्रत-त्योहारों पर भी होना चाहिए ताकि प्रत्येक भारतीय नागरिक में देशभक्ति एक दिखावा न होकर वास्तविक रूप में हो। देश के युवाओं को सामाजिक और आर्थिक रूप से और निखारने की आवश्यकता है ताकि देश के निर्माण की दिशा में अपना योगदान दें।
          “हमारे देश भक्तों यथा शहीद भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, मोहनदास करमचंद गांधी इत्यादि के देशभक्ति के अनुभव को स्थापित करने पर बल देना चाहिए।” समय के साथ देशभक्ति की भावना लुप्त हो रही है और युवा पीढ़ी में यह भावना बहुत कम देखने को मिलती है। आज के युवा व्यक्तिगत व्यवहारिक वातावरण की जीवन शैली में उलझे रहते हैं। लोग अधिक स्वार्थी होते जा रहे हैं तथा इस भावना को ऊपर मानते हैं। वही इसके पलट, देशभक्ति अपने देश के प्रति नि:स्वार्थ प्रेम को दर्शाता है। सभी क्षेत्रों के बढ़ते प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण में स्वार्थ की भावना का विकास हुआ है। देश के सुधार और विकास की दिशा में योगदान देने के बजाय अपने बेहतर जीवनशैली की तलाश में देशप्रेम तथा सेवा की भावना को लगभग भुला ही दिया है। 
          हमारे देश भारत को हमारी मातृभूमि के रूप में जाना जाता है। हमें अपने देश से वैसे ही प्यार करना चाहिए जैसे हम अपनी मां से करते हैं। जो लोग अपने देश के लिए वही प्रेम और भक्ति महसूस करते हैं जो अपनी मां और परिवार के साथ तो वही असली देशभक्त हैं। इसीलिए तो कहा गया है-

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे त्वया हिंदभूमे सुखम वर्धितोहम।
महामंगले पुण्यभूमे त्वदर्थे  पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।।
          
          अर्थात् हे वात्सलमयी मातृभूमि आपको सदा प्रणाम। इस मातृभूमि ने हमें अपने बच्चों की तरह ममता दी है। इस हिंदभूमि पर सुखपूर्वक मैं बड़ा हुआ हूं। यह महामंगलमय तथा पुण्यभूमि है। इस भूमि की रक्षा के लिए मैं यह नश्वर शरीर मातृभूमि को अर्पण करते हुए इस भूमि को बारंबार प्रणाम करता हूॅं।


✍️ शुकदेव पाठक
मध्य विद्यालय कर्मा बसंतपुर
कुटुंबा, औरंगाबाद, बिहार

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