Saturday, 7 August 2021
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स्तनपान कराना माँ का अधिकार-डॉ. स्नेहलता द्विवेदी 'आर्या '
स्तनपान कराना माँ का अधिकार
माँ बनना स्त्री जीवन की एक अतिमहत्वपूर्ण घटना है। बच्चे के गर्भाधरण से उसके अवतरण तक माँ के खाने से वह खाता है, श्वसन से साँस लेता है, माँ के दिल धड़कने से ही उसका दिल धड़कता है, उसकी हलचल माँ को सकून देती हैं। अतः दो जीवात्मा का एकात्म भाव परस्पर सहस्तित्व और सहोपकार के नैसर्गिक अन्योन्याश्रय सम्बंध को जीता है। यह एकात्मकता सम्पूर्ण जीवन बच्चे को जाने अनजाने माँ से और माँ को अपने बच्चे से बाँधकर रखती है। ऐसे में यह सोचना कि जन्म के बाद अचानक पोषण, श्वसन, सम्वर्द्धन, सहोपकार का सम्बंध विच्छेद हो जाएगा विल्कुल सत्य से परे और अतार्किक है।
वास्तव में जब बच्चा पैदा होता है तो माँ के गर्भ के वातावरण से अचानक एक अन्य वातावरण में आता है जहाँ के लिए उसका शरीर पूर्णतः अनुकूलित नहीं होता। इस परिस्थिति में बच्चे का शरीर वातावरण से क्रिया कर अनेक प्रकार से संक्रमित हो सकता है। अतः नियों-नेटल संरक्षण बच्चे के जन्म के बाद की एक स्वाभाविक चिकित्सीय देखभाल की प्रक्रिया है। इस परस्थिति में माँ का दूध बच्चे के लिए अमृत का काम करता है। प्रकृति पदत्त माँ का दूध वस्तुतः माँ के पास वह अमृत कलश है जो नवजात के सम्वर्द्धन, पोषण और सुरक्षित स्वास्थ की अमोध कुंजी है। पुनः स्तनपान कराना माँ के नैसर्गिक कर्तव्य और प्राकृतिक अधिकार है।
वास्तव में मनुष्य एक स्तनधारी प्राणी है और अन्य स्तनधारियों की तरह मनुष्य भी शिशु जनता है। इस क्रिया में माँ को स्वतः ही स्तन से दूध उतपन्न होता है। यह मनुष्य की तरह ही अन्य स्तनधारियों में भी होता है। ज्यादातर स्तनधारी अपने बच्चे को अपना दूध पिलाते हैं और बच्चा क्रमशः बड़ा होता है। इस प्रकार स्तनपान स्तनधारियों के जीवन के स्त्री चरित्र का प्रकृति की ओर से उम्दा वरदान है। मनुष्य एक चैतन्य और संवेदनशील प्राणी है। बुद्धि विवेक और प्राकृतिक क्रियाओं की सहज समझ मनुष्य को है अतः इस परिस्थिति में मनुष्य का स्वयं के प्रति दायित्व अत्यधिक है। पुनः स्तनपान स्त्री जीवन का एक वांछित और सुंदर प्राकृतिक कर्तव्य और अधिकार है। अतः शिशु को प्रकृति द्वारा प्रदत्त दूध से वंचित करना निश्चित रूप से मानवता के प्रति अपराध है एवं शिशु- माता दोनों के प्रति अन्याय है।
आइये हम स्तनपान के सहोपकार वाले कुछ चिकित्सकीय फायदे से आपका परिचय करवाते हैं। जैसा कि पूर्व में कहा गया है नवजात शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती है। माँ का प्रारम्भिक दूध बच्चे में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने और सम्पूर्ण पोषण प्रदान करने में सक्षम होता है। इसमें उपस्थित विभिन्न प्रकार के प्रोटीन और विटामिन रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में सहायक होता है। पुनः नवजात को मिलने वाले पोषक तत्व गर्भावस्था के लगभग समान होते हैं। अतः शिशु को अनुकूलन में कमतर कठिनाई होती है। ऐसा नहीं है कि स्तनपान से केवल शिशु लाभान्वित होते हैं वल्कि इस क्रिया के कारण माता के तत्कालीन रक्तस्राव की स्थिति नियंत्रित रहती है। ऐसा देखा गया है कि स्तनपान कराने वाली स्त्रियों में स्तन में गाँठ या कैंसर की समस्याएं अपेक्षाकृत कम होतीं हैं। पुनः इस प्रकार की स्त्रियों में मासिक धर्म और उच्च रक्तचाप की समस्याएं भी कम पाई गईं हैं।
इन सबसे हटकर जब हम बच्चों के कुपोषण और नवजात बच्चों की मृत्यु पर विचार करते हैं तो इनमें से अधिकांश बच्चे 0-3 वर्ष की आयु में काल के गाल में समा जाते हैं (ICDS) जो चिंता का विषय है। जच्चा-बच्चा की स्थिति पिछड़े राज्य में और अधिक भयावह है। माता की देखभाल तो कुछ हद तक आशा दीदी और सरकार की योजनाओं से हो पाता है फिर भी बच्चे को हम स्तनपान कराकर निश्चित रूप से बहुत हद तक काल के गाल में जाने से बचा सकते हैं। आइये हम सब संकल्प लें कि स्तनपान का पुनीत कार्य हम माताएं अपने और अपने शिशु के हित में कम से कम 6 महीने तक अवश्य करवाएंगी। यह हमारा स्वयं, अपने बच्चे, परिवार और मानवता के प्रति पुनीत कर्तव्य है और हम इसका पूर्ण निष्ठा से निर्वहन करेंगे।
डॉ. स्नेहलता द्विवेदी 'आर्या '
मध्य विद्यालय शरीफगंज कटिहार
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