Saturday, 7 August 2021
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स्तनपान एक अद्भुत प्रक्रिया-भोला प्रसाद शर्मा
स्तनपान एक अद्भुत प्रक्रिया
स्तनपान है ही एक चमत्कार स्वरूप जो हमें सोचने पर मजबूर कर देता है। जबकि हम एक ही प्रकृति के जन्में दो अलग-अलग तरह के फूल हैं। कोई अपने वंश को आगे बढ़ाने में सक्षम तो कोई एक से दूसरे परिवार में सामंजस बनाने में माहिर। सभी अपने क्षेत्र में काबिलियत की चार चाँद लगाने का हौंसला रखने वाला प्रकृति के अनमोल रतन।
बात प्राचीन काल की है। एक मुनि वन में विहार कर रहे थे। उस जमाने में बहुत अधिक वस्त्र का प्रचलन नहीं था तो सभी निश्छल भाव से अपना कार्य सम्पन्न किया करते थे।किसी प्रकार की कोई छुआछूत अपने मन में नहीं पालते थे न ही अब के मॉडर्न जमाने की कामवासना की भूत कम ही उम्र में पनप जाते। पहले तो अठारह साल से ऊपर उम्र के लोग भी मस्त हाथी के तरह घूमते-फिरते रहते थे। न तो उसको कोई चिन्ता न ही परिवार भरम-पोषण की कोई जिम्मेदारी। हाँ! सब जगह ऐसा नहीं था। कुछ परिवार सबल भी थे जो कम उम्र में ही शादी सम्पन्न कर दामपत्य जीवन व्यतीत करते थे।
मुनि जी! विहार के दौरान लगभग पंद्रह साल की युवती को देखा। देखते ही वह अपने शरीर की कल्पना करने लगे। हम सभी जब एक ही मानव जाति के विशेष स्वरूप हैं तो फिर इसके शरीर की बनावट में अन्तर क्यूँ? क्या प्रकृति तो हममें से अलग-अलग ढांचा तैयार तो नहीं कर दिये। वह काफी अचरज में पर गए । कहीं हो सकता है मेरी बनावट ही अच्छी हो या या तो उस युवती की।
गहरी सोच में खोये मुनिवर जी! कल्पनात्मक प्रक्रिया आखिर क्यूँ ? मुझसे ये क्रियात्मक कार्य विलुप्त किया गया।उनके उभरे हुए सीने को देख वह विचलित सा होने लगा।अन्तोगत्वा वह उसे छूने की चेष्टा की यानि (गुड टच ) अच्छी सोच को लेकर न कि नकारात्मक विचार से। युवती ये बताओ? जो तेरे शरीर की बनावट है वह मेरे शरीर का भी है। पर तुम्हारे सीने में अधिक उभार क्यूँ! यह कह कर वह छू दिया। युवती काफी परेशान सी हो गईं कि एक अनजान मानव हमारे देह को छूने की चेष्टा की यह अच्छी बात नहीं। जंगल में और भी मुनि विहार करते पाये गये। यह सब प्रश्न मुनियों के सम्मुख रखा गया। मुनिवर विस्तार रूप से समझाये। ये प्रकृति की देन है। ये अपने वंशज को इसके माध्यम से आहार स्वरूप प्रदान करने की क्षमता रखने वाली है। इसी आहार से ही हमारा संसार खिलखिला उठेगा। जब यह दाम्पत्य जीवन निर्वाह करेंगे तो इसे आनन्दमय सुखों की अनुभूति होगी। इससे शारिरीक प्रक्रिया का क्रियात्मक कार्य भी सम्पन्न होगा जिससे एक दूसरों में निषेचन प्रक्रिया द्वारा एक नये मानव का विकृति पृथ्वी पर आयेगा जो नवजात शिशु कहलायेगा। हम सभी पेट भरने के लिए कंद-मूल खाद्य-पदार्थ खाकर जीवित रहते हैं परन्तु नवजात शिशु का भरम-पोषण किस प्रकार होगा? इस लिए प्रकृति ने इसमें हमारे शरीर की तुलना में इसे थोड़ी सी सहनशील, दयाभाव, कष्ट-पीड़ा आदि सहने की शक्ति बढ़ा दी।
फिर हमलोग अपने आजीविका के पीछे क्यों इतना परेशान रहते हैं। जब ईश्वर जो पैदा ही नही हुआ है उसके जीवन का भरम-पोषण की सारी प्रक्रिया पूर्ण कर दे रही है तो हम भी क्यों नहीं उस अपरम्पार ईश्वर कल्पना कर सदैव पूजा-पाठ कर अपना जीवन व्यतीत करें। क्यूँ एक दूसरों के जान के दुश्मन बन सुखमयी संसार को अज्ञानता की काल कोठरी में धकेलें ।
जब यह अद्भूत प्रक्रिया ईश्वर स्वयं नहीं रोक पाए तो हम मानव की क्या औकात जो इसे बदल दें। हाँ! मॉडर्न युग की दशा-दिशा भी हमें मंजूर है पर प्राकृति के खिलाफ नहीं। कुछ युवतियाँ जब माई बनती है तो अज़ीब सा उन्हें महसूस होता है। ये क्या हो गया? कैसे हो गया? क्या हम इस प्रक्रिया को सकारात्मक रूप से निभा पायेंगे या फिर हमारी सखियाँ क्या सब सोचेगी? हाँ ! बिल्कुल यह प्रश्न सत्य है। बहुत लोगों के मन में भी ऐसा भाव आयेगा पर हमारी बहना ये सृष्टि की रचित प्रकृतिक घटना है। यह सखियों के कहने या न कहने से नहीं चलता है। यही सखियाँ जब तुम्हारा लाल कमजोर पड़ जाएगा। अनेकों रोग से ग्रसित हो जाएगा तो भी वह वहाँ सवाल खड़ा करेगी? माँ तो बन गई पर माँ की प्रक्रिया निभा न सकी। है कोई जवाब तुम्हारे पास। यह तो मानव का जमघट है। कभी हाँ में भी वाह-वाह,तो कभी न में भी वाह-वाही।
इसलिए हमारे समस्त नारित्व शक्ति से अनुरोध है कि अपने भविष्य का अपने हाथों से गला न घोंटे। उसे जो प्राकृति ने अनमोल खजाना दिया है उसे उसके साथ खुशी-खुशी दान करें और अपने को सौभाग्यशाली समझें। इससे आपके बच्चों में शारीरिक विकास, मानसिक विकास, रोग-प्रतिरोधक क्षमता, विटामिन, स्वस्थ एवं परिपूर्ण जीवन का निर्माण हो सकता है। यह बच्चों के लिए प्रकृति एवं मानव निर्मित का सर्वोत्तम आहार है। इसके आगे सारे मिनिरल, चोको, बॉर्नबीटा नतमस्तक हो जाता है।
भोला प्रसाद शर्मा
प्रा0 वि0 गेहुँमा(पूर्व)
डगरूआ पूर्णिया (बिहार)
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