हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद -राकेश कुमार - Teachers of Bihar

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Monday 29 August 2022

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद -राकेश कुमार

 हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद 

  पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब। जी हां एक प्राचीन कहावत है जिसका इस्तेमाल हर माता–पिता अपने बच्चों को शिक्षा के महत्व को समझाने के लिए करते थे, लेकिन एक यथार्थ सत्य है कि मेहनत, ईमानदारी एवं लगन से किया गया कोई भी कार्य जिसका क्षेत्र कोई भी हो इतिहास बन जाता है एवं करने वाले इतिहास पुरुष बन जाते हैं जिनका जीवन एवं उपलब्धियां दूसरों के लिए या कहें तो देश का भविष्य अर्थात् युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा के स्रोत बन जाते हैं। यह खेल दिवस विशेष आलेख है तो लाजिमी है कि नैतिक शिक्षा एवं खेलों का हमारे जीवन में महत्व की चर्चा बनती है। 


आज वर्तमान सदी ( समय ) में अनुशासन युक्त जीवन शैली हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गई है। आज हम सभी को इस तथ्य को लेकर आगे बढ़ना है कि स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास होता है। वर्तमान समय में दो तरह की शिक्षा को लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं सामान्य शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षा और दोनों का महत्व समान है फर्क सिर्फ इतना है कि सामान्य शिक्षा वर्ग कक्ष के अंदर दी जाती है एवं शारीरिक शिक्षा खेल के मैदान में, लेकिन ये सर्वविदित है कि बच्चा सबसे पहले शारीरिक शिक्षा से अपनी शिक्षा की शुरुआत करता है क्योंकि बच्चा प्रारंभ में अपनी शारीरिक हलचल के द्वारा अपनी शारीरिक शिक्षा का आरंभ करता है। अक्सर हम इस तथ्य को लेकर चलते हैं कि प्रतिभा जन्मजात होती है, लेकिन आज हम एक ऐसी शख्सियत की चर्चा कर रहे हैं जिन्होंने दुनिया के सामने इस आदर्श को रखा कि प्रतिभा जन्मजात नहीं बल्कि आप अगर सकारात्मक जूनून, मेहनत और लगन को अपना हथियार बनाओगे तो आप हॉकी के जादूगर कहलाओगे जी हां मेजर ध्यानचंद जिनके सम्मान में भारत प्रतिवर्ष इनकी जयंती पर राष्ट्रीय खेल दिवस मनाता है।


इनका जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद ( उत्तर प्रदेश ) में हुआ। इनके जीवन की कैरियर की शुरुआत सेना के नौकरी से हुई जब ये सेना में भर्ती हुए तो इनकी उम्र 16 वर्ष थी उस समय तक इनके मन में हॉकी के प्रति कोई विशेष रुचि नहीं थी,इसलिए कहा जा सकता है कि हॉकी के खेल की प्रतिभा जन्मजात नहीं थी, बल्कि उन्होंने सतत साधना, अभ्यास, लगन, संघर्ष और संकल्प के सहारे यह प्रतिष्ठा अर्जित की थी। ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करने का श्रेय सेना के एक सूबेदार मेजर तिवारी को है उनके देखरेख में ध्यानचंद हॉकी खेलने लगे और देखते ही देखते वह दुनिया के महान हॉकी खिलाड़ी बन गए। वे तीन बार ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाले भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे। उन्होंने अपने खेल जीवन में लगभग 1000 गोल दागे जो उनके हॉकी के प्रति महानता को दर्शाता है। उन्होंने देशप्रेम में हिटलर के आकर्षक ऑफर को भी ठुकरा दिया था। उन्हें 1956 मे भारत का प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। भारतीय ओलंपिक संघ द्वारा  उन्हें शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया गया ।  भारत सरकार ने इनके सम्मान में  खेल जगत का सर्वोच्च पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर वर्ष 2021 से ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कर दिया। मेजर ध्यानचंद के जीवन से जुड़े आदर्शो और उपलब्धियों को कुछ शब्दों में समेटना संभव नहीं, लेकिन उनके जयंती पर उनके आदर्श से जुड़े इस तथ्य को सतत साधना, अभ्यास, लगन , संघर्ष  और संकल्प के सहारे ही प्रतिष्ठा अर्जित की जा सकती है इसको लेकर हम आगे बढ़े और उनकी जयंती को सार्थकता प्रदान करें ।

आलेखकर्ता
राकेश कुमार
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर ( पटना )

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