माँ का आँचल - श्री विमल कुमार - Teachers of Bihar

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Sunday, 23 October 2022

माँ का आँचल - श्री विमल कुमार

एक भावनात्मक लेख।

संसार में नारी के तीन रूप हैं- माँ, पत्नी और पुत्री ।इन तीनों में सभी जीवन के लिये आवश्यक है तथा तीनों का अपना अलग-अलग अस्तित्व है। इसमें से माँ जो कि विश्व की एक बेशकीमती चीज मानी जाती है जो की बीजावस्था से लेकर जन्म देने तक पालन-पोषण करके बड़े अरमान के साथ बच्चे को जन्म देती है।उसके बाद बच्चे का शैशवावस्था,पूर्व बाल्यावस्था,उत्तर बाल्यावस्था, किशोरावस्था से लेकर पूरी जिन्दगी तक बच्चे के पालन-पोषण को करने में अपना पूरा जीवन न्योछावर कर देती है। साथ ही बच्चे की सेवा तथा विकास कराने में अपनी समय को लगा देती है।माँ दुनिया की एक बहुत खुबसूरत चीज है,जिसकी तुलना इस पृथ्वी के किसी भी मूर्त या अमूर्त चीज से नहीं की जा सकती हैं।जीवन में माँ तो बस माँ होती है,तेरी-मेरी कहाँ कौन होती है,विश्व में दूसरी कोई भी चीज नहीं होती है।

माँ दुनिया कि ऐसी चीज मानी जाती है जो कि नौ महीना यानि लगभग 280 दिन तक गर्भधारण करके बच्चे को जन्म देती है और फिर जन्म के पूर्व से ही माँ उसको कितना संभाल कर रखती है।जन्म के बाद से ही माँ हर पल बच्चे की प्रत्येक गतिविधि पर पैनी नजर रखते हुये बच्चे को जन्म देती है।एक बच्चा अपने आप में कहता है कि"तूने तो रूला के रख दिया ऐ जिंदगी जाकर पूछ मेरी माँ से कि हम भी कितने लाडले थे"।अपने बच्चे को जन्म देने के बाद माँ अपने बच्चे को पल भर के लिये भी अपने से दूर रखना पसंद नहीं करती है।एक माँ अपने बच्चे के साथ भावनात्मक प्रेम को देखकर कहती है कि,"तूझे न देखूँ तो चैन मुझे आता नहीं है,एक तेरे सिवा दिल में कोई भाता नहीं है।" बच्चा जब छोटा रहता है तो माँ उसको हर हाल में सुन्दर,सुशील, कर्मठ तथा एक पूर्ण एवं विश्व का एक परिपक्व नागरिक बनाना चाहती है।पृथ्वी पर मृत्यु के लिये बहुत सारे रास्ते हैं,लेकिन जन्म के लिये बस एक ही माँ है।

माँ जीवन की एक अनमोल वस्तु है,जिसके बिना बच्चे का जीवन एक "पतवार विहीन नाव" के बराबर है तथा माँ के बिना बच्चे का जीवन ढह जायेगा।बच्चा जन्म के बाद से अपनी"माँ के आँचल"के तले पलता रहता है तथा पूरी जिन्दगी में माँ से अधिक कोई भी बच्चे की सेवा नहीं कर सकता है।इसी पर किसी चिंतक ने कहा है कि," माँ तो माँ है जिसकी तुलना विश्व के किसी  से नहीं की जा सकती है,क्योंकि वही एक ऐसी चीज है जो कि बेटा को अपने हाथों से खिलाती है।इसके अलावे जब बच्चा शैशवावस्था में रहता है और बच्चा अपना कपड़ा गीला कर लेता है तो वह बिमार रहने या थके रहने के बावजूद भी अपने बच्चे को रोने नहीं देती है।

वर्तमान परिवेश में भी माँ को बेटा के बड़ा हो जाने के बाद भी हर घड़ी याद आती रहती है।यदि बेटा घर से बाहर रहकर शिक्षा प्राप्त करता है तो माँ कभी भी संतुष्टि के साथ उसके याद में चैन से नहीं खाती है,हर वक्त माँ को लगता है कि मेरा बेटा मेरे पास ही रहता तो कितना अच्छा होता।

एक बेटा जिसके याद में माँअपनी सारी खुशी को कुर्बान कर देती है वैसी स्थिति में बच्चा कहता है कि "माँ मूझे आँचल में छुपा लो गले से लगा लो कि और मेरा दुनियाँ में कोई नहीं"। माँ जीवन की अनमोल धरोहर है जिस पर बच्चे का जीवन निर्भर करता है।माँ के बिना बच्चे के जीवन का निर्माण हो पाना असंभव सा हो जाता है।माँ के साथ बच्चे का भूत,भविष्य और वर्तमान जुड़ा हुआ रहता है।वह जीवन का मूलाधार होती है जो कि बीजावस्था से लेकर पूरी जिन्दगी तक बच्चे की देखभाल करती रहती है।

यह सच है कि ईश्वर हर समय बच्चे के पास नहीं रह सकते हैं,इसलिये उन्होंने माँ को इस पृथ्वी पर भेजा है।

अंत में हम कह सकते हैं,"यदि माँ का साया तथा पिता का साथ रहेगा तो आपको कोई भी कष्ट नहीं दे सकता है"।इसलिये आप जीवन में अपने माता-पिता को सेवा करने से पीछे नहीं हटना चाहिये,इसलिये माता-पिता का सम्मान कीजिये नहीं तो जीवन की हर सुख-सुविधा रहने के बावजूद भी आपका भला नहीं होने वाला है,क्योंकि माता-पिता तथा परिवार वालों ने कितना कष्ट सहकर आपकी सेवा की है तथा आपको जीवन के उच्च स्थान प्राप्त कराने के लिये जिन्दगी के हर करम को करने का प्रयास किया है।इसी में किसी विद्वान ने लिखा है कि,"काँपते हुये हाथों को झटकिये मत,कसकर थाम लीजिये क्योंकि कुछ रोगों का इलाज दवाओं से नहीं बल्कि माँ की दुआओं से होता है"।

मेरा भी मानना है कि"संघर्ष पिता से सीखें,संस्कार माता से,बाकी सब कुछ दुनियाँ सीखा देगी"।माँ के पहनावे तथा बाप की गरीबी पे कभी शर्म नहीं करनी चाहिये, क्योंकि"माँ की ममता और पिता की क्षमता का भी अंदाजा लगाना मुश्किल है"।

 


आलेख साभार-श्री विमल कुमार

"विनोद"प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा बांका

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