मनोविश्लेषणात्मक लेख।
बाल विकास मनोविज्ञान जो कि बाल्यावस्था के कई चरणों में जैसे -- शैशवावस्था,पूर्व बाल्यावस्था, उत्तर बाल्यावस्था,किशोरावस्था इत्यादि से होकर गुजरती है।
परिवार का संबंध"पालने के पूर्व से लेकर मृत्यु के बाद तक लोगों के जीवन से जुड़ा हुआ है"।बालक जब माँ के गर्भ में पलता है उसी समय से परिवार वाले उस गर्भवती महिला का इलाज कराते हैं,उसके बाद उसके माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्य उसका पालन-पोषण बहुत ध्यान के साथ करते हैं ताकि बच्चा स्वस्थ एवं सुन्दर हो सके।साथ ही कहा जाता है कि"परिवार ही सामाजिक जीवन का सर्वोत्तम पाठशाला है।"परिवार में बच्चा जन्म लेकर पलता है जहाँ उसको प्रेम,दया,सहयोग,शिक्षा,सहिष्णुता,समन्वय आदि गुणों का विकास होता है।साथ ही"माता" किसी भी बच्चे के जीवन का"प्रथम गुरू"मानी जाती है।मनुष्य अपनी जिंदगी में धीरे-धीरे पलता है तथा बड़ा होता जाता है,जहाँ सबसे पहले अपने माता-पिता के साथ जीवन की शुरुआत करता है,फिर प्रौढ़ावस्था में आकर उसकी विवाह कर दी जाती है और फिर जिन्दगी में बाल-बच्चे तथा परिवार के अन्य सदस्य संपूर्ण जीवन आराम,ऐश-मौज मस्ती के साथ-साथ जीवन व्यतीत करते हैं।
"जीवन का आनंददायक पल" तथा सकुन तो लोगों को तब महसूस होता है जब लोग दिनभर की दौड़-भाग भरी जिन्दगी जीने के बाद शाम के समय अपने आशियाने में आकर परिवार वालों के साथ जीवन यापन करते हैं।इसके बिना चाहे आप जितनी भी संपत्ति अर्जित कर लें फिर भी वैसा ही लगता है,जैसे"न तो दिन को चैन है और न ही रात को सकुन है यारों"वाली बात होती है।
जब आप घर पर अपने परिवार वालों के पास जायेंगे तो आपकी सारी थकावट,परेशानी दूर होती हुई नजर आयेगी।परिवार में जाकर जब आप परिवार के सदस्यों के साथ अपने जीवन की दास्तां को साझा करेंगे तो आपको वैसा सुख महसूस होगा जो कहीं भी मिलने वाला नहीं है।
उदाहरण के तौर पर यदि आप किसी संबंधी के यहाँ किसी भी धार्मिक या पारिवारिक समारोह में सम्मिलित हुये हैं तो कार्यक्रम के समाप्ति के बाद भी परिवार के सदस्यों से जुदा होने की इच्छा नहीं होगी।आज के समय में जब भारत के साथ-साथ संपूर्ण विश्व कोरोना वायरस के संक्रमण के चपेट में आकर फँस गया है,वैसी परिस्थति में चाहे कोई कितनी भी संपत्ति कमा रहा हो उसको अपने परिवार के सदस्यों के साथ मिलने की इच्छा कर रही है। आप जब परिवार के सदस्यों के साथ किसी भी कार्यक्रम में शामिल होते हैं तथा उस कार्यक्रम का लुत्फ उठाते हैं तो आपको स्वर्गिक सुख का अनुभव होता है।संसार के हर जीव की तरह मनुष्य को भी परिवार के साथ जीवन जीने में आनंद आता है।
परिवार ही ऐसी जगह होती है,जहाँ लोग अपनी जिन्दगी की हर बात को साझा कर सकते हैं।परिवार से अलग रहकर मनुष्य को जीवन में सुख- समृद्धि की प्राप्ति नहीं हो सकती है।
अंत में,मुझे लगता है कि वह व्यक्ति सबसे सुखी है जो कि दिन भर बाहर कार्य करने के बाद शाम में अपने परिवार के साथ आराम करता है।मनुष्य के साथ-साथ पंछी तथा अन्य जीव-जंतु भी दिन भर बाहर रहने के बाद रात में अपने परिवार के साथ-साथ रहना पसंद करते हैं।आइये जीवन जीने का असल मजा लेते हुये परिवार के सदस्यों के साथ जीवन जीने का मजा लें।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"
प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा, बांका(बिहार

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