Monday, 24 October 2022
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सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका - श्री विमल कुमार
एक सामाजिक,शैक्षणिक लेख।
शिक्षा जीवन का एक अभिन्न अंग है,जिसके बिना लोगों का विकास असंभव नजर आता है,क्योंकि विश्व की सारी समस्याओं की जननी अशिक्षा ही है।बच्चा जब जन्म लेने के बाद माँ के गोद में पलता है ,उसी समय से ही माता-पिता के द्वारा उसे बैठने,खड़ा होने,चलने,फिरने, बोलचाल करने तथा लोगों से मिलने-जुलने तथा दैनिक जीवन जीने की शिक्षा दी जाती है,जिसके आधार पर" परिवार को सामाजिक जीवन का सर्वोत्तम पाठशाला" कहा जाता है।
माता-पिता के साथ-साथ रहकर ही वह अपने जीवन की प्रारंभिक शिक्षा को प्राप्त करता है। सामाज में तरह-तरह के बदलाव जो कि अनवरत रूप से होते ही रहते हैं,जो कि प्रकृति का शाश्वत नियम है,में शिक्षा का सबसे प्रमुख योगदान होता है। सामाजिक परिवर्तन को लाने में शिक्षा की अहम भूमिका होती है।
"शिक्षा वह शक्तिशाली और स्थायी महत्व का कारक या अभियंत्रण है जिससे समाज में सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन लाया जा सकता है"।इसलिये शिक्षा जीवन का अभिन्न अंग माना जाता है,
जिसे निम्न तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया जा रहा है-
(1)"शिक्षा की पाठशाला स्तर पर भूमिका या कार्य विद्यार्थियों का सामाजीकरण करना होता है,न कि सामाजिक परिवर्तन करना"।अतः पाठशाला स्तर पर उनके पाठ्यक्रमों में सामजीकरण या चली आ रही सामाजिक या सांस्कृतिक व्यवस्था व परंपराओं रीति- रिवाज व्यवहार के प्रतिमानों आदि को बनाये रखने पर ही जोर दिया जाता है,इससे उनको अपने समाज और संस्कृति में अपने पैर जमाने दिये जाते हैं।
(2) जब बच्चे महाविद्यालय में आते हैं तब वे मानसिक रूप से बहुत अधिक सीमा तक परिपक्व
हो जाते हैं,वे ऊँची बातों को समझ सकते हैं तब उनको सामाजिक परिवर्तनों के बारे में जानकार बनाया जाता है।
(3) समाज में परिवर्तन लाने में न केवल शिक्षा ही बल्कि अन्य कई अभिकर्ता या कारक कार्य करते हैं,जैसे-राज्य,कानून,न्यायालय , पुलिस,मिलिट्री,अर्थव्यवस्था, राजनेता आदि। इनमें से शिक्षा का प्रभाव सबसे धीमे-धीमे पड़ता है, लेकिन यह स्थायी महत्व का होता है। जहाँ तक शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन की बात आती है,तो निम्न प्रकार के प्रभाव की बात आती है-
(क)शिक्षा सामाजिक परिवर्तन के लिये एक आवश्यक प्राथमिक शर्त होती है,क्योंकि शिक्षा के बिना सामाजिक परिवर्तन ला पाना संभव नहीं है।
(ख)शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का परिणाम भी होता है।ऐसा माना जाता है कि शिक्षा के कारण
ही सामाजिक परिवर्तन हो सकता है।
(ग)"सामाजिक परिवर्तन को लाने वाला संयंत्र या अभिकर्ता की भूमिका शिक्षा ही निभाती है"।बिना शिक्षा के सामाजिक परिवर्तन ला पाना असंभव के साथ नामुमकिन भी है।
शिक्षा की विविध शक्तियों और सामर्थ्य के कारण शिक्षा सामाजिक,आर्थिक,सांस्कृतिक परिवर्तन लाने में एक बहुत महत्वपूर्ण अभिकर्ता बन गयी है। यद्यपि शिक्षा सामाजिक परिवर्तन लाने का एक प्रमुख साधन के रूप में काम करता है,इसके बाबजूद भी इसकी बहुत सी बाधायें हैं,जैसे-
( 1)बहुत सारी गंदी बस्तियों की पाठशाला में स्वच्छता संबंधी तथा स्वच्छ पेयजल संबंधी समस्या देखने को मिलती है।
(2) अधिकांश शिक्षण संस्थाओं में शिक्षकों की कमी देखने को मिलती है।
(3)शिक्षा की गुणवत्ता की चर्चा तो होती है,लेकिन शिक्षा के घिसा पिटा ढर्रा चलने के कारण तथा संसाधनों की कमी होने के कारण शिक्षा की गुणवत्ता घटिया तथा सोचनीय लगती है।
(4)विश्वविद्यालयों,शिक्षा संस्थाओं कार्यालयों में भी लालफीताशाही के कारण कार्य में अनावश्यक देरी देखने को मिलती है।
(5) शिक्षण संस्थाओं में धर्म--निरपेक्षता की बात तो की जाती है लेकिन यह सर्वविदित है कि "धर्म,जाति और राजनीतिक दबाव से शिक्षकों की नियुक्ति एवं विद्यार्थियों का प्रवेश होता है।
(6)आज शिक्षा बहुत महंगी होती जा रही है,जिसके चलते लगाता है कि बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण एक बहुत बड़ा प्रतिशत शिक्षा से वंचित रह जाने को बाध्य हो जायेगा।
(7)साथ ही सरकार के द्वारा शिक्षा पर तुरंत-तुरंत किये जा रहे प्रयोगों से भी शिक्षक तथा शिक्षा में गुणात्मक परिवर्तन तथा सुधार लाने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
अंत में,हम कह सकते हैं कि अधिकतर लोग सामाजिक परिवर्तन का अर्थ ऊँची आर्थिक संपन्नता और ऊँची सामाजिक स्थिति पाना मानते हैं और शिक्षा का सारा प्रयास इसी ओर लग गया।
इन सभी बातों के अलावे भी आज सर्वशिक्षा अभियान,समग्र शिक्षा,बिहार शिक्षा परियोजना तथा राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के द्वारा शिक्षा में आमूल-चूल परिवर्तन लाने के साथ-साथ शिक्षा में परिवर्तन
लाने का प्रयास किया जा रहा है जो कि अत्यंत ही सराहनीय है।
"विनोद"प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा,बांका(बिहार)।

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