"धैर्य" -श्री विमल कुमार "विनोद" - Teachers of Bihar

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Monday, 24 October 2022

"धैर्य" -श्री विमल कुमार "विनोद"

एक मनोविश्लेषणात्मक लेख।

"धैर्य"का साधारण अर्थ होता है, विपरीत परिस्थिति में भी अपने लक्ष्य की प्राप्ति करने के लिये संघर्ष करना।लोगों को जीवन में अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिये जीवन के बुरे दिनों में भी संघर्ष करना चाहिये।

कहानी है एक ही परिवार के दो भाईयों की जो कि दोनों एक ही माता-पिता के संतान हैं,दोनों को एक ही माँ ने अपने गर्भ से जन्म दिया तथा दोनों को एक ही तरह से शिक्षा देने का प्रयास किया।कहानी कुछ ऐसी है कि बड़ा होकर दोनों भाई एक दिन एक आॅटो रिक्सा से जा रहा था।ऐसे समय में दोनों एक ही तरह का वस्त्र पहन कर किसी संबंधी के घर पर जा रहा था,तो एक जो कि बेरोजगारी की मार से जूझ रहा था तथा दूसरा जो कि अच्छी सरकारी नौकरी कर रहा था,आपस में बेरोजगार करने वाला कहता है कि भाई तुम और हम दोनों एक ही माता-पिता के संतान हैं।हम दोनों को माता- पिता के द्वारा बहुत लाड़-प्यार से पालन-पोषण किया गया।जब हमलोग पढ़ने जाते थे तो माता जी दोनों को एक ही तरह का भोजन बनाकर खिलाती थी और नाश्ता भी बनाकर देती थी।किसी भी कार्यक्रम के दौरान हमलोगों को एक ही तरह के कपड़े दिये जाते थे तथा दोनों की परवरिश एक ही प्रकार से की गई लेकिन तुम पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी करने लगा तथा मैं यों ही बेरोजगार रह गया।लगता है कि भगवान ने हम दोनों के साथ बहुत ही बड़ा भेदभाव किया है।तब दूसरा भाई कहता है कि नहीं भाई ऐसी बात नहीं है,भगवान ने हम दोनों के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया है,बल्कि हम में से ही कोई गलती हुई है जिसके चलते तुम सरकारी नौकरी में चले गये और मैं यों ही बेरोजगार रह गया।

एक उदाहरण के तौर पर कहा गया कि दो संगमरमर के पत्थरों को ट्रक में लादकर जब राजस्थान से कहीं ले जाया जा रहा था दोनों के बीच टकराने से जो आवाज निकली तो एक कहता है कि भाई यह बताओ कि दोनों एक ही खदान से निकले हैं।दोनों का एक ही रंग-रूप है,लेकिन मुझे काटकर छोटे-छोटे टुकड़ों में मंदिर के फर्श पर लगाया जाता है,जिसमें पैर रखकर लोग मंदिर में पूजा करने जाते हैं।जबकि दूसरी ओर तुम हो जो मेरे ही तरह उसी खदान से निकले हो,मेरे ही तरह तुम्हारा भी रंग है,जिसकी बनी हुई मूर्ति को लोग मंदिर में पूजा करते है।तब वह संगमरमर की मूर्ति कहता है कि खदान से निकालने के बाद तुम्हारी ही तरह ही मुझे भी अनेकों बार हथौड़ा और छेनी से मारा गया होगा,जिस प्रकार तुमको भी मारा गया होगा।लेकिन मैं हजारों बार हथौड़ा और छेनी की मार सहकर भी नहीं टूटा और उसकी मार को सहता रहा    लेकिन तुमको जब हथौड़ा मारा जाता था तो तुम टूट जाते थे।इसीलिए कहा गया है कि"जो टूट गया सो कंकड़ और जो नहीं टूटा वह शंकर"हो गया।

उसी प्रकार उन दोनों भाइयों में एक कहता है कि हम दोनों भाई जब पढ़ने विद्यालय जाते थे तो वहाँ शिक्षक के द्वारा जब सीखाने की कोशिश की जाती थी,जहाँ तुम्हें कठिन लगने पर तुम वर्ग कक्ष से भाग जाते थे,लेकिन मैं तो कठिन परिस्थिति में भी पढ़ता ही रहा और तुम पढ़ाई छोड़कर भाग गये। हम दोनों के साथ जिन्दगी में बहुत बड़ी-बड़ी विपत्ति आती रही ,जिसे मैं झेलता रहा और एक तुम थे जो कि इस विपत्ति को नहीं झेल पाये और अपनी पढ़ाई को बीच में ही छोड़ दी।

अंत में मेरा मानना है तथा प्रकृति का भी अकाट्य सत्य है कि जो व्यक्ति जीवन में संघर्ष करके भी आगे बढ़ना चाहता है तथा सच्ची लगन एवं धैर्य के साथ अपने जीवन पथ लगातार बढ़ता ही जात है वह सफल होता है।जैसा कि वह संगमरमर जो कि हथौड़ा और छेनी की चोट से टूट गया वह मंदिर के फर्श पर लगा दिया गया और जो हजारों बार हथौड़ा और छेनी की चोट लगने के बाद भी नहीं टूटा वह मंदिर में पूजा की मूर्ति बनकर बिराजमान हो गया।इसलिये मेरे दोस्त जीवन में यदि तरक्की करना है तो संघर्ष करो निश्चित ही सफलता हाथ लगेगी।इसलिये किसी संत ने कहा है कि"जो व्यक्ति जीवन से हारकर टूट गया वह कंकड़ बन गया और जो नहीं टूटा वह शंकर हो गया।"


आलेख साभार श्री विमल कुमार "विनोद"प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय

पंजवारा,बाँका(बिहार)

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