पत्र लेखन और उसका महत्त्व - देव कांत मिश्र 'दिव्य' - Teachers of Bihar

Recent

Saturday, 29 October 2022

पत्र लेखन और उसका महत्त्व - देव कांत मिश्र 'दिव्य'

अपने मनोभावों व विचारों को प्रकट करने के लिए पत्र एक उत्तम माध्यम है। इसके द्वारा अपने मन के भावों की अभिव्यक्ति हम अपने से दूर रहने वाले परिचितों व सगे- सम्बंधियों को करते हैं। यों तो पत्र-लेखन का शाब्दिक अर्थ है - कागज पर अपनी बातों को लिखना। सबसे पहले अपने मानस पटल पर अपने भावों को उकेर कर तथा लिखित रूप देकर दूसरों को प्रेषित करते हैं। निजी अथवा व्यापारिक सूचनाओं को प्राप्त करने व प्रेषित करने हेतु पत्र- व्यवहार विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है। सम्प्रति वैयक्तिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं व्यावसायिक सभी क्षेत्रों का व्यापक साधन बन गया है। प्रेम, क्रोध, प्रार्थना, जिज्ञासा, आदेश, निमंत्रण आदि अनेक भावों को व्यक्त करने के लिए पत्र लेखन का सहारा लिया जाता है।


महत्त्व: यथार्थ की कसौटी पर देखा जाए तो पत्र लेखन के निम्नलिखित महत्त्व हैं:

०१. कागज पर कलम रखने की गति स्पष्टता और शांति प्रदान करती है।

०२. जब हम अशांत या उदास की स्थिति में रहते हैं उस वक्त यह हमारी चिंता को दूर करने में सहायक होता है।

०३. अन्वेषण से यह पता चला है कि  प्यार को साझा करने हेतु अपने निकटतम और प्रियतम को पत्र लिखना एवं अपनी प्रशंसा दिखाने से  आपको प्रसन्न व संतुष्टि का अनुभव करने में सहायता मिल सकती है।

०४. पत्र में तथ्यों का विशेष महत्त्व है। क्योंकि यह किसी सटीक जानकारी के आदान-प्रदान हेतु किया जाता है।

विशेषता:  यदि पत्र की विशेषताओं पर दृष्टि डाली जाए तो निम्नलिखित बातें परिलक्षित होती हैं:

०१. पत्र की भाषा सरल, बोधगम्य, शुद्ध, शिष्ट व प्रवाहपूर्ण होनी चाहिए।

०२. वर्तनी का सुंदर प्रयोग व लिखावट स्पष्ट होनी चाहिए।

०३. पत्र में हृदय के भाव स्पष्ट रूप से व्यक्त होने चाहिए।

०४. लिफाफे के ऊपर पता शुद्ध व स्पष्ट लिखा होना चाहिए। पिनकोड का सही प्रयोग होना चाहिए ताकि पत्र गन्तव्य स्थल तक पहुँच जाए।

०५. पत्र में अनावश्यक बातों के प्रयोग से बचना चाहिए।

०६. जिसके लिए पत्र लिखा जाए, उसके लिए पदानुसार शिष्टाचारपूर्ण शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।

०७. अपनी बात को उचित साबित करने के लिए समुचित तर्क प्रस्तुत करना चाहिए।

०८.पत्र लेखन में सम्बोधन का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।


पत्र के प्रकार: यों तो पत्र अपनी- अपनी तरह के अलग- अलग होते हैं, फिर भी गुणात्मक दृष्टि से मुख्यत: ये दो प्रकार के होते हैं:

०१. अनौपचारिक( निजी या व्यक्तिगत पत्र) ०२. औपचारिक पत्र( व्यावसायिक या कार्यालय पत्र)   यों तो पत्र लेखन में संक्षिप्तता का होना आवश्यक है। परन्तु  सम्पादक के नाम लिखा गया पत्र भावपूर्ण तथा विस्तृत भी हो सकता है। उदाहरणस्वरूप -

किसी दैनिक पत्र के सम्पादक के नाम पत्र द्वारा प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित अपने क्षेत्र की समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट करें। इस तरह का पत्र विस्तृत हो सकता है। निमंत्रण-पत्र, आमंत्रण-पत्र, शोक-पत्र/ सान्त्वना-पत्र तथा बधाई- पत्र के नमूने छोटे होते हैं। इस तरह पत्र लेखन का महत्व है। लेकिन आज सोशल मीडिया के दौर में मोबाइल, दूरभाष, इंटरनेट ने इसका स्थान ले लिया है। खैर जो भी हो, पत्र लेखन में जो आनंद, हर्ष व उत्साह है वह अन्यत्र दुर्लभ है। विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों को पत्र लेखन का समय- समय पर अभ्यास करना चाहिए। निरंतर अभ्यास करते रहने से वे इस कला में निपुण हो जाएँगे। एक कुशल शिक्षक को भी विभिन्न तरह के पत्रों के प्रकारों की चर्चा करते हुए सप्ताह में एक दिन अभ्यास करवाना चाहिए।

                                        


देव कांत मिश्र 'दिव्य' 

मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, 

No comments:

Post a Comment