आसान कहां है बच्चा होना...
झूठों के भीड़ में सच्चा होना..
अच्छा नहीं है अच्छा होना....
आसान कहां है बच्चा होना...
दोस्तों,
सर्वप्रथम आप सभी को बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। आज बाल दिवस है। आज का दिन हमारे देश में बड़े ही धुमधाम से मनाया जाता है,बड़ी अच्छी बात भी है लेकिन क्या वास्तव में आज हम बचपन को संवारने का काम कर पा रहे हैं,क्योंकि आज भी कहीं ना कही लगता है कि बच्चों का बचपन सिकुड़ता सा जा रहा है।
वर्तमान व्यवस्था में बचपन के कई रंग हमारे आस-पास मौजूद हैं। कहीं बस्ते के बोझ से दबा बचपन, तो कहीं ईंट के भार से कराहती मासूमियत। कहीं गजेट्स में मशगूल किशोर, तो कहीं दो जून की जुगाड़ में भटकता निर्दोष शैशव। यदि गहराई से देखा जाय, तो दोनों ही रूप डरावने हैं। एक में अभाव, बेबसी और लाचारी है, तो दूसरे में अंतहीन महत्त्वाकांक्षा, किंतु इन दोनों में जो समान है, वह है- संवेदनहीनता। सूखती संवेदना के कारण बच्चों में हिंसा, क्रोध, नशा, अपराध आदि बड़ी तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है, मानो शिक्षा और नैतिकता के बीच फासला बढ़ रहा है।
किसी भी राष्ट्र का भविष्य उस देश की कक्षाओं में पलता है। इसलिए एक शिक्षक होने के नाते हमारा यह कर्तव्य है कि देश के नौनिहालों का बचपन बरकरार रखें। ये अपने जीवन को खुल कर जिएं। नैतिकता और विवेक से हम इन्हें लैस करें। अनावश्यक दबाव बनाने से बचें। यह समझाने की कोशिश करें कि सफलता बेशुमार धन-दौलत कमाने में नहीं, बल्कि नेक इंसान बनने में है। शिक्षा का असली उद्देश्य भी यही है। बचपन और शिक्षा एक दूसरे के पूरक बनें, विरोधी नहीं।
और अंत में आप सभी को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में मनाए जाने वाले बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
धन्यवाद !
सबका साथी
मृतुन्जय कुमार
(शिक्षक)
म०वि०BMP-2,डिहरी
No comments:
Post a Comment