बैगलेस और हम - श्री विमल कुमार "विनोद - Teachers of Bihar

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Saturday, 12 November 2022

बैगलेस और हम - श्री विमल कुमार "विनोद

 हमारी शिक्षा व्यवस्था नित्य नये-नये प्रयोगों पर काम करने की कोशिश करती है।इसके लिये छोटे-छोटे नौनिहाल बच्चों को भी मोटे-मोटे, भारी-भरकम बस्ते के बोझ से दबा कर कम उम्र में ही झुककर चलने को मजबूर कर दिया जाता है।कम उम्र के छोटे-छोटे नौनिहाल बच्चों को घर में जबर्दस्ती चार बजे शाम के बाद पढ़ने को मजबूर किया जाता।

बाल विकास व मनोविज्ञान का मानना है कि बच्चों में बचपन में किसी भी चीज को कंठस्थ करने की शक्ति अधिक होती है लेकिन वह आगे चलकर ढहने लगती है।साथ-ही बच्चों को यह दिखाने के लिये कि हमारे बच्चे बहुत तेज हैं उसको सुबह पांच बजे ही जगाकर विद्यालय जाने को मजबूर किया जाता है।अपने कंधों पर भारी-भरकम बस्ते को लेकर चलने के चलते वह लगातार बस्ते के बोझ से दबते चला जाता है।

चूँकि किसी भी बच्चा या व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होना जरूरी है।इसके लिये विद्यालय में वर्ग कक्ष के अंदर तथा बाहर उसका चहोउन्मुखी विकास होना आवश्यक है।इसके लिये उसको खेलना-कूदना,गाना, नृत्य तथा तरह-तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेना आवश्यक है।इसके लिये बिहार शिक्षा परियोजना, राज्य शैक्षिक शोध एवं प्रशिक्षण परिषद पटना तथा सर्वशिक्षा- अभियान के द्वारा बैगलेस शनिवार मनाने का मतलब है-कम-से-कम सप्ताह में एक दिन बच्चों के मन मस्तिष्क से भारी बस्ते के बोझ की ओर से ध्यान हटाकर अपने मन के मुताबिक खेलकूद,गीत-गजल,नृत्य  संगीत आदि के द्वारा मन-मस्तिष्क को खुले गगन के नीचे बिना किसी बोझ के विकसित होने देने का प्रयास है।

आइये हम सभी मिलकर बच्चों को इस बैगलेस शनिवार में नये-नये पंख लगाकर उड़ान भरने दें।


आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"

प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा,

बांका(बिहार)


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