वास्तविकता पर आधारित लेख।
प्रकृति का यह शाश्वत नियम है कि जिस जीव ने जन्म लिया है,उसको मृत्यु को वरण करना ही होगा।अर्थात जिसका उदय हुआ है,उसका अस्त होना निश्चित है। इसके बाबजूद भी लोग इस संसार में आकर लोभ,लालच, अपना-पराया,लूट-खसोट के चक्कर में पड़ कर अपने-पराये को तबाह करने पर आमदा रहते हैं।जिन्दगी जिसको हम अपना समझते हैं वह तो बेबफा है जो कि एक दिन ठुकरायेगी,मौत महबूबी है जो कि साथ लेकर जायेगी।
मेरा यह आलेख"क्या भरोसा है जिन्दगी का"जीवन की वास्तविकता पर आधारित है।एक किसान जो कि अपने खेतों में धान रोपने के लिये बीज डालते हैं कि कुछ दिनों के बाद जब बीचड़ा बड़ा हो जायेगा तो धान रोपेंगे, लेकिन बीज डालने के कुछ ही दिनों बाद उसकी असामयिक निधन हो जाती है। कोई भी मनुष्य बड़े अरमान के साथ अपने बाल-बच्चे के जीवन को बनाने का प्रयास तो करता है
लेकिन ज्यों ही वह अपना भविष्य को संवारने की कोशिश करता है, प्रकृति का उसके उपर वज्रपात हो जाता है और वह दुनियां से यों ही चला जाता है। जीवन में किसी ने कल को नहीं देखा है,क्योंकि कल कभी भी नहीं आता है,इसलिये नित्य नये-नये रचनात्मक कृत्य को कीजिये ताकि आपका जीवन मंगलमय हो।लेकिन लोग सारे चीजों को जानते हुये भी ठीक वैसा ही जैसे कि,"मेढ़क सर्प के गाल में जकड़े रहने के बाबजूद भी अपना मुँह खोले रहता है ताकि कोई कीट उसके मुँह में भक्षण करने के लिये आ जाये"के फिराक में लगा हुआ रहता है।
मुझे लगता है कि"इस बिना भरोसे की जिन्दगी का भरपूर आनंद लेना चाहिये तथा जो भी व्यक्ति जिस क्षेत्र में हो वहाँ अपने कर्तव्य का दिल से निर्वहन करना चाहिये ताकि इस दुनियां से जाने के बाद बस एक सुन्दर,मुस्कुराता हुआ नाम रह जायेगा।इसलिये जीवन का आनंद लीजिये तथा अपने कर्म भूमि में उत्कृष्ट कार्य करने का प्रयास कीजिये ताकि"बस याद रह जायेगी"।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"
प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा,(बांका
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