टूटते-रिश्ते - श्री विमल कुमार "विनोद" - Teachers of Bihar

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Friday, 11 November 2022

टूटते-रिश्ते - श्री विमल कुमार "विनोद"

"रिश्ता"यानि संबंध जीवन की एक अमूल्य धरोहर होती है।इस रिश्ते की शुरूआत वैवाहिक, सामाजिक,पारिवारिक संबंधों के विकसित होने से होती है,जो कि लोगों के आपसी सहयोग,सौहार्द, प्रेम,आचार-विचार पर निर्भर करता है।जब परिवार में कोई वैवाहिक संबंध जुड़ता है तो दो परिवार के लोगों के बीच एक नया रिश्ता जुड़ने लगता है।यह संबंध कई प्रकार का होता है,जैसे एक नर का एक नारी के साथ विवाह करके एक नया संबंध बनाता है।दूसरा यह है कि परिवार में एक ही माता के गर्भ से जन्म लिये दो संतान,संयुक्त परिवार में कई पीढ़ी के लोग,समाज में रहने वाले भिन्न-भिन्न जाति,धर्म, संप्रदाय,समुदाय के लोग जो कि समाज में एक साथ रहते हुये भाई चाचा-चाची,दादा-दादी आदि का संबंध बनाकर रहते हैं तथा लोगों के सामने परस्पर सौहार्द एवं प्रेम का संदेशा देते हैं। लेकिन धीरे-धीरे इस संबंध में छोटी-छोटी सी बातों को लेकर आपसी हित में टकराव,धन-संपत्ति का आपस में बंटवारा,एक दूसरे को नीचा दिखाते हुये आगे बढ़ने का प्रयास करना,मानसिक रूप से हम बड़ा कि तुम बड़ा की बात सोचना,एक दूसरे की तुलना में अधिक संपत्तिशाली होना।हमारा यह आलेख आज के समय में परिवार में बढ़ते आपसी कलह या संबंधों के खटास पर आधारित है।

लेखक ने इस"टूटते-रिश्ते"आलेख को आज की वर्त्तमान परिस्थिति को ध्यान में रखकर प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।सबसे पहले एक ही माता-पिता के दो संतान जो कि एक ही माता के गर्भ से जन्म लिये तथा एक ही पालने में पले हैं लेकिन ज्यों-ज्यों वे बढ़े होते गये तथा एक दिन ऐसा भी आया कि दोनों एक दूसरे के खून के प्यासे हो गये।ऐसा लोग कहते हैं कि भाई को भाई का दुश्मन बनाती है-"जोरू,जमीन और लोगों की घटिया सोच"।कल तक दोनों भाई एक साथ खाते थे,माँ एक ही बिछावन में सुलाती थी,एक ही माली उसको सींचने का काम करता था,लेकिन विवाह होने के बाद दोनों एक दूसरे से अलग- अलग रहने तथा खाने पीने की बात क्यों सोचने लगे।जीवन में परस्पर एक दूसरे के बारे में सोचने-समझने की शक्ति में जब गिरावट आने लगती है तो परिवार धीरे-धीरे टूट की राह पर बढ़ने लगता है।बहुत समय ऐसा देखा जाता है कि बेटा की शादी होने के बाद वह अपनी पत्नी को लेकर अलग हो जाता हृ तथा अपने माता-पिता का ख्याल भी नहीं रखता है।इसी तरह की बात लगभग 99% परिवार में देखने को मिलती है कि जरा-जरा सी बात में मतांतर हो जाता है और आज के समय में बात-बात पर थाना में मुकदमा करना,गाँव में छोटी-छोटी सी समस्या को लेकर पंचायती करना तथा हर समय आपस में कच-कच करते रहना लोगों की नियति सी हो गई है।इसी पर एक उक्ति है कि"मुझे अपनों ने तो लूटा गैरों में कहाँ दम था,किश्ती मेरी वहीं डूबी जहाँ पानी कम था"।हाय रे परिवार तथा समाज के लोग जहाँ पर एक सहोदर भाई दूसरे भाई का खून का प्यासा हो चुका है।कुछ समय तो देख कर यह समझ में नहीं आती है कि आखिर हो क्या रहा है,ठीक वैसे ही कि,देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान,कितना बदल गया इंसान"।आज के इंटरनेट तथा सोशल मीडिया के जमाने में देखा जाता है कि सुबह होते ही मोबाइल पर नीति युक्त, सद वचनों तथा नीतियुक्त संदेशों की भरमार सी लगी रहती है।लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि मोबाइल में भेजे गये नीति युक्त संदेश लोगों के विचार को बदलने में असमर्थ दिखाई पड़ते हैं।

अंत में मुझे लगता है कि कुछ  लोगों की नियति होती है,कि वह न तो स्वंय चैन से रहेगा और न ही दूसरों को चैन से रहने देगा।संसार में अधिकतर लोग ऐसे होते है जिनका काम ही होता है"समाज में बिखराव का बीजारोपण करना"।लेकिन समझदार लोग को इससे बचने का प्रयास करना चाहिये।लेकिन बचने का मतलब यह भी नहीं होता है कि हम अपने हक को लेने से पीछे भागते जायें।क्योंकि गुनाह करने वाले से ज्यादा गुनाह सहने वाला दोषी होता है।इसके बाबजूद भी लोगों को चाहिये कि जीवन में"टूटते- दरार"को कम करने की कोशिश करे,लेकिन आज के समय में यह बात भी सत्य ही नजर आती है कि लोग अपने सुख से सुखी नहीं है,बल्कि दूसरों के दुःख से सुखी है।

       इस आलेख का लेखक भी समाज की वर्तमान स्थिति से मानसिक रूप से आहत है,जो कि इस"टूटते-रिशते"को बचाने का प्रयास तो करता है,लेकिन बाद बाकी भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ है।


आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"

प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा

(बांका)बिहार।

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