वर्तमान व्यवस्था पर आधारित आलेख।
"धन का अर्थ है रूपया,पैसा,जेवर-जेवरात तथा अन्य संपत्ति"। यह एक ऐसी चीज है जो लोगों को समाज में धनाढ्य के रूप में इज्जत,सोहरत प्रदान करती है।इसको प्राप्त करके लोग समाज के"सामंत"माने जाते हैं तथा विलासितापूर्ण जिन्दगी व्यतीत करने के लायक हो जाते हैं। इसे प्राप्त करने के लिये लोग इस संसार में किसी भी हद तक चले जाते हैं, जिसके लिये उनको इज्जत,प्रतिष्ठा का कोई भय नहीं होता है।
आज का युग आर्थिक युग है,जहाँ "टका ही धर्मम,टका ही कर्मम टका ही सर्वमम"की बात होती है।जहाँ कहा जाता है कि"बाप बड़ा न भैया,सबसे बड़ा रूपया" वाली बात होती है। कुछ लोग धन नहीं बल्कि सरस्वती को अर्जित करना अधिक पसंद करते हैं,क्योंकि ऐसा माना जाता है कि "सरस्वती का उपासक कभी भी किसी का गुलाम नहीं होता है"।
"धन"जो कि लोगों को किसी भी हद तक जाने के लिये मजबूर कर देती है।कहा जाता है कि कोई भी व्यक्ति आकूत संपत्ति कमाने के लिये बहुत सारे घृणित कार्य तक कर बैठते हैं, जिसे देखकर"मानवता शर्मसार"होने लगती है,लेकिन वही होता है कि गलत तरीके से कमायी गयी संपत्ति एक समय किसी भी काम की नहीं रहती है,उदाहरण स्वरुप एक व्यक्ति जिसके आँखों में गलत तरीके से संपत्ति कमाने का काला चश्मा चढ़ा हुआ था,लेकिन ऐसा हुआ कि एक समय ऐसा हुआ कि उसकी कमायी की कीमती चीजों को उसका सेवक खाता था और बेचारा मालिक को सूखी रोटी और करेली का भुजिया नसीब होता था।
ऐसा भी माना जाता है कि"कोई भी व्यक्ति ईमानदार तभी तक है,जबतक उसको नहीं मिला है।" कभी दिल में एक दर्द सी होने लगती है,जबकि लोग पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर किसी भी छोटे कर्मी पर जबर्दस्ती अपने अधिकार का प्रयोग करते हैं,जिसके कोप से अगले को शांति नहीं मिलती है,लेकिन लोगों के मन में अपनी औकात दिखाने वाली बात कौंधती रहती है,जो कि क्षणिक होती है,क्योंकि"अधिक संपत्ति विलासिता पूर्ण जीवन दे सकती है,दिल को शांति और चैन नहीं।"
अंत में हम कह सकते हैं कि धन, सत्ता,शक्ति लोगों पर अपनी जितनी भी भारी भरकर बोझ का दबाव डालना चाहे वह "सरस्वती के उपासक"के सामने पंगु बनकर तबाही के मंजर को झेलने के लिये मजबूर हो जाता है।
इसलिए मुझे विश्व के तमाम शक्तिशाली लोगों से करबद्ध प्रार्थना है कि अपने से छोटे,कमजोर, असहाय तथा निचले वर्ग के लोग जो आपकी कृपा पर जीने को मजबूर हैं, पर अपनी कृपा बरसा कर निचले तबके के लोगों को भी"जीयो और जीने दो"का अधिकार देने का प्रयास करें।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"
प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा, बांका(बिहार)

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