जगदीश चंद्र बोस: विलक्षण प्रतिभा के धनी वैज्ञानिक
रचनाकार: देव कांत मिश्र 'दिव्य'
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हमारा देश विलक्षण व प्रतिभाशाली व्यक्तित्व से भरा-पड़ा है। इन्हीं में से डा. जगदीश चंद्र बोस का नाम आदर के साथ लिया जाता है। वे भारत के ख्यातिलब्ध वैज्ञानिक थे। उनका जन्म ३० नवंबर, १८५८ को बंगाल के मेमेनसिंह नगर में हुआ था। उनके पिता का नाम भगवान चंद्र बोस तथा माता का नाम बामा सुंदरी था। इनकी माँ धार्मिक स्वभाव की थीं। इनकी प्रारंभिक शिक्षा वर्नाक्यूलर में हुई थी। इनकी माँ हमेशा कहती रहती थी कि पुत्र! "अपने अध्ययन के प्रति सतत् क्रियाशील रहो और अपने नाम के अनुरूप काम करके दुनिया में नाम रौशन करो।" इनकी अभिरूचि विज्ञान विषय में अधिक थी। प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के पश्चात् स्नातक की पढ़ाई कलकत्ता के सेंट जेवियर्स स्कूल से पूरी की। इसके बाद मेडिसिन की पढ़ाई हेतु लंदन विश्वविद्यालय गए। परन्तु स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़कर कैंब्रिज विश्वविद्यालय आ गए और प्रसिद्ध वैज्ञानिक लार्ड रेले के साथ काम किया। वरिष्ठ वैज्ञानिक के कार्यानुभव से इन्हें बहुत लाभ हुआ और अन्वेषण करने की जिज्ञासा दिनोंदिन बढ़ती गई। इन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने लक्ष्य के प्रति कदम बढ़ाते गए। स्वदेश आने के बाद वह कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्राध्यापक बन गए। विभिन्न संचार माध्यमों जैसे -रेडियो, दूरदर्शन, रडार, सुदूर संवेदन ( remote sensing) सहित माइक्रोवेव ओवन की कार्यप्रणाली में इनकी अहम भूमिका है। परन्तु उनके इस काम को उस समय दुनिया ने नहीं जाना। बाद में इटली के वैज्ञानिक मार्कोनी ने जब रेडियो को लेकर काम किया तो इस हेतु उन्हें नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। पर बाद में अमेरिकी संस्था इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स ने यह स्पष्ट किया कि रेडियो के असली आविष्कारक मार्कोनी नहीं बोस थे। उन्हें विदेश से अनेक बार प्रलोभन दिया गया परन्तु इन्हें तो अपनी मातृभूमि और स्वदेश से प्रेम था। वे अपने देश के लिए ही कुछ करना चाहते थे। वे पहले ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने साबित कर दिया कि पेड़ -पौधे भी हमसबों के जैसा संवेदनशील (sensitive) होते हैं। जिस तरह हमें दर्द की अनुभूति होती है ठीक उसी तरह उन्हें भी काटने पर कष्ट होता है और वे मर जाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि वे भी सुख- दुख, सर्दी- गर्मी, प्रकाश, भोजानादि का अन्य प्राणियों के जैसा अनुभव करते हैं। ऐसा सिद्ध करने हेतु इन्होंने पौधों में जहर का इंजेक्शन लगाया और देखते ही देखते वह पौधा मुरझा गया। हमें भी अपने विद्यालयों में छात्रों को पेड़- पौधों को नहीं काटने की सलाह देनी चाहिए। हम जितना पेड़ लगाएँगे, हमारा पर्यावरण उतना स्वच्छ रहेगा। उसे दर्द की अनुभूति के बारे में भी बताया जाना चाहिए। उदाहरणस्वरूप यदि त्वचा पर पिन चुभाया जाए तो तुम्हें कैसा लगेगा? दर्द की ही अनुभूति होगी। उसी प्रकार हमें पेड़ों को नहीं काटना चाहिए और न ही अनावश्यक प्रहार करना चाहिए। इससे विद्यालयी छात्र संवेदनशीलता के बारे में जान सकेंगे। इस प्रकार निर्जीव पदार्थों, वनस्पतियों और प्राणियों में सादृश्य दिखाकर जो महान् कार्य उन्होंने किया वह चिरस्मरणीय रहेगा। आज वह हमारे बीच नहीं हैं, पर उनके अनुसंधान आज भी वैज्ञानिकों का पथ- प्रदर्शन कर रहे हैं।
देव कांत मिश्र 'दिव्य'
शिक्षक मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

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