मानव मात्र के कल्याण की मूर्ति थे-ईसा मसीह- श्री विमल कुमार"विनोद" - Teachers of Bihar

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Saturday, 24 December 2022

मानव मात्र के कल्याण की मूर्ति थे-ईसा मसीह- श्री विमल कुमार"विनोद"

प्रत्येक व्यक्ति की जीवन में अपनी कुछ सोच होती है ,जो कि दूसरे व्यक्ति से अलग होती है।इनमें से कुछ लोग जो कि अपने उत्कृष्ट विचारों को दूसरे लोगों के बीच बाँटने की कोशिश करते हैं। ऐसे ही लोगों के उत्कृष्ट विचार विश्व कल्याण के लिये जन कल्याणकारी रूप में सामने आती हैं।किसी भी प्रकार के बहुजन हिताय,बहुजन सुखाय विचारों को धारण करने वाली चीज ही उनके लिये धर्म मानी जाती है।किसी भी प्रवर्तक के द्वारा बताये गये सदविचार को मानने वाले उनके अनुयायी कहलाते हैं। बाइबिल और न्यू टेस्टामेंट नामक धर्मग्रन्थ के आधार पर यह माना जाता है कि ईसा मसीह का जन्म जेरूसलम के बेथलेहम नामक जगह में मरियम नामक कुंवारी कन्या के गर्भ से 24 दिसंबर के 12 बजे रात्रि में  हुआ था, इसलिये 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म दिन मनाया जाता है।इनके पिता का नाम युसुफ था ,जो कि जाति के बढ़ई थे।जन्म के बाद से   30 वर्ष की उम्र तक ईसा मसीह ने बढ़ई का काम किया।ईसा मसीह क्षमा,शांति,दया, तथा सद्व्यवहार की मूर्ति थे।

ईसा मसीह ने जाॅर्डन में विद्वान यहोना नामक व्यक्ति से शिक्षा प्राप्त की जो कि जाॅर्डन नदी के तट पर अवस्थित है।ईसा मसीह ने "स्वर्ग के राज्य की कल्पना को सहज रूप में प्रस्तुत किया"उनका  मानना था संसार में पाप का राज्य है,इसके बाद ईश्वर के राज्य का उदय होने वाला है।यीशू मसीह का मानना था कि तुम्हें केवल प्रेम करने का अधिकार है,पड़ोसी के साथ मित्रता का प्रयोग करो। यीशू मसीह ने जीवन में सफलता के लिये लोगों को पाँच बातें बतलायी-

(1)चिंता मत करो,हमारा दुःख, मुसीबत सभी चीजें ईसा मसीह ने अपने उपर ले ली हैं।

(2)सही दिशा,सावधान तुम मनुष्यों को दिखाने के लिये अपने धर्म की काम न करो,नहीं तो अपने स्वर्गीय पिता से कोई भी फल नहीं पाओगे।

(3)दूसरों की गलती को माफ करना।साथ ही तुम यह याद रखना कि यदि तुम्हारा बायाँ हाथ दान कर रहा है तो दाहिना हाथ उसे न जान पाये। दूसरों की गलती को माफ करना जानो।अगर तुम दूसरे की गलती को माफ करोगे तो तुम्हारी गलती को भी लोग माफ कर देगा।

(4)किसी भी व्यक्ति पर झूठा आरोप न लगाओ,क्योंकि जिस प्रकार तुम दूसरों पर दोष लगाते हो,उसी प्रकार तुम्हारे उपर भी लोग दोष लगाता है।

(5)परमेश्वर से प्रार्थना के द्वारा मांगना,जो कोई मांगता है उसे मिलता है।जो खटखटाते है उसे प्राप्त होता है।

   प्रभु यीशु मसीह की तुलना श्री कृष्ण से-

   प्रभु यीशु के जन्म दिवस क्रिसमस में चरनी का विशेष महत्व है। ईसाई धर्मावलंबी अपने घरों ,संस्थानों में चरनी बनाकर उसमें प्रभु यीशु के बाल रूप को रख कर पूजा अर्चना करते हैं।उसके साथ ही गड़ेरिया गाय,बकरी,ऊंट,भेड़ आदि की प्रतिमाओं से विशेष साज सज्जा करते हैं। सिनोला बताती है कि चरनी का अर्थ होता है अस्तबल।

25 दिसंबर के दिन लोग सभी के घरों में जाते हैं और प्रभु ईसा मसीह के जन्म दिन की शुभकामनायें देते हैं और चरनी (अस्तबल)में रखे प्रभु यीशु का दर्शन करते हैं। जिस प्रकार हिन्दू लोग कृष्णा जन्माष्टमी को लेकर कृष्ण के बाल रूप का विभिन्न रूप से साज  सज्जा करते हैं।उसी प्रकार ईसाई समाज के लोग भी विभिन्न प्रकार से चरणी का निर्माण सभी चर्चों में करके बाइबिल की ॠचाओं के साथ मंत्र सिद्ध कर प्रभु यीशु के बाल रूप को रखते हैं।इस प्रक्रिया को आज भी समाज के लोगअपनाते हैं। आज भी पटना बांसघाट स्थित मां सिद्धेश्वरी काली मंदिर में ईसा मसीह का जन्म दिन बहुत  धूमधाम के साथ मनाया जाता है। चूँकि ईसा मसीह के विचार उनके कुछ दोस्तों को अच्छा नहीं लग रहा था ,इसलिए उनलोगों ने इनके विरूद्ध ईश्वर की निंदा करने का आरोप लगाया,जहाँ कि कानून के मुताबिक प्राण दंड की सजा का प्रावधान था।न्यायाधीश ने जब लोगों से पूछा कि क्या सजा दी जाय तो गुमराह किये गये लोगों ने कहा कि इसे सूली पर चढ़ा दिया जाय। सूली पर चढ़ाये जाने के तीन दिन बाद ईसा मसीह अपने दिव्य शक्ति से जीवित हो उठे।

 इस प्रकार से हम देखते हैं कि आज के समय में भी ईसा मसीह के विचार संपूर्ण विश्व के लोगों के लिये प्रेम,दया,शांति,सद्व्यवहार का प्रतीक बनकर लोगों के जीवन को प्रगति के मार्ग की ओर ले जाने की प्रेरणा देते हैं।


आलेख साभार-श्री विमल कुमार"विनोद"

प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा

बांका(बिहार)

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