प्रकृति को संरक्षण देना एक विचारणीय एवं चिंतनीय विषय- श्री विमल कुमार "विनोद" - Teachers of Bihar

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Monday, 19 December 2022

प्रकृति को संरक्षण देना एक विचारणीय एवं चिंतनीय विषय- श्री विमल कुमार "विनोद"

विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस के अवसर पर। विश्व स्तर पर प्रकृति में एक त्राहिमाम संदेश है कि प्रकृति यानि पर्यावरण के साथ-साथ पृथ्वी को बचाना है,जो कि एक चिंतनीय तथा त्राहिमाम संदेश के रूप में किसी दिवस विशेष के अवसर पर लोग प्रेस तथा किसी कार्यक्रम में संकल्प लेते हैं।इसके बाद ज्योंही लोग कार्यक्रम स्थल से जाते हैं,सारे संकल्प कागजों के पन्नों पर पड़ा हुआ ही रह जाता है। आज लोग प्रकृति संरक्षण देने का संकल्प लेते हैं जहाँ पर आज विश्व के कोने-कोने में पर्यावरण,प्रकृति, पृथ्वी,जल,जंगल,जमीन,कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिये संकल्प लिये गये होंगे,जिसे मेरी लेखनी समालोचात्मक समीक्षा के साथ प्रस्तुत करने जा रही है,जो इस प्रकार है-

(1)नदियों का मिटता अस्तित्व-ईश्वर ने संसार में लोगों को एक बेशकीमती संसाधन नदी के रूप में दी है,जिससे लोगों को पेयजल, सिंचाई के लिये नहरें,जल विद्युत परियोजना,मत्स्य पालन तथा निर्माण के लिये कीमती बालू प्रदान की है।आज के समय में लोगों ने रूपया कमा कर रातों-रात नदियों से अवैध बालू उठाकर नदियों का अस्तित्व समाप्त करते हुये उसको नाला से भी बदतर स्थिति में लाकर छोड़ दिया।बालू के जगह में नदियों में गाद निकल कर बालू के जगह पर घास निकल गये।नदियों का जलस्तर नीचे चला जा रहा है,नदियों में पाये जाने वाले असंख्य जीव-जंतु विलुप्तीकरण के कगार पर आ गये हैं।इन्हीं नदियों की श्रेणी में बिहार के बांका जिला के चांदन, चीर,गेरूआ के साथ-साथ झारखंड के गोड्डा जिला में बहने वाली कझिया,हरना,सुन्दर,सापिन नदी का भी है।सबसे दुर्भाग्य की बात है कि बालू की भूख ने गोड्डा जिला के पथरगामा प्रखंड अंतर्गत बहने वाली सापिन नामक  पहाड़ी नदी के गोचर भूमि तथा शमशान घाट को भी अपनी भूख का निशाना बना लिया है।ऐसी परिस्थिति में आप प्रकृति की सुरक्षा तथा संरक्षण की बात कैसे कर सकते है?समाज के संभ्रांत लोग ही जब अपने स्वार्थ के लिये नदियों के गोचर भूमि तथा शमशान को अपने विकास का मुख्य जरिया बना ले तो फिर क्या कहना।

(2)रासायनिक खाद तथा कीटनाशक का अंधाधुंध प्रयोग- आज जहाँ संपूर्ण विश्व कोरोना वायरस के संक्रमण नामक काल के गाल में जकड़ा हुआ है,फिर भी लोग थाइमाइट,फॉलीडोल,सलफास जैसे जानलेवा कीटनाशक का अपने खेतों में प्रयोग करने से बाज नहीं आ रहे जो कि लगातार कैंसर,चीनी की बिमारी,रक्तचाप,किडनी,हृदय रोग इत्यादि बिमारी को प्रोत्साहित करती है।साथ ही भूमि पर इसका अत्यधिक प्रयोग किये जाने से केचुआ,केकड़ा के साथ-साथ पृथ्वी में पाये जाने वालेअनेकों-अनेक जैव-विविधता का विनाश हो रहा है।

(3)जल संरक्षण की समस्या-लोग प्रकृति से कुछ प्राप्त करना अपना अधिकार समझते हैं,प्रकृति को देना अपना कर्तव्य नहीं।आप भूमि के अंदर के जल को लगातार डीप बोरिंग करके जल निकाले जा रहे हैं,लेकिन जल संरक्षण करना सरकार के उत्तरदायित्व समझते हैं।आप     लगातार कंक्रीट का जंगल बिछाते जा रहे हैं।कभी आपने सोचा है कि हमें बरसात के जल का संरक्षण भी करना है?आज के समय में जल का संरक्षण करना एक चिंतनीय तथा एक विचारणीय प्रश्न है,जिस पर आनेवाले कल का भविष्य निर्भर करता है।

(4)) निरवनीकरण-प्रत्येक वर्ष वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग असंख्य वृक्षों को लगाने का काम करती है,जिसे समाज के असमाजिक तत्वों के द्वारा वृक्षों को नष्ट कर दिया जाता है।ऐसी परिस्थिति में प्रकृति का संरक्षण एक असंभव काम नजर आता है।

(5)तालाबों का जीर्णोद्धार- तालाबों का निर्माण मुख्य रूप से जल संग्रह के लिये  किया गया था,लेकिनआज के समय में लोगों के द्वारा तालाबों का प्लाटिंग करके तालाबों का अस्तित्व ही मिटा दिया है। इसके अलावे अनेकों तालाब अपने जीर्णोद्धार की आस लगाये हुये हैं।यदि ऐसा ही होता रहा तो तो वर्षा का जल इन तालाबों में  संग्रहित हो पाना असंभव हैं।

(6)अनावश्यक,अंधाधुंध,पेट्रो--केमिकल्स गाड़ियों का चलना-सड़कों पर असंख्य पेट्रो-केमिकल्स गाड़ियों के चलने से अधिकाधिक कार्बन-डाई- ऑक्साइड तथा कार्बन मोनोक्साइड जैसी जहरीली गैसों के चलते भी प्रकृति प्रदूषण की  तबाही पर रोती हुई नजर आती है।जिससे प्रकृति में रहने वाले जीवों को शुद्ध हवा नहीं मिल पाती है। इन्हीं सभी कारणों के चलते मुझे लगता है कि आज प्रकृति अपने विनाश की ओर अग्रसर होती जा रही है।इसलिये हमलोगों को विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस के अवसर पर प्रकृति को विनाश होने से बचाने का प्रयास करना चाहिये।

 


आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"

प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा 

बांका(बिहार)।

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