'पर्यावरण' शब्द का निर्माण दो शब्दों परि+आवरण से हुआ है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है 'बाहरीआवरण' अर्थात हमारे चारों ओर जो प्राकृतिक,भौतिक व सामाजिक आवरण है,वही वास्तविक अर्थो में पर्यावरण है। पर्यावरण के अंतर्गत जल,जंगल, जमीन,पहाड़,पर्वत,तथा सभी जीव जंतु आदि चीजें आती है। दूसरी ओर इससे जुड़ी सभ्यता संस्कृति का पर्यावरण से अन्योन्याश्रय संबंध है जो कि भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को प्रभावित करती है।समस्त भारतीय साहित्य-वेद, उपनिषद,पुराण,ब्राह्मण,आरण्यक और अलिखित परम्परा प्रकृति और पूजा तथा जीव प्रेम का संदेश ही नहीं देते है,इस संदेश को जन-जीवन का अभिन्न अंग बनाने वाली परंपराओं का भी दिग्दर्शन भी करते हैं।
भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता में ॠग वेद प्रकृति पूजा के अनुष्ठानों का विश्व में प्राचीनतम ग्रंथ है।मत्स्य पुराण ,बाराह पुराण,पद्म पुराण में मनुष्य और प्रकृति के सहोदर भावों को अनुष्ठान के रूप में स्थापित करते हैं।मत्स्य पुराण में कहा गया है कि "दस कुओं के बराबर एक बावड़ी है,दस बावड़ी के समान एक तालाब है,दस तालाबों के समान एक पुत्र है और दस पुत्रों के समान एक वृक्ष है।सदियों पहले जल संचय के साधनों और वृक्षों को पुत्रों से भी अधिक महत्ता देने की यह दुर्लभ परंपरा आज भी उतनी ही सार्थक है।मानिनी विलास नामक पौराणिक ग्रन्थ में कहा गया है कि जो वृक्ष, फूल-पत्ते व फलों के बोझ से उष्ण हुये धूप की तपन और शीत की पीड़ा सहन करता है तथा पर-सुख के लिये अपना शरीर अर्पित कर देता है,उस वंदनीय श्रेष्ठ को प्रणाम।इसके अलावे फल-फूल से लदे वृक्ष ही नहीं सघन हरे-भरे वृक्ष भी वंदनीय है।
नरसिंह पुराण में 'वृक्ष-ब्रह्म' की संकल्पना है,अर्थात वृक्ष ईश्वर के समकक्ष माना गया है।अथर्ववेद में पीपल के वृक्ष की आध्यात्मिक महत्ता का वर्णन पाया जाता है। विभिन्न देवी-वृक्षों से वृक्षों को जोड़ कर पूज्यनीय माना गया है। पर्यावरण में बहुत सारे कीमती वृक्ष पाये जाते है जिसकी जीवन में अहम् भूमिका होती है,जो निम्न प्रकार के हैं-
(1)अशोक वृक्ष-भगवान बुद्ध,इन्द्र भगवान,विष्णु,लक्ष्मी व सूर्य,शुभ कार्यों में आवश्यक माना गया है।
(2)तुलसी-सभी प्रकार का भोग या प्रसाद तुलसी पत्र के साथ ही भगवान को अर्पित करना,प्रत्येक आंगन में तुलसीऔर उसकी पूजा-अर्चना,जल तर्पण आदि का वर्णन शास्त्रों में भी है।साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यदि सुबह स्नान करने के बाद सूर्य की ओर मुँह करके तुलसी के वृक्ष में जल अर्पण किया जाता है और उससे पार करने वाली सूर्य की रोशनी से मनुष्य का शरीर रीचार्ज हो जाता है।
(3)कदंब वृक्ष-अनेकों आयुर्वेदिक दवा से युक्त इस वृक्ष में श्रीकृष्ण का प्रिय निवास माना जाता है।
(4)बेल वृक्ष-भगवान शिव,दुर्गा, लक्ष्मी,सूर्य का प्रिय वृक्ष माना जाता है।
(5) वट वृक्ष-वट वृक्ष जिसकी पूजा पत्नी अपने पति की लंबी आयु तथा वंश वृद्धि के लिये करती है।ब्रह्मा,विष्णु,महेश,कुबेर का वास,भगवान बुद्ध का समाधि स्थल ।
(6)पीपल वृक्ष-भगवान विष्णु,लक्ष्मी व सूर्य का वास ,पूज्यनीय वृक्ष।
(7)नीम वृक्ष-नीम को घर के आंगन में रोपना,जन्म के कक्ष में नीम की डाली लगाना व मृत्यु के समय नीम तर्पण शास्त्रों में वर्णित है। साथ ही चेचक जिसे सनातन धर्म में भगवती के रूप में भी माना जाता है के हो जाने से नीम का पत्ता का प्रयोग करने है इसके संक्रमित लोगों को बहुत राहत महसूस होती है। वृक्ष,जल,पत्थर,जीव-जंतुओं सभी का हमारे सभ्यता संस्कृति से गहरा लगाव रहा है।वृक्ष पर्ण, फल पुष्प,दूध-दही,दूर्वा,वृक्ष-छाल व शहद का प्रत्येक शुभ और अध्यात्मिक अनुष्ठान में महत्व है।
आज महाशिवरात्रि के दिन संपूर्ण विश्व में सनातन धर्म को मानने वाले सभी लोगों ने पत्थर रूपी शिवलिंग पर फल-फूल,बेल पत्र,जल,चंदन,दही ,शहद का लेप लगाकर उसकी पूजा अर्चना की। इसी संदर्भ में मैंने एक महिला से यह पूछा कि आखिर पत्थर तथा वृक्ष की उपवास व्रत रख कर पूजा अर्चना का क्या कारण है तथा इस संबंध में आपकी क्या सोच है?इस पर उनका कहना था हर निर्जीव तथा सजीव चीज का इस पर्यावरण के लिये अस्तित्व में रहना जरूरी है क्योंकि इसके बिना पर्यावरण का अस्तित्व ही मिट जायेगा।
अंत में,एक शिक्षक के रूप मेरी यह सोच है कि यदि इस सृष्टि को बचाये रखना है तो विश्व के सभी सजीव तथा निर्जीव वस्तु को बचाये रखना इस संकल्प के साथ जरूरी है कि "हम जल,जंगल, जमीन,जीव-जंतुओं को बचायेंगे तथा पर्यावरण के साथ विश्व का कल्याण करेंगे के संकल्प के साथ आपका ही,
आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"'
प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा बांका(बिहार)
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