बच्चा जन्म के बाद से ही परिवार में पलता है।परिवार के बाद वह समाज में लोगों के साथ मिलता-जुलता है।उसके बाद धीरे-धीरे वह अगले पौदान पर अपने संस्कार स्थल विद्यालय की ओर अग्रसर होता है।विद्यालय में आकर उसकी भेंट उसके भाग्य निर्माता यानि गुरूदेव से होती है।विद्यालय में गुरुदेव जी बच्चों को उनके शारीरिक, मानसिक,शैक्षणिक,नैतिक, आर्थिक विकास।से संबंधित सारी चीजों की शिक्षा देने का प्रयास करते हैं।
चूँकि दर्पण(आइना)एक ऐसी चीज होती है जिसके सामने खड़ा होकर अपने प्रतिबिम्ब को देखता है।आइने के सामने खड़ा होकर वह रूप,केश,वस्त्र सज्जा को देखता है। ठीक वैसा ही विद्यालय भी होता है जहाँ प्रवेश करने के बाद बच्चों।का चरित्र निर्माण कराने के प्रयास किया जाता है। चरित्र निर्माण के अंतर्गत बोलने, चलने,उठने,बैठने,बातचीत करने, कौशल विकास,शैक्षणिक विकास,अर्थ अर्जन के तरीके तथा मानसिक तनाव को दूर करने के तरीकों का विकास कराने का प्रयास किया जाता है।
चूँकि मनुष्य का जीवन सभी जीवों से सर्वोत्तम माना जाता है, इसलिए उसका चहोन्मुखी विकास किया जाना आवश्यक है ,जो कि एक विद्यालय में ही किया जा सकता है। विद्यालय में शिक्षक तथा विद्यालय कर्मियों के सहयोग से तरह-तरह का ज्ञान दिलाने का प्रयास करते हैं।शिक्षक विद्यालय में लगातार प्रयास करके बच्चों को लिखने के लिये सिखाने की कोशिश करते हैं।नित्य नये-नये शब्दों का प्रयोग उसे अपने जीवन में आत्मसात कराने का प्रयास करते थे।नित्य नई-नई गतिविधियों में शामिल कराके उसे उज्जवल भविष्य के मार्ग पर अग्रसर कराने का प्रयास करते है।
कोरोना वायरस के संक्रमण के काल में बहुत से क्वारंटाइन केन्द्र में रह रहे प्रवासी मजदूरों के साथ भी विद्यालय प्रधान के द्वारा प्रवासी मजदूरों को योगा,व्यायाम, सांस्कृतिक कार्यक्रम,कृषि,विद्यालय में रंग रोगन कराकर मानो प्रवासी मजदूरों के मन मस्तिष्क में नाटकीय ढंग से परिवर्तन कराने का अथक प्रयास किया है।विद्यालय में विद्यालय कर्मियों के द्वारा,सिलाई,बुनायी,कृषि,संगीत,नृत्य के साथ-साथ अन्य कौशल का विकास कराकर स्वरोजगार प्राप्त कराने का सुअवसर प्रदान किया जाता है।चूँकि विद्यालय के शिक्षक समुदाय पर ही देश के भाग्य निर्माता का भविष्य निर्माता की जिममेवारी है,जिसकी पूर्ति सिर्फ विद्यालय ही कर सकता है। ऐसे ही कुछ उत्कृष्ट कार्य को कुछ विद्यालयों में कराकर यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि विद्यालय निश्चित रूप से समाज का शुभचिंतक,मार्ग दर्शक, संस्कार शाला,आइना है।
अंत मे, हम कह सकते हैं कि विश्व स्तर पर यदि किसी भी प्रकार के विकास की बात हो,तो वह परिवार से लेकर विद्यालय तक चलता ही रहता है,जिसमें विद्यालय की भूमिका सराहनीय है।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"
प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा बांका ।
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