एक मनोविश्लेषणात्मक लेख।
संसार के सभी जीवों में से मनुष्य एक विवेकशील,चिंतनशील प्राणी है,जिसमें अन्य जीवों से अधिक सोचने समझने की शक्ति है।इसके बाबजूद भी"मनुष्य स्वभाव से स्वार्थी होता है"।राज्य की उत्पत्ति के सामाजिक समझौते के सिद्धांत में प्राकृतिक अवस्था का चित्रण करते हुये हाॅबस ने कहा है कि"मनुष्य स्वभाव से स्वार्थी होते हैं",जो कि शत-प्रतिशत सही प्रतीत होती है।ऐसा देखा जाता है कि आज संपूर्ण विश्व में एक दूसरे से आगे बढ़ने की ललक लगी हुई है।समाज में छीना-झपटी का आलम जारी है।वर्तमान समय में जब भारत के साथ-साथ संपूर्ण विश्व कोरोना वायरस के संक्रमण के दौर से गुजर रहा है,के समय में भी लोग संपूर्ण हित से हटकर व्यक्तिगत हित के पीछे दौड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं।मेरा यह आलेख सुख,संतोष और शांति तीनों संसार के किसी भी जीव के लिये आवश्यक है जिसके तलाश में लोग भटकते रहते हैं लेकिन वही बात कि" न तो दिन को चैन है और न ही रात को सकुन",बस एक दूसरे से आगे बढ़ने की प्रतिस्पर्धा जो कि लोगों के जीवन में तबाही का मंजर ढाये हुये है।आइये अब मैं जीवन के अनमोल भावनात्मक सुख,संतोष और शांति,जो कि मनुष्य को चाहिये जिसको प्राप्त करने के लिये गौतम बुद्ध,महावीर जैन तथा अनेकों अनेक संतों ने गृह त्याग कर जीवन का सुख प्राप्त करने के लिये संयास ग्रहण कर लिया।
(1)सुख-सुख एक मानसिक स्थिति है और यह अपने आप में एक अनुभूति है,जो स्वंय अंदर से महसूस होती है।सुख एक ऐसी चीज है जो बाहर ढूंढने से नहीं प्राप्त हो सकती है।यह व्यक्ति और व्यक्ति के स्वभाव पर निर्भर करता है कि "उसे सुख किसमें मिलेगा।"जो मिल गया उसे मुक्कदर समझ लिया"की सोच ही लोगों को सुखी बना सकती है।उदाहरणस्वरूप कुछ लोग छुट्टी के समय में एकांत जगह में जाकर अपने जीवन का आनंद उठाने लगते हैं जिसे हम सुख कह सकते हैं।लोग जब प्राकृतिक दृश्य को देखकर आनंद उठाते हैं तो उसे सुख की अनुभूति होती है।जब व्यक्ति किसी चीज को प्राप्त कर आत्म संतुष्टि महसूस करता है तो उसे हम सुख कह सकते हैं।साथ ही जब लोगों को संतोष रूपी धन मिल जाता है तो सारा धन धूल के समान हो जाता है।इस प्रकार सुख अपने आप में महसूस करने की चीज होती है। लोग एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करता हुआ जीवन में अधिक-से-अधिक प्राप्त करने के पीछे भागता रहता है तब ऐसी स्थिति में वह अधिक दुःखी होता है। इसलिए इस झणभंगुर जीवन में कुछ प्राप्त करके भी अगर जीवन जीने में मजा आता है तो,उस सुख का आनंद उठाइये।
(2)शांति- शांति मधुरता और भईचारे की स्थिति है,जिसमें आपसी बैर-भाव या दुश्मनी की अनुपस्थिति देखने को मिलती है।दूसरे शब्दों में" शांति वह अवस्था है जहाँ पर बाधा नहीं होती है"।मनुष्य अपने जीवन में भटकते हुये जब अपने परिवार के बीच पहुँचता है तब उसे शांति मिलती है।कोरोना वायरस के संक्रमण के काल में देखा गया कि प्रवासी मजदूर जो कि अलग-अलग प्रांतों में अपने बाल बच्चों के साथ-साथ रह रहे थे,परिवार में आने के पहले तक बैचेन थे।जैसे ही वह अपने घर पहुँच गये मन का तनाव समाप्त हो गया तथा उसे शांति महसूस हुई।प्रायः ऐसा देखा जाता है कि अपने घर, परिवार तथा बाल-बच्चों से मिलकर ही शांति प्राप्त होती है।अगर आप बहुत की कामना करेंगे तो शांति की प्राप्ति नहीं हो सकती है।जो व्यक्ति एक निश्चित आय के दायरे में रहकर भी दूसरों की मदद करता है उसे ही शांति प्राप्त हो सकती है।दूसरों की मदद करने से आंतरिक सुख की प्राप्ति होती है जिससे शांति प्राप्त होगी।
(3)संतोष-संतोष का शाब्दिक अर्थ है ,संतुष्टि अर्थात मन का तृप्त हो जाना। हमारे सामने जो परिस्थितियां विद्यमान हैं,उसे ईश्वर के अनुग्रह मानें और उसे पा कर खुश हो जायें।जैसे एक भूखा को जब भोजन मिल जाता है तो वह खाना खा लेने के बाद संतुष्ट हो जाता है। दूसरी बात यह है कि जब साधक के मन में भाव आता है कि उसके पास दूसरे की तुलना में साधनों की बेहद कमी है,वैभव कम है, संपदा कम है,यश नहीं मिल पा रहा है और पद,प्रतिष्ठा नहीं है तो वह दुःखी होता है।उदाहरण के तौर पर कह सकते हैं कि मैं गाड़ी का टिकट कटाने के लिये गया हूँ, जहाँ पर लंबी कतार है और मैं जाकर सबसे पीछे लाइन में लग जाता हूँ तो पहले मुझे आगे वाले को देख कर कष्ट होगा लेकिन जब पीछे के लोगों को देखूँगा तो फिर मुझे संतोष का आभास होगा।
अंत में,हम कह सकते हैं कि जीवन में सुख,शांति एवं संतोष तीनों आवश्यक है।लेकिन यह तभी संभव हो सकता है जब हम कुछ को प्राप्त करके अधिक का अनुभव महसूस कर सकते हैं। इसलिये लोगों को अपने मनुष्य योनि का सुन्दर,सुखमय जीवन जीने का सुअवसर प्राप्त करना चाहिये ताकि लोग मानसिक तनाव के साथ-साथ अन्य बिमारियों से मुक्त हो जीवन का आनंद उठा सकते हैं।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार"विनोद"
प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा,बांका।
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