संघर्ष ही जीवन है- श्री विमल कुमार"विनोद" - Teachers of Bihar

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Tuesday, 13 December 2022

संघर्ष ही जीवन है- श्री विमल कुमार"विनोद"

श्री विमल कुमार"विनोद"लिखित परिस्थिति जन्य लेख।

परिवर्तन संसार का नियम है,जो कि अनवरत बिना किसी रूकावट के चलती रहती है। अनवरत अपनी रफ्तार में चलती हुई इस समय को प्रत्येक व्यक्ति को समझना होगा तथा उसके अनुरूप चलना होगा,क्योंकि जो व्यक्ति समय को नहीं पहचानता है वह समय की चक्की में पीसा जाता है। इसी पर हीगेल ने अपने आदर्श पर आधारित द्वन्दवाद में कहा है कि मनुष्य को समय को पहचाना चाहिये। क्योंकि जो व्यक्ति समय को नहीं पहचानता है वह उस चींटी की तरह समय की चक्की में पीस कर तबाह हो जाता है जो बरसात के समय में भी अपना आशियाना बनाकर खेत में ही रह जाता है,जहाँ पर हल जोतने वाला उसके घर को ध्वस्त कर देता है।वर्तमान समय में जब भारत के साथ-साथ संपूर्ण विश्व कोरोना वायरस के संक्रमण से जूझ रहा है वैसे समय में समय की मार सब पर पड़ी है,जिसमें सबसे ज्यादे वैसे असंगठित मजदूर परिवार प्रभावित हुये हैं, जो परिवार के साथ रोजी-रोटी की तलाश में दूसरे प्रांतों में रोजगार के में चले गये थे।आज जब कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण लाॅकडाउन के चलते रोजी-रोटी,रोजगार ठप्प हो  गया है तथा उसका इस पृथ्वी पर जीवित रह पाना असंभव सा हो गया है,ऐसी स्थिति में उसको इस पृथ्वी पर जीवित रहने के लिये संघर्ष करना ही होगा।आज मैंने देखा सैकड़ों की संख्या में गरीब गुरबा परिवार के लोग माथा में समान की गठरी, हाथ में बच्चे को पकड़ कर अपनी पेट की छुधा मिटाने के लिये भूखे,पानी पीकर अपने आप को तथा बच्चों को विश्वास तथा डाढ़स बंधाते हुये लगातार अपने गनतव्य स्थान तक चलते जा रहे हैं।

अंत में,एक पर्यावरणविद,लेखक तथा शिक्षक होने के कारण मुझे लगता है लोगों ने पर्यावरण को पूरी तरह से  लूटने का प्रयास करते हुये जल,जंगल,जमीन,कृषि को प्रदूषित करने का काम किया है,जिसके चलते प्रदूषित भोजन खाने से लोगों के शरीर की रोग रोधक क्षमता कमजोर हो गई है जिसके चलते कोरोना वायरस के साथ-साथ बी-कोली,डाइबिटीज, हृदय रोग इत्यादि का खतरा बढ़ गया है ।जब इस तरह की बिमारी चरम शिखर पर पहुँच जाती है तब जौ के साथ-साथ घून भी पिसाने की बात सरजमीं दिखने लगती है,जिसका सबसे बुरा प्रभाव गरीब-गुरबा लोगों पर पड़ने लगता है,जिसके चलते अपने बाल-बच्चों के साथ जेठ की दुपहरी में तपती हुई राहों पर अपने नौनिहाल बच्चों के साथ पैदल चलना पड़ता है।इसलिये लोगों को सुन्दर कर्म करना चाहिये तभी भविष्य में पुनः कोरोना वायरस जैसे संक्रमण से मुक्ति मिल सकती है। आने वाले समय में ऐसे गरीब-गुरबा परिवार में ईश्वर की कृपा बनी रहे,यही ईश्वर से मेरी कामना है ।


आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"

प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा

बांका(बिहार)

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