बाल विवाह प्रथा और इसके कुप्रभाव- सुरेश कुमार गौरव - Teachers of Bihar

Recent

Sunday, 8 January 2023

बाल विवाह प्रथा और इसके कुप्रभाव- सुरेश कुमार गौरव

भारत में बाल विवाह आज भी बदस्तूर जारी है। केरल राज्य मे़ जो सबसे अधिक साक्षरता वाला राज्य जहां बाल विवाह का प्रचलन आज भी जारी है। यूनिसेफ के संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय बाल आपात निधि की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में नगरीय क्षेत्रों के वनिस्पत अधिक बाल-विवाह होते है। 

आँकड़ो के अनुसार, बिहार में सबसे अधिक ६८ % बाल विवाह की घटनाएं होती है जबकि हिमाचल प्रदेश में सबसे कम ९% बाल विवाह होते हैं। हमारा भारत जो अपने आप में एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा हैं। उसमें आज भी एक ऐसी आपराधिक कुरीति भी जिन्दा हैं जिसमें दो अपरिपक्व बालक-बालिकाओं को जबरन ज़िन्दगी भर साथ रहने के इस अपरिपक्व बंधन में बांध दिया जाता हैं बालिका वधू और बालक वर बनकर  दो अपरिपक्व बालक शायद पूरी ज़िन्दगी भर इस कुरीति से अपने ऊपर हुए अत्याचार से उबर नहीं पाते हैं और बाद में स्थितियां बिलकुल खराब हो जाती हैं और नतीजे शारीरिक,मानसिक  कमजोरी,परेशानियां जिंदगी से अलगाव,तलाक और मृत्यु तक पहुंच जाते हैं।

इतिहास पढ़ने से पता चलता हे कि आर्यो के आने के बाद बाल विवाह प्रथा की शुरुआत हुई। प्राचीन समय में भारतीय बाल विवाह को लड़कियों को विदेशी शासकों से बलात्कार और अपहरण से बचाने के लिये एक हथियार के रूप में प्रयोग किया जाता था। 

बहुत ही अफसोसनाक बात थी कि बड़े बुजुर्गों को अपने पौत्र-पौत्रियों को देखने की चाह अधिक होती थी इसलिये वो अल्पायु में ही अपने बच्चों की शादी कर देते थे जिससे कि मरने से पहले वो अपने पौत्रों के साथ कुछ समय बिता सकें। विज्ञान और चिकित्सा विशेषज्ञ की मानें तो बाल-विवाह के केवल दुष्परिणाम होते हैं उनके जीन में और सबसे घातक शिशु व माता की मृत्यु दर में वृद्धि भी उनके शारीरिक और मानसिक विकास पूरा नहीं कर पाते हैं।

ऐसे विवाहित जोड़े खाकर लड़कियां अपनी जिम्मेदारियों का पूर्ण निर्वहन नहीं कर पाती हैं और इनसे एच.आई.भी जेसे यौन संक्रमित रोग होने का खतरा भी हमेशा बना रहता हैं। भारत में बाल विवाह होने के कई कारण हो सकते हैं 

 लड़कियों की शादी को माता-पिता या इनके परिवारों द्वारा  अपने ऊपर एक बोझ समझना

 शिक्षा का अभाव 

 रूढ़िवादिता का होना 

 अन्धविश्वास  .  निम्न आर्थिक स्थितियां हो सकती हैं।


बालविवाह को रोकने के लिए इतिहास में कई लोग आगे आये जिनमें सबसे प्रमुख राजाराम मोहन राय,  केशवचंद्र सेन जिन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा एक बिल पास करवाया जिसे विशेष विवाह एक्ट कहा जाता हैं। बाल विवाह शारदा एक्ट १९२९ में १ अप्रैल १९३० को पहली बार विवाह को खत्म किया गया था। इसके अंतर्गत शादी के लिए लडको की उम्र १८ वर्ष एवं लडकियों की उम्र १४ वर्ष निर्धारित की गयी थी। बाद में विरोध होने पर इसे प्रतिबंधित कर दिया गया। १९७८ में सुधार के बाद वाल विवाह रक्षा नामक बिल पास किया गया इसमें लडको की उम्र बढ़ाकर २१ वर्ष और लडकियों की उम्र बढ़ाकर 18 वर्ष  कर दी गयी। अपने भारत में सरकारों द्वारा भी इसे रोकने के प्रयास किये गए और क़ानून भी बनाये गए। इनमे कुछ आंशिक सुधार आये भी परन्तु ये पूर्ण रूप से समाप्त नहीं हो सका। बाल-विवाह निषेध अधिनियम २००६ जो अस्तित्व में हैं। ये अधिनियम बाल-विवाह को आंशिक रूप से सीमित करने के स्थान पर इसे सख्ती से प्रतिबंधित करता है। परंतु लोग मानते कहां हैं।

इस कानून के अन्तर्गत, बच्चे अपनी इच्छा से वयस्क होने के दो साल के अन्दर अपने बाल विवाह को अवैध घोषित कर सकते है। किन्तु ये कानून मुस्लिमों पर लागू नहीं होता जो इस कानून में सबसे बड़ी खामियां हैं।वर्तमान में भारत सरकार द्वारा लड़े और लड़कियों के विवाह की आयु २१ वर्ष तय कर दी गई है। आज जरुरत इस बात की है कि हम सबों को घर,परिवार समाज में इसको लेकर जागरूकता फैलानी होगी। समाचार पत्रों और प्रचार प्रसार से इसे रोकने में समाज के लोग प्रमुख भागीदारी निभा सकते हैं।

व्यापक स्तर पर शिक्षा के प्रचार प्रसार करने होंगे। सरकार द्वारा ग़रीबी का उन्मूलन किया जाय। नुक्कड़ नाटकों द्वारा,प्रभात फेरी का आयोजन कर और जन-जागरण फैलाकर इस प्रक्रिया को दूर करने के प्रयास जारी रखने होंगे।


_सुरेश कुमार गौरव, स्नातक कला शिक्षक

उ.म.वि.रसलपुर,फतुहा,पटना (बिहार)

No comments:

Post a Comment