विद्यालय एक फुलवारी होता है और विद्यालय प्रधान उसका माली।आज के समय में जब सरकार के द्वारा विधार्थियों के कल्याण हेतु अनेकों कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं ,वैसे समय में सरकारी विद्यालयों में भी लूट खसोट बढ़ता ही जा रहा है,जहाँ किसी भी विद्यालय प्रधान के लिये विद्यालय में निष्पक्ष तथा भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देना एक समस्या हो गई है,इसके मूल में विद्यालय प्रधान तथा कार्यालय है।
किसी भी विद्यालय कार्यालय में जहाँ लंबे समय से विद्यालय प्रधान तथा लिपिक के मिली भगत से बच्चों का दोहन किया जाता था,जहाँ पर पूर्व विद्यालय प्रधान वित्तीय अनियमितता के जाल में उलझते जा रहे थे वैसी स्थिति में यदि नया विद्यालय प्रधान इसमें सुधार करना चाहे तो उसे भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों का कोपभाजन बनना ही पड़ेगा।ऐसी स्थिति में यह समस्या उत्पन्न हो जाती है किस वह क्या करे क्या न करे?
मुझे लगता है कि वर्त्तमान विद्यालय प्रधान को अपने विवेक के अनुसार भय मुक्त होकर अपना हौसला बुलंद करते हुए विद्यालय में स्वच्छ तथा साफ-सुथरा प्रशासन देने का प्रयास करना चाहिए।साथ ही अपने सहकर्मीयों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाये रखना चाहिए ।विद्यालय समय से आकर अपने कार्य को निपटने का प्रयास करना चाहिए ।
अंत में,विद्यालय प्रधान को विद्यालय से भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिये इसके प्रत्येक पहलु पर दृढ़ निश्चय होकर ध्यान देना चाहिए तथा ससमय किसी भी तरह का निर्णय लेने में पीछे नहीं हटना चाहिए तथा समय-समय पर निरंकुश एवं तानाशाह बनने से भी बाज नहीं आना चाहिए। साथ ही जब कानूनी कार्रवाई करने की बात आये तो इसपर निश्चित रूप से कारवाई करनी चाहिए।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद" शिक्षाविद।

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