सागरीय जीव विज्ञान- श्री विमल कुमार "विनोद" - Teachers of Bihar

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Wednesday, 18 January 2023

सागरीय जीव विज्ञान- श्री विमल कुमार "विनोद"

 विश्व की कई समस्याओं के समाधान का आधार-सागरीय जीव विज्ञान।

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महासागरों में अपार जलराशि है,जहाँ संसाधनों का विशाल भंडार है जो हमारी पृथ्वी के पर्यावरण को नियमित एवं जैविक पर्यावरण के लिये  नियमित करने वाला है। महासागरों के संपूर्ण जैव चक्र उसके जल के संपूर्ण भौतिक, रासायनिक तथा जैविक घटकों के द्वारा संचालित होता है।समुद्री जीव सभी वनस्पतियों तथा जीवों का अध्ययन है जो उनकी अलग-अलग गहराईयों में निवास करती है।जीवों की उत्पत्ति महासागर में हुई जो बाद में विकसित हो पृथ्वी पर निवास करने लगे।समुद्री जल में विभिन्न गैसें,खनिज,भौतिक-रासायनिक विशेषताओं,उनकी गहराई,तापमान,लवणता,विभिन्न प्रकार की गत्तियों(धारायें,लहरें तथा ज्वार भाटा)पायी जाती है जो समुद्री जीवों के विकास तथा जीवन यापन के लिये आवश्यक है।

   विभिन्न वर्गों की वनस्पतियों को प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा अपना भोजन बनाने में जल की आवश्यकता पड़ती है।सागरीय जीवों पर वहाँ उपस्थित पर्यावरणीय दशाओं में होने वाले थोड़े से परिवर्तन का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।सागरीय जलों की लवणता की मात्रा में होने वाला परिवर्तन सर्वाधिक प्रभावकारी होता है।अन्य कारकों का प्रभाव,जीवों की उत्पत्ति, उपलब्धता एवं जनसंख्या पर पड़ती है।

ऐसा माना जाता है कि महासागरीय जीव-विज्ञान का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है और आने वाले समय में विश्व की कई समस्याओं का समाधान का आधार बन सकेगा,जैसे-विश्व की निरंतर बढ़ती हुई जनसंख्या के लिये पोषण की समस्या,प्रोटीन की अपेक्षित उपलब्धता,ज्वरीय ज्वरीय तरंगों से जल विद्युत की प्राप्ति,खनिजों की प्राप्ति,जैव पदार्थों का वितरण,रासायनिक संघटन का विश्लेषण,उर्जा का वैकल्पिक स्त्रोत,प्रवाल भित्ति इत्यादि।

   इसके अलावे कुछ जीव तो सागरीय जल के संघटन में परिवर्तन भी ला सकते हैं।सागरीय जीव-विज्ञान के अंतर्गत पलवकों तथा मछलियों की प्रकृति तथा उनकी परिस्थतिकी का अध्ययन किया जाता है।

    अंत में कहा जा सकता है कि सागरीय जीव विज्ञान की ओर लोगों का ध्यान ,विश्व के निरंतर बढ़ती हुई जनसंख्या विस्फोटक के आवश्यकताओं के लिये भोज्य पदार्थों के उत्पादन एवं भंडार के लिये किया जा रहा है।इसके बिना इस पृथ्वी में मनुष्यों तथा अनय जीवों का जीवन असंभव है।


आलेख साभार श्री विमल कुमार "विनोद" शिक्षाविद,भलसुंधिया, गोड्डा 

(झारखंड)।

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