एक संस्मरणात्मक लेख।
इस सृष्टि में जितने भी जीव जन्म लेते हैं,उनको मृत्यु को वरन् करना अवश्यमभावी है।चूँकि संसार का यह शाश्वत नियम है कि जन्म के बाद मृत्यु होती है।जन्म के समय नवजात शिशु को देखकर मन प्रफुल्लित हो उठता है तथा लोगों में खुशी का आलम छा जाता है।घर तथा समाज में आनंद मनाया जाता है,बधैया बजाई जाती है,लेकिन ठीक उसके विपरीत मृत्यु होने पर शोक की लहर दौड़ जाती है।घर- परिवार के सदस्यों के बीच रोने की लहर सी फैल जाती है।
जन्म के बाद शैशवावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक लोग इस संसार में आने के बाद तरह-तरह की गतिविधियां करते हैं,जिसमें बहुत से सुन्दर कृत्य होते हैं तथा बहुत से जीवन तथा समाज के लिये घातक होते हैं। किसी भी जीव का यह स्वभाव होता है कि वह अच्छे चीजों को अंगीकार करता है,उससे खुशी प्राप्त होती है,जो कि लोगों को जीवन में आनंद देता है।ठीक इसके विपरीत कष्ट दायक कार्य जो कि लोगों के लिये दुःखदायी होते हैं,जिससे लोगों को कष्ट प्राप्त होती है।साथ ही जिन बातों से लोगों को दुःख या कष्ट होती है जिसको भूल पाना लोगों के लिये दुःखदायी होता है।
अच्छे कर्मों की सर्वस्व पूजा होती है।साथ ही इतिहास अपनी बीती हुई बातों को बार-बार दोहराता है।इतिहास बनाया जाता है तथा इतिहास से लोगों को जीवन में सबक लेना चाहिये।यदि आप इतिहास को देखकर भी अपनी अतीत की बातों नहीं जानने समझने की कोशिश करते हैं,तो यह जीवन के लिये दुःख दायी होगा।
पुण्यतिथि जिसमें हम उन महानुभावों के द्वारा किये गये जीवन लीला के सर्वोत्तम पलों को याद करते हैं जो कि उन्होंने अपनी जिंदगी में की है।जैसे हम लोग संपूर्ण देश में महान देशभक्तों के जन्म दिन या पुण्य तिथि को मनाते हुये उनके जीवन काल में किये गये उत्कृष्ट कार्यों पर प्रकाश डालने का प्रयास करते हैं,जो कि आने वाले पीढ़ी के लिये मार्ग प्रदर्शक का काम करते हैं।जिनके पद चिन्हों पर चलकर हम जीवन के चरम शिखर पर पहुँच पाते हैं।
इस आलेख को लिखने का लेखक का मतलब है कि हम लोगों को जीवन में उत्कृष्ट कार्य को करना चाहिये जो कि यादगार पल के रूप में याद किये जाते हैं। हमलोग कभी-कभी बातचीत के दरम्यान अपने-अपने गुरुजनों के द्वारा सुन्दर तथा भाव पूर्वक सीखाये जाने की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं।उनके द्वारा अपने शिष्यों के साथ पुत्रवत व्यवहार किये जाने की चर्चा करते हैं,जिसे हम जीवन के इतिहास के रूप में दोहराते रहते हैं।इसलिये हम लोगों को भी,जो शिक्षण पेशा में हैं,अपने शिष्यों के साथ पुत्रवत संबंध बनाये रखते हुये जीवन में उनको सर्वोच्चय किस्म की शिक्षा देने का कष्ट करना चाहिये जो कि इस धरा से विदा होने के बाद लोग हमलोगों के इतिहास को दोहरा सके,कि बहुत सारी शुभकामनाओं के साथ आपका ही शुभचिंतक-
आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद" शिक्षाविद,भलसुंधिया,गोड्डा
(झारखंड)

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