मनुष्य अपने कष्टों के लिये स्वंय उत्तरदायी।
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जितनी तेजी से विकास होगा, उतनी ही तेजी से पर्यावरण का विनाश होगा।माटी कहे कुम्हार से तू काहे रौंधे मोय,इक दिन ऐसा आयेगा मैं रौंधूगा तोय।इस विकासशील देश में जहाँ लगातार लोग बालू चोरी करने में लगे हुए हैं,वैसे समय में बालू चोरों की कहानी पर कुछ भी कहना मूर्खता ही होगी। मुझे लगता है कि अधिकाधिक रूपया कमाने की होड़ में शक्तिशाली लोगों जैसे राजनीतिक नेता,जनप्रतिनिधि समाज में ट्रैक्टर खरीदने वाले लोग जो कि अपने को ज्यादा शक्तिशाली समझते हैं,बालू को गिद्ध की तरह नोंच-नोंच कर रूपया लूटे जा रहे हैं।जब आप गोड्डा से पंजवारा तथा आगे बांका जायेंगे तो आपको गेरूआ तथा चीर नदी में इसका नजारा देखने को मिलेगा।अब तो लोग घर बनाने के बाद काला बाजारी करने के लिये बालू डंपिंग
करके रख रहे हैं।आप जब पथरगामा प्रखंड के सापिन नदी केआस पास के क्षेत्र को देखेंगे कि इस क्षेत्र के भू-पति ने अपनी जमीन पर बालू फैक्ट्री खोल रखी है।साथ ही इस क्षेत्र के मुखिया प्रधान तथा अन्य ट्रैक्टर मालिकों ने बालू चोरी करने के माध्यम से अपने को बालू माफिया सिद्ध करने का प्रयास किया है।
वैसे प्रशासन से जहाँ पर कोई भी पदाधिकारी बालू चोरी रोकने मे सक्षम नहीं है ,वहाँ जनता को पानी के लिये विश्वयुद्ध का मुँह देखना ही होगा।
अखबारों में छपने वाले समाचार को पढ़ने के बाद लगता है धिक्कार है वैसे प्रशासनिक तथा जिला के अन्य पदाधिकारी गण को जो आज पानी के बदले रूपया पीकर अपनी प्यास बुझाने को तैयार हैं।
आने वाले समय में अगर अभी भी लोगों में जागरूकता नहीं आयेगी तो समाज के वैसे भू-माफिया जिसने तालाबों को प्रशासन की मदद से मिलकर बेच डाला,बालू चोरों जिसने नदी को बालू के जगह में खेल का मैदान बना डाला ,आने वाली भावी पीढ़ी कभी माफ करेगी
नदी,जलाशय,कूप,तालाब रखना होगा पास,नहीं तो भावी पीढ़ी नहीं करेगी माफ।इसलिये अभी भी समय है नहीं तो पृथ्वी अपने आप में निगल जायेगी,बस साथ रह जायेगा सिर्फ बालू और बालू से बने पक्के के मकान और बालू चोरी से कमाये गये कालेधन!
आने वाला कल मंगलमय हो
इसकी ढेर सारी शुभकामनायें।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"शिक्षाविद,भलसुंधिया,गोड्डा
(झारखंड)।
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