ल्य विहीन राजनीति,लोकतंत्र के चेहरे पर काला धब्बा- श्री विमल कुमार "विनोद" - Teachers of Bihar

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Friday 27 January 2023

ल्य विहीन राजनीति,लोकतंत्र के चेहरे पर काला धब्बा- श्री विमल कुमार "विनोद"

राजनीतिक चिंतक की लेखनी से।

राजनीति जो कि देश की शासन व्यवस्था को चलाने के लिए सरकार की सर्वोच्च  कानून बनाने वाली संस्था संसद  (विधायका)के द्वारा बनाये जाने  वाले कानून होते हैं ।जिसके अनुसार देश की शासन व्यवस्था चलायी जाती है।

    भारत में अप्रत्यक्ष लोकतांत्रिक शासन पद्धति पायी जाती है ,जहाँ पर वयस्क मताधिकार प्राप्त भारतीय नागरिक मतदान करके अपने जनप्रतिनिधि को वोट देकर चुनते हैं।ये जनप्रतिनिधि विधायिका में जाकर कानून का निर्माण करते हैं जिससे देश की शासन व्यवस्था चलती है।

     आम चुनाव के दिनों में कर्मठ, ईमानदार,शिक्षित ,समाजसेवी उम्मीदवार  स्वच्छ छवि को प्रदर्शित करते हुये जनता के बीच जाते है। चुनाव के दिनों में बड़े -बड़े मंचों से लोक लुभावन सुन्दर- सुन्दर भाषण देने वाले उममीदवार आगे चलकर देश तथा शासन व्यवस्था के लिये उतने ही घातक सिद्ध होते है।

  आज के समय में राजनीति का अर्थ स्वार्थ,छल प्रपंच,धोखा, दलबदल,हिंसा,मूल्यहीनता आदि बनकर रह गया है।आज लोग सत्ता को प्राप्त करने के हिंसा, वादा खिलाफी,बदतमीजी इत्यादि के चोटी पर भी चले जाते हैं।हमारे चुने जाने वाले जनप्रतिनिधि जिनको माननीय कह कर संबोधित किया जाता है।

ऐसे कर्मठ उममीदवार जब बड़े-बड़े मंचों पर जाकर एक दूसरे को चोर,बेईमान,नीच, चरित्रहीन जैसे शब्दों से संबोधित करते हैं,तब भारतीय मतदाताओं को अपने आप में बहुत अफसोस होता है।कभी-कभी स्वंयमभू नेताओं के द्वारा एक दूसरे पर यौन शोषण का आरोप लगाया जाना,किसी मुख्यमंत्री को रोड शो के दरम्यान दूसरे के द्वारा किसी को  उकसा कर थप्पड़ मरवाना मूल्य विहीन राजनीति के रूप में उजागर होती है। 

    राजनीति को मूल्य आधारित होनी चाहिए।देश को चलाने के लिए कानून बनाने वालों का  अपना एक आदर्श,सिद्धांत होना चाहिए।देश का प्रधानमंत्री एक सम्मानित पद होता है,उसको चोर कहना या प्रधानमंत्री के द्वारा अपने आप को चाय बेचने वाला या चौकीदार कहा जाना शायद उनके गरिमामयी पद पर एक प्रश्न चिन्ह लगाता है?

 अंत  में एक राजनीतिक चिंतक होने के नाते आप कर्मठ उममीदवारों से भारतीय जनता तथा मतदाता यह उम्मीद करती है कि कम-से-कम आप अपने मतदाताओं के अरमानों,उम्मीदों तथा सोच पर ठेस न पहुँचाने की कष्ट न करें।क्योंकि ऐसी परिस्थिति में वैसे मतदाता आखिर जायें तो कहाँ जायें।कहीं तो कोई उनके अरमानों को पूरा करने वाला होना चाहिये।


आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"शिक्षाविद,भलसुंधिया,गोड्डा 

(झारखंड)।


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