ईश्वर ने लोगों को जीवन जीने के लिये जल,जंगल,जमीन,पहाड़, पर्वत मानव,जीव-जंतु इत्यादि अनगिनत संसाधन दिये हैं,जो कि संपूर्ण पर्यावरण को सुरक्षित रखने में पूरी तरह से सक्षम है ,लेकिन मानव अपने स्वार्थ के लिये लगातार इन सभी संसाधनों का दोहन किये जा रहा है।मुझे लगता है इसके पीछे मुख्य उद्देश्य अधिक-से-अधिक सत्ता,शक्ति और संपत्ति प्राप्त करना ही रह गया है।
प्रत्येक जीव का लक्ष्य जीवन में अधिक-से-अधिक सुख,सुविधा प्राप्त करना रह गया है तथा अधिक सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिये वह अधिक-से-अधिक प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने से बाज नहीं जाता है।इसके अत्यधिक दोहन किये जाने की अंतिम परिणति कोरोना महामारी,भूकंप,तेजी से हो रहा जलवायु परिवर्तन,सूनामी,कोशी की विभीषिका इत्यादि दुष्परिणाम प्रकृति को झेलने पड़ते हैं। जैसा की प्रकृति का शाश्वत नियम है- परिवर्तन ।
विश्व में नित्य विकास तथा परिवर्तन हो रहा है जिसके चलते पर्यावरण का विनाश निश्चित है। प्रकृति ने मनुष्य के जीवन जीने के लिये बहुत सारी भोज्य पदार्थ दी है ,जिसे साधारण तरीके से ग्रहण करना चाहिए।लेकिन आधुनिकता के दौड़ में लोग बाह्य आडम्बर युक्त भोजन ग्रहण करने के लिये आतुर रहते हैं।
पर्यावरण का लोग अधिक-से-अधिक प्रयोग करके उसका दोहन करने के प्रयास में लगे हुये हैं ।चाहे भू-जल का अत्यधिक दोहन करने की बात हो,भूमि में थाइमाइट जैसे कीटनाशक के प्रयोग करने की बात हो, बिना मापन के नदियों के दोहन की बात हो ,खाद्य पदार्थों में मिलावट की बात हो ,पशु पक्षियों के वास्य स्थल को नष्ट किये जाने की बात हो,जिसमें हाथियों के वास्य स्थल जंगल को उजाड़ देने के कारण हाथी रिहायसी इलाकों में प्रवेश कर तबाही मचाने का प्रमुख कारण बन जाते हैं।
मनुष्य अधिक-से-अधिक लाभ के लिये पशु-पक्षियों में कृत्रिम रूप से विकास करने के लिये इंजेक्शन का प्रयोग करते हैं।मानव भीअधिकाधिक कृत्रिम चीजों का प्रयोग कर अपनी खुबसूरती को निखारने की बात करते हैं, जिसके चलते सारे प्राकृतिक चीजों के साथ खिलवाड़ समझा जाता है। अत्यधिक उत्पादन को बढ़ाने के लिये अधिक-से-अधिक यूरिया जैसी रासायनिक खादों का प्रयोग किये जाने से यूरिक एसिड के अधिकता के कारण भी कई बीमारी फैल जाती है।
सबसे दुःख की बात है कि लोग भविष्य की तथा पर्यावरण की चिंता किये बिना ही वर्तमान की मस्ती लेने के लिए तथा सौंदर्यीकरण के लिये प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने लगते हैं जिसके चलते तरह-तरह के वायरस हवा में फैलते जा रहे हैं। चाहे केदारनाथ में बादल फटने की बात हो,या कोशी की विभीषिका हो या सुनामी के प्रलय की बात हो जो कि थोड़े दिनों के लिये याद रहती है उसके बाद धीरे-धीरे लोगों के मन मस्तिष्क से यह बात उतरने लगती है।
कभी-कभी जब की विश्व की बड़ी-बड़ी समसयाओं से ग्रसित हो जाता है जो कि शोधकर्ताओं, चिकित्सकों,वैज्ञानिकों को परेशानी के चपेट में डाल दिया है,जिसके चलते आज विश्व का महानायक बनने वाला देश विपदा की घड़ी में,उसको रोक पाने में पंगु महसूस करता हुआ विश्व के मानचित्र पर नजर आ रहा है। महानायक बनने वाला चीन अपने विनाश की कहानी को विश्व जनमानस को विध्वंसककारी मोड़ पर लाकर संपूर्ण विश्व को बैचेन कर विश्व जनमानस का चैन से जीना दूभर सा कर दिया है। मुझे लगता है कि लोगों को विकास के नाम पर भूमि,जल, जंगल, जमीन,अन्न,जीव-जंतुओं का दोहन करना छोड़ देना चाहिये।चूँकि विश्व में घटित होने वाली विनाशकारी विपदा के लिये मनुष्य पूरी तरह से जिम्मेदार है।
एक शिक्षक होने के चलते आप सबों से आशा के साथ उम्मीद करता हूँ कि अगर जिन्दगी जीना है तो प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करना बंद कर दें नहीं तो निकट भविष्य में लोगों का जीना दूभर हो जायेगी। इसलिये भविष्य को भावी अनहोनी से बचाने के लिये प्रकृति के साथ छेड़छाड़ बंद कर देनी चाहिए।
विश्व को पर्यावरण के कुप्रभाव से बचाने की उम्मीद के साथ पूरे विश्व की जनसंख्या को बधाई।।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार
"विनोद"प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा
बांका(बिहार)।
No comments:
Post a Comment