एक मनोविश्लेषणात्मक लेख।
विश्व में शिक्षा,जिसके बिना विकास की बात सोची नहीं जा सकती है,आज मानसिकता तथा पूर्वाग्रह से ग्रसित उपेक्षा का दंश झेल रही है। जैसा कि सर्वविदित है कि शिक्षा ही एक मात्र ऐसी चीज है,जो कि जीवन की प्रत्येक समस्या का समाधान कर सकती है,जो कि बहुत सारे महकमे को रास नहीं आ रही है।चूँकि शिक्षा के द्वारा लोग अपनी हर समस्या को जान सकते हैं तथा निदान निकाल सकते हैं,बहुत सारे लोग को रास नहीं आ रही है,क्योंकि यदि लोग किसी के मन के विकार को जान जायेंगे तो फिर वह अपना अधिकार को समझ जायेंगे जिससे उसका शारीरिक,मानसिक,शैक्षणिक, आर्थिक शोषण कर पाना असंभव के साथ दुर्लभ भी हो जायेगा।
जैसा कि विश्व के विख्यात दार्शनिक हाॅबस का मानना था कि "सभी व्यक्ति स्वभाव से ही स्वार्थी होते हैं,जिसके चलते उसकी मानसिकता होती है कि एक दूसरे को उसकी समस्या को समझने न देना,जिससे कि वह अपनी समस्याओं को एक दूसरे के पास तक न पहुँचा सके।इसी प्रकार से हमारी शिक्षा जो कि जीवन के प्रत्येक स्तर पर दंश झेल रही है,जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति दिलाने वाली मानी जाती है।
शिक्षा प्राप्त कराना अंतरात्मा की आवाज पर निर्भर करती है तथा अतिसंवेदनशील होती है,जिसे कोई भी व्यक्ति मानसिक दबाव में कराने में सफल नहीं हो सकते हैं। आज के समय में जब शिक्षा का लगातार गुणवत्तापूर्ण विकास की बात करने की हो रही है,जो कि संक्रमणकालीन दौर से गुजर रही है। विश्व में राष्ट्र संघ की स्थापना के समय"अन्तराष्ट्रीय श्रम संगठन" तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्गत "अन्तराष्ट्रीय श्रमिक संघ" में भी मजदूरों के काम के घंटे तथा समान काम के लिये समान वेतन की बात आ रही थी जहाँ पर विश्व के मजदूरों के हित की बात सोची गई थी,लेकिन आज लगातार परिवार,समाज,राष्ट्र स्तर पर शिक्षक मानसिक उपेक्षा का दंश झेलते जा रहे हैं।मुझे लगता है कि आज स्थिति ऐसी है कि उपेक्षित मानसिकता का दंश झेलते शिक्षक(जो भी मजबूरी हो)की ज्ञान बाँटने की शक्ति पर लगातार बदलाव आता जा रहा है।
साथ ही शिक्षक तथा अन्य श्रमिकों की जो भी स्थिति हो, उनके कार्य करने की क्षमता का पतन होता ही जा रहा है।साथ ही शिक्षा जो कि लोगों के विकास के लिये जीवनदायिनी है, के बिना तबाही का मंजर झेल रही है। पर्यावरण विज्ञान के अंतर्गत एक उल्लेखनीय बात की चर्चा है कि गई है कि जब किसी भी कामगार को किसी उद्योग में समय से अधिक देर तक काम में लगाया जाता है तो उसके मन मस्तिष्क को तरह-तरह की परेशानियों की समस्या का सामना करना पड़ता है जिसे व्यवसायिक आपदा "Occupational Hazards" के नाम से जाना जाता है।
मेरे कहने का मतलब है कि एक शिक्षक या कोई भी कर्मी जो कि अपनी क्षमता से अधिक समय तक काम करता ही रहेगा वह तरह-तरह की बिमारियों जैसे-रक्त चाप,हृदय रोग,चीनी की बिमारी,मानसिक रोग तथा शरीर की अन्य बिमारियों से ग्रसित हो जायेगा।
साथ ही किसी भी व्यक्ति को अपने कार्यों को लगातार करने के लिये मानसिक रूप से आराम करने की जरूरत पड़ती है।इसके अलावे परीक्षा के मूल्यांकन कार्य को करने के लिये मूल्यांकन कर्ता को भी मानसिक रूप से तनाव मुक्त होना चाहिये क्योंकि यदि वह मानसिक रूप से तनाव मुक्त नहीं होगा तो किसी भी बच्चे के द्वारा परीक्षा में लिखी गई बात जो कि काॅपी में हैं,पर अच्छे अंक दे कर सही प्रकार से मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है।
स्मृति(memory)को दृढ़ यानि (consolidated)होने के लिये आराम की जरूरत होती है और जब स्मृति दृढ़ होगी तो शिक्षक जो कि परीक्षार्थी के द्वारा परीक्षा में दी गई बातों का मूल्यांकन करता है,में सफल हो पायेगा।
अंत में मुझे लगता है,शिक्षकों को जो कि"मानसिक रूप से उपेक्षा का दंश"झेल रही है को बिना किसी दबाव के उनके कार्यों को संपन्न करने देना चाहिये।साथ ही शिक्षक जो कि एक समझदार व्यक्ति है,लगातार अपने कार्यों को संपादित कर रहे हैं,अपने आप में निखार लाने का प्रयास करना चाहिये।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद" शिक्षाविद भलसुंधिया,गोड्डा
(झारखंड)।
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