आर्दश का अर्थ हुआ सुन्दर, सर्वगुण संपन्न जो कि लोगों के समक्ष एक मिसाल के तौर पर प्रस्तुत किया जा सके।साथ ही विद्यालय का अर्थ हुआ जहाँ पर बच्चों को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाली बातों को विकसित किया जाता हो।
जैसा कि शीर्षक से ही पता चलता है कि आदर्श विद्यालय कैसा हो? किसी विद्यालय को आदर्श बनने के लिये बहुत सारी चीजों की आवश्यकता पड़ती है जिसमें-विद्यालय भवन,विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे,शिक्षक तथा उनकी मानसिकता,विद्यालय के पोषक क्षेत्र के लोगों की मानसिकता,विद्यालय में पठन पाठन के लिये उपलब्ध सामग्री, सरकार का सहयोग इत्यादि।
(1)विद्यालय भवन-किसी भी विद्यालय को आदर्श विद्यालय होने के लिये सबसे पहली जरूरत है विद्यालय भवन की,जिसकी कमी आज भी प्रचुर संख्या में देखने को मिलती है। मुझे लगता है कि किसी भी जिले के कुछ विद्यालय को छोड़कर बाकी सभी विद्यालयों में भवन की स्थिति जर्जर बनी हुई है।कुछ नये कमरे जो कि नये बने हो को छोड़कर बाकी कमरों की स्थिति बद से बदतर बनी हुई है।इस कल्याणकारी राज्य में जहाँ शिक्षा के विकास की बात सोची जा रही है आवश्यक सुविधाओं के अभाव में अधूरी पड़ी हुई है।इन विद्यालयों में न तो पेयजल की सुविधा सही ढंग की है और न ही छात्र-छात्राओं के लिये अलग- अलग शौचालय की व्यवस्था है। बहुत दुर्भाग्य की बात है कि अगर आधारभूत संरचना को तैयार करने का प्रयास भी किया गया तो वह किसी न किसी हद तक लूट और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया,जिसके चलते भवन अपने निर्माण से संबंधित मानक को पूरा करने में असफल रहा।
इसके अलावे बच्चों को सही तरह से प्रायोगिक ज्ञान दिये जाने में असमर्थ रहा है।सरकार के द्वारा ली जाने वाली प्रायोगिक परीक्षा खानापूरी मात्र बनकर रह गई है।
(2)विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे- कोई भी बच्चा माता के गर्भ से ही सब कुछ सीख कर नहीं आता है।उसका विकास कराने में माता- पिता,समाज,विद्यालय,शिक्षक की अहम भूमिका होती है,बशर्ते उन नौनिहाल बच्चों को अच्छी तरह की शिक्षा प्रदान करने का प्रयास किया जाय।
वर्तमान में बाँका जिला के श्रीमान जिलाधिकारी श्री कुंदन कुमार तथा बांका के श्रीमान जिला शिक्षा पदाधिकारी अहसन साहब ने मिलकर "उन्नयन बांका" अभियान को चलाकर विश्व में नये किस्म तथा नई तकनीक के साथ शिक्षा के क्षेत्र में जो एक नई कीर्ति स्थापित करने का प्रयास किया है, वह बांका जिला तथा विश्व शिक्षा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुआ है।इसमें विशेष कर सरकारी विद्यालय के बच्चों को सरकारी तौर पर विकसित करने का प्रयास किया गया है।
(3)विद्यालय के पोषक क्षेत्र के लोगों की मानसिकता- प्राचीन शिक्षा के प्रमुख केन्द्र विक्रमशिला के आसपास शिक्षा का औसत आज भी दूसरे जगह की तुलना में कम है क्योंकि यह क्षेत्र पूरी तरह से कृषि जैसे मिर्च,ईख,मकई, आम की खेती के लिये प्रसिद्ध है जो कृषि से तत्कालिक लाभ प्राप्त करते हैं तथा शिक्षा प्राप्त करने के बाद नौकरी की गारंटी नहीं समझ में आने के कारण शिक्षा का विकास नहीं हो पाया है। विक्रमशिला विश्वविद्यालय के आंचल तले बसा हुआ श्री घोलटन मंडल उच्च विद्यालय आज भी शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है ।
(4)प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन सोचता है कि उसका बच्चा पड़ता, कोई शिक्षक उसको पढाता,जीवन में तरक्की करता,लेकिन विद्यालय जाने के बाद कुछ की सोच बदल जाती है।इसलिये जब शिक्षक विद्यालय में जाकर बच्चों को उत्कृष्ट किस्म की शिक्षा प्रदान करने का प्रयास नहीं करेंगे तबतक एक विद्यालय आदर्श नहीं बन पायेगा।
(5)शिक्षक की वास्तविक स्थिति- आज के समय में जब शिक्षा का विकेन्द्रीकरण हो रहा है,सरकार शिक्षा में गुणवत्तापूर्णा सुधार लाना चाह रही है,लेकिन यह तभी संभव हो पायेगा जब शिक्षकों के लिये न्यायप्रिय सेवाशर्त तथा नियमावली बनायी जाय।
आज शिक्षकों की स्थिति बंधुआ मजदूरों से भी बदतर बनी हुई है,जहाँ पर सरकारी तौर पर न तो भविष्यनिधि में कोई अंशदान जमा कराया जाता है और न ही जीवन यापन के लायक वेतन ही दिया जाता है। झारखण्ड में तोइसकी स्थिति और भी खराब है जहाँ पर सुविधा के नाम पर शून्य विद्यालय को आदर्श नाम से संबोधित किया जाना मानो शिक्षा के नाम को कलंकित किया जाना है।
(6)गैर शैक्षणिक कार्य तथा नित्य नए प्रतिवेदन की मांग-शिक्षकों को वर्ग कक्ष के अलावा गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाये जाने के कारण भी शिक्षक विद्यालय में बच्चों को पूरा समय दे पाने में असमर्थ रहते हैं।साथ ही जबतक शिक्षक शैक्षणिक।कार्यों में पूरी तरह से ध्यान नहीं देंगे तब तक न तो शिक्षा के क्षेत्र में तरक्की होगी और न ही विद्यालय आदर्श बन पायेगा।
इन सभी बातों के अलावे विद्यालय प्रधान की सक्रियता विद्यालय के सारे कार्यों की ओर रहेगी तो समस्याओं से घिरा रहने के बाबजूद भी विद्यालय आदर्श बन सकता है।इसके लिए विद्यालय प्रधान को समय पर विद्यालय जाना,विद्यालय की प्रत्येक गतिविधि पर ध्यान देना,वर्ग कक्ष संचालन पर ध्यान देना, विद्यालय विकास के लिये नित्य नए-नए प्रयास करना तथा विद्यालय के सभी शिक्षक एवं शिक्षकेत्तर कर्मचारियों से मित्रवत संबंध बनाये रखते हुए विद्यालय विकास से संबंधित पहलुओं पर विचार विमर्श करते रहना।
आशा के साथ पूर्ण विश्वास भी है कि आने वाले समय में विद्यालय का तथा शिक्षा का विकास पूरी तरह से होगा एवं आदर्श विद्यालय की स्थापना होगी की आशा के साथ ।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद" शिक्षाविद।

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