स्वजन- श्री विमल कुमार "विनोद" - Teachers of Bihar

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Wednesday 25 January 2023

स्वजन- श्री विमल कुमार "विनोद"

   एक भावनात्मक लेख।

इस सृष्टि की उत्पत्ति एक नर का नारी के साथ मिलन से हुई है।इसी से परिवार की उत्पत्ति होती है तथा इसके बाद धीरे-धीरे इस संसार को आगे बढ़ाने के लिये सगे-संबंधियों का आगमन होने लगता है,जिससे कि वृहत् संसार का विकास होता है।मनुष्य के जीवन में कामकाज के साथ-साथ

ऐश-मौज मस्ती की भी जरूरत पड़ती है,क्योंकि इसके बिना जीवन जीने में मजा ही नहीं आती है।मनुष्य को जीवन में कामकाज करने के बाद आराम की भी आवश्यकता होती है,जो कि उनको अपने सगे-संबंधियों के बीच ही मिल पाती है।

मेरा यह आलेख भावनात्मक रूप से ओत-प्रोत होकर लिखा जा रहा है जो कि जीवन की वास्तविकता पर आधारित है।कोई भी व्यक्ति जब जीवन में अपने किसी सगे- संबंधी के घर पर किसी भी पारिवारिक तथा सामाजिक कार्यक्रम में जाता है तथा अपनों से मिलता है,तो अपने आप में एक अनोखा सा सुख प्राप्त होता 

है और पारिवारिक जीवन की अनेक सारी यादों में खो जाता है।साथ ही अपने स्वजनों के साथ मिलकर जबआप अपने संबंधियों से उनका हालचाल पूछने लगते हैं तो आपको जीवन का एक अलग ही मजा आता है,जिसका वर्णन कर पाना मेरे वश में नहीं है।साथ ही जब आपको अपनों से बिछुड़ने के समय आने पर शायद आपको अपनों को छोड़कर जाने का दिल नहीं करता है।

प्रत्येक व्यक्ति की जीवन में यह इच्छा होती है कि अपने  स्वजनों से मिलना,जो कि आपको एक दूसरे से परिचित कराता है, और जब आप किसी भी पारिवारिक तथा सामाजिक कार्यक्रम में एक दूसरे से नहीं मिलते हैं,तो आपको समाज में अपनी अहमियत नगण्य सी मानी जाती है।इसके अलावे जबतक आप अपने स्वजनों से नहीं मिलते जुलते हैं तो फिर आपको समाज में जीना भी मुश्किल सा हो जायेगा,क्योंकि आपको भी आपने जीवन में अपने स्वजन की आवश्यकता महसूस होगी  जिसके बिना आपकी जिन्दगी तथा सुख-दुःख से भरा यह कार्यक्रम आधूरा सा लगेगा।

 मुझे ऐसा लगता है कि किसी भी व्यक्ति को अपने स्वजनों से मिलना-जुलना तथा उनके सुख-दुःख भरे समय में साथ देना आवश्यक होता है,क्योंकि जब आप अपने लोगों से मिलेंगे,उनसे अपने विचारों को साझा करेंगे, तभी आपको लोग समझ पायेंगे, जो कि आपको जीवन के हर मोड़ पर काम आयेगा।

अंत में मेरी राय है कि हम सबों को अपने जीवन में अपने स्वजनों के सुख-दुःख भरे कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति दर्ज करनी चाहिये,तभी हमलोगों की सामाजिक तथा पारिवारिक सम्मान तथा प्रतिष्ठा बनी रहेगी।


आलेख साभार-श्री विमल कुमार 

"विनोद" शिक्षाविद,भलसुंधिया,गोड्डा 

(झारखंड

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