जल,जीवन,हरियाली एक चुनौती पूर्ण प्रयास- श्री विमल कुमार "विनोद" - Teachers of Bihar

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Wednesday 25 January 2023

जल,जीवन,हरियाली एक चुनौती पूर्ण प्रयास- श्री विमल कुमार "विनोद"

भारत में वन महोत्सव कार्यक्रम जो कि जुलाई-अगस्त के महीने में मनाया जाता है जिसका मुख्य स्लोगन है,"वृक्ष का अर्थ है जल, जल का अर्थ है रोटी और रोटी ही जीवन है"।इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सरकार की महत्वाकांक्षी योजना"जल,जीवन और हरियाली "जो कि पर्यावरण की मुख्य समस्या से जुड़ी हुई है असंभव नहीं बल्कि एक चुनौती पूर्ण कार्य के रूप में सामने आ रही है।आज के समय में संपूर्ण पर्यावरण जो कि पूरी तरह से प्रदूषित होता जा रहा है जहाँ पर सोचने वाले तो बहुत है लेकिन  सरजमीं पर लाने वाले कम हैं के क्षेत्र में सरकार द्वारा चलाया गया एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। एक शिक्षक के साथ-साथ पर्यावरणविद होने के नाते मुझे इसकी निम्नलिखित मूल समस्यायें नजर आती है।

(1)वृक्षारोपण की समस्या-वृक्ष लगाना मुख्य रूप से वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के जिम्मे रहता है जहाँ पर यह विभाग अपना एक लक्ष्य निर्धारित करके वृक्षारोपण कराने का प्रयास करती है।लेकिन सवाल यह उठता है कि पौधों को कैसे बचाया जाय,क्योंकि वन विभाग तीन से चार वर्ष तक के लिये ही उन वृक्षों की देखभाल करती है। उसके बाद जैसे ही वन विभाग उसकी देखभाल करना बंद कर देते हैं,आसपास के लोगों के द्वारा उन वृक्षों को नष्ट कर दिया जाता है।

  इसके साथ एक प्रश्न यह भी उठता है कि आज के समय में वृक्षों को लगाने की बात महज खानापुरी जैसी लगती है।साथ ही  अगर वृक्ष लगाये भी जाते हैं तो बिना बांस गेवियन के उसको बचाना मुश्किल होगा।इसके अलावे इन वृक्षों को लगाये जाने के बाद लगातार वर्षा के जल की आवश्यकता होती है जिससे पौधे लग सके ,इसके लिये उपयुक्त समय आद्रा नक्षत्र से ही प्रारंभ को माना जाता है,क्योंकि वृक्षों को लगाने की खानापुरी आसान है बचाना एक बड़ी समस्या है।

(2)जल संरक्षण की समस्या-जल संरक्षण का अर्थ विशेषकर वर्षा के जल के संरक्षण की बात है,जो कि आज के समय में जब कंक्रीट  के जंगल का जाल सा बिछा हुआ है, से जल संरक्षण की उम्मीद मनुष्य के जीवन की नासमझी मानी जायेगी।साथ ही जब  तक वर्षा का जल जमीन के नीचे नहीं जायेगा तब तक भू-जल का   स्तर बढ़ पाना असंभव है और जब तक भूमि के अंदर वर्षा का जल नहीं जायेगा तब तक जल का संरक्षण असंभव है।

(3)तालाब का खेल के मैदान का रूप धारण करना- आज जल संरक्षण का एक प्रमुख संसाधन तालाब जो कि अपने जीर्णोद्धार की आस लगाये है,जिसके कारण तालाबों में जल संग्रहण नहीं हो पा रहा है,जिसके चलते जल, जीवन,हरियाली कार्यक्रम प्रभावित होने की संभावना बनती है।

(4)नदियों से अवैध बालू का उठाव-चूँकि बालू के बिना पक्के का मकान बनना मुश्किल है, लेकिन उसके लिए बालू उठाने का एक मानक निर्धारित होना चाहिये,जिसका आज के समय में खुलकर उल्लंघन हो रहा है ,जहाँ नदियाँअपना अस्तित्व खोती जा रही है।नदियों से बिना किसी निर्धारित मापदंड के बालू का उठाव किये जाने के कारण नदियां काफी गहरी हो गई तथा उससे निकलने वाली छोटी नहर(डांड़) का मुहाना उपर हो गया जिससे सिंचाई बुरी तरह से प्रभावित हो गई तथा सुखाड़ की समस्या पैदा हो गई एवं हरियाली नष्ट हो गई।

(5)रासायनिक खाद एवं कीटनाशक का प्रयोग-आज के समय में देश की बढ़ती हुई जनसंख्या के भरण-पोषण के लिये अधिक अनाज के उत्पादन की सख्त आवश्यकता है,जिसके लिये लोग मानक से ज्यादा रासायनिक खाद तथा रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग करते हैं जिसके कारण जमीन की उर्वरा शक्ति कम होती जा रही है।साथ ही अत्यधिक रासायनिक खाद दिये जाने के कारण लोगों में यूरिक एसिड,रक्तचाप,मानसिक तनाव,नेत्र रोग इत्यादि का प्रकोप बढ़ गया है।

इसके अलावे थाईमाइट तथा अन्य रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग किये जाने से केचुआ सहित भूमि के जैव विविधता का तेजी से विलुप्तिकरण हो रहा है। आज के समय में फसलों को लगाने के पहले से ही खेतों में कीटनाशक के प्रयोग किये जाने से कैंसर,डायबीटीस,हृदय रोग इत्यादि जानलेवा बीमारी के होने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ गई है।इस प्रकार से हम देखते हैं कि जीवन को जीने की बहुत बड़ी-बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई है। जल,जीवन,हरियाली को बनाये रखने के सुझाव-जल ,जीवन,हरियाली बिहार के माननीय मुख्यमंत्रीश्री नितीश कुमार की एक उत्कृष्ट सोच है जिससे पर्यावरण के समक्ष उत्पन्न संकट से उबरा जा सकता है

जो निम्न प्रकार हैं-

(1) वृक्षा रोपण तथा वृक्षों की महत्ता से संबंधित जागरुकता कार्यक्रम चलाया जाना चाहिये। वृक्षारोपण के लिये बांस गेवियन की व्यवस्था होनी चाहिए।बिहार वन,पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के तरीके पर"नदी तट वृक्षारोपण"  जिसमें  नदी को चिन्हित करके कटीले तार से घेराबंदी करके वृहत पैमाने में वृक्षारोपण किया जाना चाहिये।

नये लगाये गये वृक्षों की देखभाल के लिये नियुक्त किये गये 'वाचर' को समय से उसका पारिश्रमिक दिया जाना चाहिये। इसके अलावे सड़क चौड़ीकरण करके" विकास बाबा" के नाम बलि वेदी  पर चड़ाये जाने वाले वृक्षों के जगह वृक्षों को पथ निर्माण विभाग के द्वारा लगाया जाना चाहिये।

  साथ ही झारखंड सरकार की महत्वाकांक्षी योजना "मुख्यमंत्री जन वन योजना"के तर्ज पर बिहार में भी वृक्षारोपण किया जाना चाहिये।

(2)जैव विविधता तथा खेतों में दिये जाने वाले रासायनिक खाद तथा कीटनाशक के जगह पर जैविक खाद तथा नीमयुक्त कीट नाशक का प्रयोग किया जाना चाहिये ,जिससे केचुआ तथा अन्य जीवों को बचाया जा सके।साथ ही जैविक खाद के ग्राम स्तर पर बनाये जाने का प्रयास करना चाहिए।कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।

  इस तरह यदि भूमि को रासायनिक खाद तथा रासायनिक कीटनाशक के प्रयोग से बचाने का प्रयास किया जाता है तो ,जीवन को बहुत हद तक बचाया जा सकता है।

(3) वर्षा के जल संरक्षण तथा अवशिष्ट जल संरक्षण का प्रयास- जहाँ तक जल संरक्षण की बात है,ऐसा देखा जाता है कि मुश्किल से 16% वर्षा का जल ही मैदान तथा भूमि के अन्य भागों के द्वारा जमीन के अंदर जाता है।इसके अलावे 7%वर्षा का जल चक्रण में रहता है,बाकी जल नदी नालों के द्वारा महासागरों में चला जाता है।

   एक पर्यावरणविद के रूप में मेरा मानना है कि जल संरक्षण के लिये प्रत्येक घर में पनसोखा होना चाहिये,जिससे कि अवशिष्ट जल का पुनः प्रयोग हो सके। विद्यालय में भी बच्चों की आदत होती है पानी पीने के समय बार- पैर धोने की,जिसको रोकने का प्रयास किया जाना चाहिये।साथ ही ब्रश करने के समय भी कम-से-कम पानी खर्च करने का प्रयास करना चाहिए।नहाने के समय भी जितनी आवश्यकता होगी उतना ही जल खर्च करना चाहिए।

सरकार की महत्वकांक्षी योजना हर घर नल भी जल संरक्षण तथा  जल संकट दूर करने में उपयोगी सिद्ध हो रही है,लेकिन बिना जन सहभागिता तथा जन जागरूकता के यह संभव नहीं है क्योंकि नल के टोटी टूट जाती है तो पुनः उसको लगाने का प्रयास नहीं किया जाता है। वर्षा के जल के संरक्षण के लिये नये घर का निर्माण करते समय ,घर के उपरी छत से भू-तल तक वर्षा के जल को संरक्षण करने के लिये पाइप के जरिये जल को जमीन के अंदर तक ले जाने की व्यवस्था होनी चाहिये।

  अंत में,मेरी यह सोच है कि सरकार के द्वारा विकसित की गई "जल, जीवन,हरियाली"कार्यक्रम एक उत्कृष्ट सोच है,जिसे सरकारी   प्रयास के साथ-साथ जनजागरण अभियान के द्वारा सरजमीं पर लाया जा सकता है जिसके लिए विद्यालय के साथ-साथ समाज के प्रत्येक व्यक्ति तक इस अभियान को चलाना होगा।

   इस कार्यक्रम के द्वारा आने वाला कल पर्यावरण के क्षेत्र में मील का पत्थर सिद्ध होगा इसकी

बहुत सारी शुभकामनायें।


आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"भलसुंधिया,गोड्डा(झारखंड)

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