पर्यावरण विशेषज्ञ की लेखनी से।
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किसी जीव को चारों ओर से जो जैविक तथा अजैविक घटक घेरे रहते हैं उसे हम पर्यावरण कहते हैं। इस पर्यावरण को मनुष्यों ने अपने हितों के लिये लूटा है तथा इसके तबाही का मूल कारण मनुष्य है।इसकी मुख्य समस्या जैसे-नदियों से अवैध बालू का उठाव,सड़कों के दोनों ओर वृक्षों के कटने के बाद पुनः नहीं लग पाना,बरसात के जल का संरक्षण न हो पाना,अंधाधुंध रासायनिक खाद तथा कीटनाशक का प्रयोग किया जाना,पोलीथिन का प्रयोग किया जाना,क्लोरोफलोरो कार्बन का ज्यादा उत्सर्जन किया जाना,अधिक संख्या में पेट्रो केमिकल से चलने वाली गाड़ियों की संख्या में बढ़ोतरी आदि।
अवैध बालू का उठाव-
विकास की अंधाधुंध दौड़ में लोग सड़कों के किनारे मकान बनाकर कोई रोजगार करने की बात सोचते हैं-जिसके मूल में जनसंख्या वृद्धि ,तथा बेरोजगारी है।साथ ही ज्यादा से ज्यादा रूपया कमाने के लिये बिना किसी मानक को निर्धारित किये ही अवैध बालू का उठाव किया जा रहा है जिसका उदाहरण- चीर कझिया,हरना,सापिन,गेरूआ, सुन्दर ,चांदन आदि जो कि बिहार एवं झारखंड के गोड्डा एवं बांका जिला की प्रमुख नदियाँ है, जिसका अस्तित्व पूरी तरह से समाप्त हो चुका है। इसके मूल में जिला प्रशासन,बालू माफिया एवं विशेषकर उस क्षेत्र की अशिक्षित जनता है जो कि महज चंद रूपये के लालच में नदी रूपी माँ का कफन तक बेच देते हैं।इससे पूरे जैव विविधता का अस्तित्व खतरे में नजर आता है।
अंधाधुंध वृक्षों का कटाई-
सड़कों के चौड़ीकरण तथा विकास बाबा को खुश करने के नाम पर अंधाधुंध वृक्षों की कटाई तथा उसके जगह पर नये वृक्षों का न लगाया जाना सरकार की विफलता का परिचायक है।सरकार को चाहिये कि सड़कों के चौड़ीकरण के लिये अनापत्ति प्रमाण पत्र देने के समय नये वृक्षों को लगाने का करार होना चाहिये। क्योंकि सड़कों में पैदल चलने वाले राहगीर वृक्ष की छाया पाने को लालायित रहते हैं।
बरसात के जल का संरक्षण-
मनुष्य के जीवन का यह दुर्भाग्य है कि वह प्रकृति से सिर्फ प्राप्त करना अपना अधिकार समझता है,उसका संरक्षण करना अपना उत्तरदायित्व नहीं। क्योंकि कंक्रीट के जंगल से जल की कामना मनुष्य की नासमझी है।आखिर वर्षा के जल को पृथ्वी के भीतर जाने वाले रास्ते को सीमेंट और कंक्रीट से बंद कर दिया है तथा अपने-अपने घरों में पनसोखा भी नहीं बनाया है।इसके अलावे घर बनाते समय लोगों को अपने घर के वर्षा के संपूर्ण जल को पृथ्वी के अंदर ले जाने के लिए भूमि के अंदर तक पाइप डाल देना चाहिए।साथ ही तालाब आज खेल का मैदान बनता जा रहा है जिसके जीर्णोद्धार की सख्त आवश्यकता है।शहरों में भू-माफियाओं ने प्रशासन के साथ मिलकर तालाबों का प्लोटिंग कर जमीन को बेच दिया जो कि जल संरक्षण का काम करता था।
अंधाधुंध रासायनिक खाद तथा कीटनाशक का प्रयोग-
किसान खेती करते समय अधिक फसल उत्पादन करने के लिये मानक से अधिक रासायनिक खाद तथा कीटनाशक का प्रयोग करके केचुआ,घोंघा,मेढ़क,मांगूर तथा अनेक जैव प्रजातियों को नष्ट कर देते हैं।साथ ही हरी साग सब्जियों को उपजाते समय रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग किया जाना लगभग 40%कैंसर होने की संभावना को बढ़ावा देता है। लेकिन मनुष्यों की स्थिति ठीक वैसी ही है जैसे सर्प के मुँह में जकड़े होने के बाबजूद भी मेंढक अपना मुँह खोले रखता कि कोई कीट उसके मुँह में भक्षण के लिये आ जाता।
पोलीथिन का प्रयोग बंद न होना-
जैसा कि सभी को पता है कि पोलीथिन आज भूमि को कैंसर की तरह नष्ट किये जा रही है। 2018 के विश्व पर्यावरण दिवस का स्लोगन था"बीट प्लास्टिक पोलयूशन"जो कि आज अपनी असफलता पर आँसू बहाता हुआ नजर आता है। इसका मूल कारण उपभोक्ता तथा सरकारी प्रशासन की विफलता है।देश के कुछ प्रांतों में तो पोली बैग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है लेकिन यह बिहार, झारखंड के पोस्टरों की शोभा बढ़ाता मात्र बनकर ही रह गया।
अफसोस की बात यह है कि जो अपने को पर्यावरण विशेषज्ञ कहते हैं तथा पौधों को विकसित करते समय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग भी पोलीथिन के पैकेट का प्रयोग करता है जो कि दुर्भाग्य की बात है।क्या 2018 के विश्व पर्यावरण दिवस के समय गोड्डाशहर के दो-तीन तालाबों से अडाणी के सहयोग से पोलीथिन साफ कराकर फोटो खींचवा लेने से सभी तालाब पोलीथिन मुक्त हो गये,यह एक चिंतनीय प्रश्न है।
क्लोरोफलोरो कार्बन गैस का बेतहाशा प्रयोग किये जाने से
क्लोरोफलोरो कार्बन ऐसी गैस है जो कि ओजोन परत को पतला बनाता है,जिसका प्रयोग किया जाना विश्व पर्यावरण के लिये चिंता की बात है, लेकिन मनुष्य करे तो क्या करे इस बेतहाशा गर्मी से बचने के लिये वातानुकूलित कमरों में रहना आज साधारण सी बात हो गई है।
पेट्रो केमिकल्स युक्त धुआँ निकालने वाली गाड़ियों में बेतहाशा वृद्धि-
बड़े-बड़े रईसजादा घरानों में देखा जाता है कि परिवार के सभी सदस्यों के लिये अलग-अलग गाड़ी है जो कि बहुत ज्यादा मात्रा में रासायन युक्त धुआँ निकालती है जिसके चलते पृथ्वी का तापमान बहुत बढ़ जाता है जिसके फलस्वरूप पृथ्वी के दाब और तापमान में असंतुलन पैदा हो जाती है जो कम वर्षा होने का मुख्य कारण है।
साथ ही कोयला खदानों तथा जंगलों में वर्षों से लगी आग एवं बेकार का बिजली के प्रयोग किये जाने से भी वैश्विक ताप में वृद्धि होती है।
अंत में,पर्यावरण विशेषज्ञ होने के चलते आप सबों से आशा के साथ उम्मीद करता हूँ कि अगर जिन्दगी जीना है तो प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करना बंद कर दें नहीं तो "माटी कहे कुम्हार से तू काहे रौंधे मोय ,एक दिन ऐसा आयेगा मैं रौंधूंगा तोय "वाली बात होगी।
विश्व को पर्यावरण के कुप्रभाव से बचाने की उम्मीद के साथ पूरे विश्व की जनसंख्या को बधायी।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"शिक्षाविद,भलसुंधिया,गोड्डा
(झारखंड)।
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