बाल विकास मनोविज्ञान के अंतर्गत जब बालक-बालिका किशोरावस्था में प्रवेश करती है तभी से उसमें विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होने लगता है तथा उसमें यौवनारंभ प्रारंभ हो जाता है।इस समय से ही बालक-बालिकाएं एक दूसरे के प्रति आकर्षण में आकर अपने मन मस्तिष्क तथा विचार का गलत प्रयोग करने लगते हैं तथा अपने इस समय का मौज-मस्ती,इश्क,समय का गलत उपभोग करने की ओर ,व्यतीत करने लगते हैं जो कि आने वाले समय के लिये घातक सिद्ध होता है।चूँकि बच्चों को जन्म से लेकर प्रौढ़ावस्था तक माता-पिता,परिवार तथा समाज ,विद्यालय तथा शिक्षक के कुशल मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है जिसके अभाव में किशोर अपने मुख्य मार्ग से भटक जाते हैं।एक शिक्षक,समाज का अभिन्न अंग, मनोविज्ञान के ज्ञाता,लेखक होने के नाते सामूहिक दुष्कर्म तथा बलत्कार जैसी बातें जिसने मेरे मन मस्तिष्क को झकझोर कर रख दिया और मुझे लगा कि "बलत्कार एक घृणित कृत्य"है के कारणों तथा इससे कैसे निपटा जा सकता है को मैंने अपनी लेखनी से ढालने का प्रयास कर रहा हूँ,जो कि प्रस्तुत है।
(1)पश्चिमी सभ्यता तथा आधुनिकता का दौर तथा माता-
पिता के कुशल मार्गदर्शन की कमी के कारण आज हमारी भारतीय संस्कृति का विलुप्तिकरण हो रहा है।इस आधुनिकता के दौर में बच्चे तथा बच्चियों के पहनावे ने घर से लेकर विद्यालय तक के वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालने का प्रयास किया है जो कि विद्यालय प्रबंधन को नैतिक तथा अनुशासनात्मक व्यवस्था बनाये रखने में ऊहापोह की स्थिति पैदा कर देता है।इस समाज के अविभावकों को यह चिंतन करना चाहिये कि जहाँ पर सह-शिक्षा के विद्यालय है तथा किशोर छात्र-छात्रायें विद्यालय आती हैं वहाँ तथा उसे उसके गणवेश में ही भेजने की कृपा की जाय।उन बच्चों को अपने संस्कृति से संबंधित पोशाक पहनाकर बच्चे-बच्चियों को विद्यालय भेजने के पहले आपको इस संबंध में पहल करनी चाहिए।आप एक सभ्य समाज के सभ्य व्यक्तित्व हैं,आपसे संपूर्ण समाज उम्मीद करता है,इसलिए इस क्षेत्र में आपकी सहभागिता नितांत आवश्यक है ।
(2)विकृत मानसिकता-समाज में फैली नशीली चीजों जैसे-शराब,गांजा,अफीम,चरस तथा अन्य नशीली चीजों के लगातार सेवन किये जाने के कारण तथा लगातार बेरोजगारी से जूझने के कारण आज युवा वर्ग की मानसिकता विकृत हो गई है,जो कि असामाजिक कार्य की ओर लोगों के मन मस्तिष्क को धकेल देता है।
(3)जबरन काम वासना-प्रदूषित वातावरण के संपर्क में रहने के कारण लोगों की नियति समाज की भोली भाली महिलाओं तथा लड़कियों को शादी का झांसा देकर अवैध यौन शोषण करने मात्र रह गया है।
इस काम में असफलता हाथ लगने पर वह विकृत मानसिकता के साथ दुष्कर्म करने तथा दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या कर देना ही उसके जिन्दगी का कुकर्म होता है।
(3)प्रतिशोध की भावना- किसी भी महिला से जब लोग अपने काम वासना की पूर्ति नहीं कर पाते हैं तो वैसी स्थिति में लोग तनाव में आकर अपने मित्रों के साथ मिलकर गैंगरेप की घटना को अंजाम देते हैं।
(4)माता-पिता तथा परिवार की अनदेखी-लड़का-लड़की का बचपन से ही परवरिश में अनदेखी किये जाने के कारण तथा बड़ा होने पर उसके मार्गदर्शन की कमी होने से बच्चों की मानसिकता विकृत रूप धारण कर लेती है ,जो कि महिलाओं के साथ बलात्कार जैसे दुष्कर्म करने के लिये प्रेरित करती है।
(5)सोशल मीडिया तथा समारट फोन के द्वारा भी बलत्कार तथा दुष्कर्म जैसे कार्य को प्रेरित करने में अहम भूमिका निभाती है, क्योंकि इंटरनेट की दुनिया में लड़का-लड़की एक दूसरे के संपर्क में नजदीक आ जाते हैं तथा जब दोनों के बीच का प्रेम वासनात्मक रूप धारण कर लेता है तथा उसकी पूर्ति न हो तो वैसी स्थिति में लड़का की मानसिकता विकृत रूप धारण कर लेती है,जो कि सामूहिक दुष्कर्म तथा बलत्कार जैसी घृणित कृत्य को अजाम दती है।
(6)न्याय में देरी-न्याय में देरी तथा सख्त एवं कठोर दंड का प्रावधान नहीं किये जाने के कारण भी लोगों के मन से भय कम हो गया है,जिसके कारण सामूहिक दुष्कर्म तथा गैंगरेप आदि की घटना को अंजाम दिया जाता है।उदाहरण स्वरूप निर्भया बलत्कार कांड के सात वर्ष पूरे हो जाने के बादजूद भी उसके हत्यारे को सजा नहीं मिल पाना यह पूरे प्रशासन तंत्र के सामने चुनौती प्रस्तुत करता है।
आखिर एक चुनौती पूर्ण समस्या जो कि समाज में कोड़ के रूप में उभर कर आ रही है वह है बलत्कार,जो कि समाज के आम लोगों के मुंह से सुनाई देती है ।एक ऐसी जघन्य कृत्य जिसमें खुलेआम महिलाओं की अस्मिता को लूटने का काम हो रहा है।आज समाज में प्रतिदिन हजारों निर्भया की खुलेआम इज्जत लूटी जा रही है तथा सामूहिक दुष्कर्म के बात गुप्तांगों में लोहे का रड डालकर हत्या कर दी जाती है ,जिसका इंसाफ सात वर्षों में भी नहीं मिल पाया ।निर्भया की मां दो वर्ष से सर्वोच्च न्यायालय का चक्कर मारते हुये शारीरिक रूप से तो थक चुकी है लेकिन मानसिक रूप से ईश्वर पर विश्वास है कि निर्भया के बलत्कार के दरिंदों को एक दिन सजा अवश्य मिलेगी।
इस संबंध में मैंने श्री राम भरत वन संरक्षक जमशेदपुर से पूछा कि आखिर इस तरह के दरिंदो को बीच सड़क पर गोली मार दी जाय या खुले आम फाँसी की सजा दे दी जाय,तो उनका कहना था कि फांसी की सजा का मैं विरोधी नहीं,बल्कि ऐसे मामलों का फास्ट ट्रैक कोर्ट के द्वारा स्पीडी ट्रायल चलाकर एक निश्चित समय में सुनवाई पूरी की जानी चाहिये।साथ ही बलत्कार संबंधी मामलों की सुनवाई के लिये न्यायाधीश की नियुक्ति की जानी चाहिये।साथ ही जो अधिवक्ता इस तरह के मामलों में अपना कार्य सही तरह से न करते हो,उसके रजिस्ट्रेशन को रद्द कर देना चाहिए।
इन सभी बातों के अलावे ,मुझे लगता है कि चाहे प्रशासन तथा न्यायपालिका बलत्कार को रोकने के लिये अपने को जितना भी सक्षम समझ ले,बलत्कार जैसे जघन्य कृत्य को अंजाम देने वालों पर इसका प्रभाव नगण्य दिखाई पड़ता है जिसका मुख्य कारण प्रशासन की कमजोरी तथा न्याय की देरी है,जिसका उन दरिंदो पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता है।
आने वाले समय में इसे सामाजिक जन जागरूकता चलाकर तथा इस तरह के घृणित कृत्य करने वाले को जल्द-से-जल्द कड़ी सजा दिला कर बलत्कार जैसे घृणित कृत्य से समाज के महिला जैसीअभिन्न अंग की अस्मिता को बचाया जा सकता है।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद" शिक्षाविद,भलसुंधिया,गोड्डा
(झारखंड)।
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