संस्कार का अर्थ है सदगुणों को गुणा करना अर्थात बढ़ाना एवं दोषों का भागफल अर्थात दोषों को घटाना ।संस्कार शब्द का अर्थ है शुद्धिकरण ।जीवात्मा जब एक शरीर को त्याग कर दूसरे शरीर में जन्म लेता है तो उसके पूर्वजन्म के प्रभाव उसके साथ जाते हैं ।इन प्रभावों का वाहक सूक्ष्म शरीर ही है ।दूसरे शब्दों में संस्कार का मतलब है अच्छी नैतिकता और नैतिक मूल्यों,संस्कृति,अभिषेक पवित्रता,शोधन इत्यादि ।
संसार में पायी जाने वाली योनियों में मनुष्य योनि को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है ।इसलिए मनुष्य के साथ साथ देवता भी इस योनि में आने के लिए लालायित रहते हैं क्योंकि सभी जीवों में मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जिसको ईश्वर ने बुद्धि,विवेक, ज्ञान दिया है ।
मनुष्य के जीवन में गर्भाधान से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कार होते हैं ,जो कि आपके जीवन की पहचान है ,जिससे समाज में आपकी पहचान बनती है ।
बालक जन्म के बाद से अपने माता पिता के साथ धीरे-धीरे पलता है।इस दरम्यान वह अपने परिवार के लोगों के साथ मिलकर बोलना,चलना,एक दूसरे से व्यवहार करना अपने नैतिकता का विकास करना,बड़ों का सम्मान करना आदि चीजें सीखता है ।जो कि उस बच्चे में नैतिकता तथा सम्मान एवं आदर्श गुणों का विकास करता है।प्रत्येक माता पिता को अपने बच्चों में सुन्दर गुणों का विकास करना चाहिए क्योंकि ये सुन्दर गुण ही उनके वंश की पहचान है ।
आज के पश्चिमीकरण तथा आधुनिकता की दौड़ में शायद इस संस्कार के विकास में ग्रहण लगता जा रहा है ।आज के समय में हमारे बालक नैतिकता,अनुशासन ,शिष्टाचार,संस्कृति को भूलते जा रहे हैं।इसके लिए परिवार,समाज,शिक्षक तथा बदलता हुआ सामाजिक परिवेश उत्तरदायी है।
प्रत्येक माता पिता अपने बच्चों को एक चरित्रवान ,प्रतिभाशाली व्यक्ति बनाना चाहते है ,लेकिन जब दूसरे बच्चों की बात आती है तो शायद वह इस बात को भूल जाते हैं,तो आप एक अविभावक कै साथ साथ एक शिक्षक भी हैजो प्रति दिन अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दिलाने की बात तो सोचते हैं लेकिन जब एक शिक्षक के रूप में शिक्षा देने की बात आती है तो शायद आपकी इच्छा शक्ति समाप्त हो जाती है ।आपने जिस विद्यार्थी को अच्छी शिक्षा तथा संस्कार देने का प्रयास ही नहीं किया तो फिर वह बच्चा आपके साथ संस्कार पूर्ण व्यवहार कैसे कर सकता है?आज के समय में शायद गुरु शिष्य के व्यवहार में गिरावट आने का यह एक प्रमुख कारण है ।
आपके व्यवहार को आपके बच्चे भी ग्रहण करते हैं ।जिस माता पिता ने आपको बड़े प्यार से लालन पालन किया उस बूढ़े माँ-बाप को आप दो वक्त भोजन कराने में असमर्थ हो जाते हैं,फिर आपका बेटा आपको बुढ़ापे में तिरस्कृत करता है तो बहुत दुःख की बात नहीं है ।
आज का बदलता हुआ सामाजिक परिवेश जहाँ बाप बेटा एक साथ बैठकर जुआ खेलता हो,शराब पीता हो खैनी ,गुटका,बीड़ी,सिगरेट पीता हो तो फिर मर्यादा और नैतिकता की बात कहाँ उठती है ।
सबसे दुःख की बात तो यह है कि धर्म के ठेकेदार जो कि बड़े बड़े मंचों से ढकोसला बाजी वाले प्रवचन तो देते हैं लेकिन कुछ ही दिनों में जब इनके गंदे कारनामों।के चलते जेल की सलाखों के अंदर चले जाने से समाज के भोले भाले लोगों को आत्मग्लानि होती है।अगर हमारे देश को संस्कार देने के नाम पर किसी ने लूटा है तो इन्हीं चरित्रहीन लोगों ने जिसका पूरे जनमानस को अफसोस है ।
आज के इस आधुनिकता तथा पश्चिमीकरण के दौर में आज प्रत्येक।जन मानस को चाहिए कि अपने बच्चों ,परिवार तथा अपने बच्चों परिवार तथा अपने आप में अच्छे संस्कार का विकास करें।बच्चों को विद्यालय भेजते समय उनके मर्यादित वेष भूषा में भेजें ।उसका चारित्रिक विकास करने का प्रयास करें ।उसमें सुन्दर गुणों का विकास करें ।शैक्षणिक संस्थान के विद्वान शिक्षकों से भी अनुरोध है कि आप के कंधों पर राष्ट्र के निर्माण का दारोमदार है, आप अपने नन्हें मुन्हें बच्चों का सुन्दर चरित्र का निर्माण करने का प्रयास करें ताकि कल का भविष्य सुन्दर,उज्जवल हो सके। हमारे समाज के लोगों को भी यह सोचना चाहिए कि हम बच्चों के नैतिक ,मानसिक,आध्यात्मिक विकास कराने में अपना योगदान दें ताकि एक संस्कारपूर्ण व्यक्ति का निर्माण हो सके ।
श्री विमल कुमार"विनोद"
संस्कार के बिना किसी भी व्यक्ति का विकास नहीं हो सकता है,इसलिए बच्चे-बचचियों में संस्कार का विकास करने का प्रयास करना चाहिए।
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