आज महान संत,आध्यात्मिक गुरु और विचारक रविदास जी की जयंती है। इनका जन्म हिन्दी माघ माह की पूर्णिमा को वाराणसी उत्तर प्रदेश में हुआ था। इस बार इनकी जयंती ५ फरवरी को मनाई जा रही है।
उनका जन्म काल में मतभेद हैं।१३७७ से १३९८ के बीच उनका जन्म होना माना जाता है।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा शारदा नंद की पाठशाला से शुरु की थी। पर वहां उच्च कुल के छात्रों का पाठशाला में आने का विरोध किया। इस उंच-नीच के विचार को उन्होंने उसी समय दूर करने की ठानी थी थी। उनके गुरु उनके आचरण,पढ़ाई और व्यवहार से बहुत प्रभावित थे।
रैदास कबीर के समकालीन थे। रामानंद गुरु के बारह शिष्यों में से कबीर और रैदास प्रमुख थे। दोनों में गहरी मित्रता थी।
उन्हें महान साधक और समाज में नव मूल
मानव हित स्थापित करने वाला ज्ञानी समझा जाता है।
मुगल काल में भी इन्हें वह सम्मान हासिल था। ऐसा इसलिए की पहले इनकी सिद्धि और विचारों का विरोध हुआ फिर लोगों में इनकी मानवीय सोच का परिणाम था कि उस समय के शासक वर्ग भी इनके आगे नतमस्तक हुए। जबकि उस समय के तथाकथित कुलीन वर्गों द्वारा इनकी काफी आलोचना इसलिए की गई थी क्योंकि उनकी मानव वाणी उन्हें कुलीन व्यवस्था के एकाधिकार के प्रतिफल में रैदास की वाणी संदेश रुप में प्रचलित हो रही थी और कुलीन वर्ग को चोट पहुंचा रही थी। इस कारण उन्हें वर्ण व्यवस्था द्वारा थोपे गए जाति आधारित व्यवस्था का घोर शिकार होना पड़ा था। फिर भी वे अडिग रहे और अपने मानव संदेशों को जगह-जगह पहुंचाने का कार्य जारी रखा। आज २१वीं सदी में भी उनकी वाणी समाज में मानव हित जग कल्याण का संदेश पहुंचा रही है।
उनका कहना था , अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है।
संत रैदास १५वीं सदी के एक प्रमुख व प्रसिद्ध संत थे। निर्गुण संप्रदाय के प्रसिद्ध इस संत ने अपनी स्वरचनाओं के माध्यम अपने अनुयायियों और समाज के लोगों को सामाजिक और आध्यात्मिक संदेश दिया। उनकी वाणी भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना तथा मानव प्रेम से ओत-प्रोत होती थी। इसलिए उसका श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था। उनके भजनों तथा उपदेशों से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी जिससे उनकी शंकाओं का सन्तोषजनक समाधान हो जाता था और लोग स्वतः उनके अनुयायी बन जाते थे।
उनकी वाणी का इतना व्यापक प्रभाव पड़ा कि समाज के सभी वर्गों के लोग उनके प्रति श्रद्धालु बन गये। कहा जाता है कि मीराबाई उनकी भक्ति-भावना से बहुत प्रभावित हुईं और उनकी शिष्या बन गयी थीं।
वर्णाश्रम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।
सन्देह-ग्रन्थि खण्डन-निपन, बानि विमुल रैदास की ॥
आज भी सन्त रैदास के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार पर महान नहीं होता है। विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सद्व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण सन्त रैदास को अपने समय के समाज में अत्यधिक सम्मान मिला और इसी कारण आज भी लोग इन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं।
रैदास के ४० पद गुरु ग्रन्थ साहब में मिलते हैं जिसका सम्पादन गुरु अर्जुन साहिब ने १६ वीं सदी में किया था। राग सिरी,गौरी,,आसा,गुजरी,बोर्ड,धनसारी,जैतसारी,सुही,बिलावल,गौंड,,रामकली,मार्च,केदार,मेरी,वसंत,और मल्हार उनके प्रमुख लेखन हैं।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इनकी कृति और ख्याति का परिणाम था कि ईश्वर और प्रकृति का वास्ता देकर अपनी दैव्य शक्ति से गंगा को भी पास बुला लिया था। मन चंगा तो कठौती में गंगा कहावत जग प्रसिद्ध हो गया।
इनकी वाणी को अनूप जलोटा सहित कई गायकों ने स्वर देकर अमर करने का कार्य किया। इनकी वाणी मानव संदेश परक है इसलिए संत शिरोमणि रविदास आज भले ही न हों लेकिन उनके विचार और वाणी समाज में समरसता फैलाने का कार्य आज भी कर रहे हैं। जयंती पर इन्हें शत् शत् नमन है।
आलेख विभिन्न श्रोतों के अध्ययन पर आधारित तैयार की गई है। किन्हीं को सहमति-असहमति हो भी सकते हैं।
_सुरेश कुमार गौरव,शिक्षक,उ.म.वि.रसलपुर,पटना (बिहार)
No comments:
Post a Comment