समालोचनात्मक समीक्षा।
मूर्ति पूजा जो कि हमारे भारत वर्ष में पुराने समय से पूजा-पाठ की एक परंपरा के अनुसार चली आ रही है। मूर्ति पूजा जिसमें हम पुरातन परंपरा से चली आ रही देवी-देवताओं के बारे में जो कि हमारे धर्मग्रंथों में लिखा हुआ है,को मानकर हम पूजा-पाठ करते आ रहे हैं।हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार समय-समय पर ग्रह,नक्षत्र, काल,समय के अनुसार अपनी आत्म संतुष्टि तथा इच्छित वर प्राप्त करने की मंशा के साथ करते हैं।इसे जीवन में अपनी धार्मिक संतुष्टि का आधार मानकर करते हैं,जो कि प्रतिवर्ष लोग मनाते आ रहे हैं।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है जहाँ लोग अपनी इच्छा अनुसार धर्म को अपनाते हैं,उसका अनुकरण करते हैं तथा जीवन में आत्मसात करने की कोशिश करते हैं। जहाँ तक मूर्ति पूजा की बात है,वह प्राचीन काल से ही चली आ रही है जिसे हमलोग अपने इष्टदेव को रीझाने के लिये करते हैं।चूँकि जीवन में काम-काज के बाद लोगों को मनोरंजन की भी आवश्यकता होती है,जिसके लिये समय-समय पर लोग त्योहार का आनंद लेते हैं।इस मूर्ति पूजा में भी लोग साफ-सफाई,नेम-निष्ठा आदि का प्रयोग करते हुये अपने-अपने तरीके से मूर्ति की पूजा करते हैं,जो कि जीवन को आनंदित करता है।लेकिन आज के समय में इसमें लगातार तेज गति से परिवर्तन होता हुआ दिखाई देता है।प्रत्येक जगह में अलग-अलग तरीके से विधि-विधान के द्वारा मूर्ति की जाती है,लेकिन आज के दौर में बदलते हुये परिवेश में इसके साथ भयंकर छेड़छाड़ करने का दुस्साहस किया गया है,जहाँ पर माता के पूजा के समय ढोल-ढाक,घड़ी-घंट बजाये जाते थे,आज वहाँ डी•जे• के बजते हुये गानों ने ले लिया है।मूर्ति की पूजा के लिये पहले माता जी को आदर सत्कार एवं नेम-निष्ठा के साथ लाया जाता है,उसके बाद पूजा की अर्द्धरात्रि में उसकी प्राण प्रतिष्ठा करके उसका पूजा मंत्रोच्चारण तथा हवन करके की जाती है,साथ ही पूजा के दूसरे दिन उसके कलश को विसर्जित करने के बाद उसका ससमय विसर्जन किया जाना होता है।लेकिन आज के बदलते हुये परिवेश में लोग मूर्ति को किश्तों में बारी-बारी से ट्रैक्टर पर लाद कर डी•जे•मैं बजने वाले भौंडे गानों के धून पर अपने परिवार समाज की मर्यादा तथा मूर्ति के शील भंग किये जाने की बात को अनदेखी करके विसर्जन करने के लिये ले जाते हैं।
कुछ जगह तो आज भी लोग अपनी परंपरागत परंपरा का निर्वहन करते हुये मूर्ति के रथ के रस्से को खींचकर विसर्जन को ले जाते हैं,जहाँ पर विसर्जन के समय समाज के नर-नारी माता के भक्ति गीतों का आनंद लेती हुई उन्हें विसर्जित करने को ले जाती है।इसी तरह अलग-अलग जगह में अलग-अलग तरह की परंपरा भी देखी जाती है।
चूंकि किसी भी जगह पर, उसके सभ्यता,संस्कृति की अपनी अलग पहचान होती है,जिसे हमलोगों को अक्षुण्ण बनाये रखने का भी प्रयास करना चाहिए।इसके अलावे इस बात का ख्याल रखा जाना चाहिए कि जिस मूर्ति को हमलोगों ने श्रद्धा और भक्ति पूर्वक स्थापित किया है,उसकी शील-भंगता नहीं होनी चाहिए,जिससे हमारा धार्मिक,सांस्कृतिक तथा परंपरागत रीति-रिवाज अक्षुण्ण बनी रह सके।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद" शिक्षाविद,भलसुंधिया,गोड्डा
(झारखंड)।
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