🌹07 फरवरी को पूर्व से ही गुलाब दिवस घोषित किया हुआ है। हमसब गुलाब के फूलों को प्रेम प्रतीक के रुप में देखते व मानते हैं। बच्चों को तो गुलाब का प्रतीक और न जाने लेखकों कवियों ने इस गुलाब को लेकर कैसे-कैसे कथा वर्णन और काव्य रुपों में संजोये और रेखांकित किए हैं।
🌹गुलाब एक बहुवर्षीय, झाड़ीदार, कंटीला, पुष्पीय पौधा होता है जिसमें बहुत सुंदर सुगंधित फूल लगते व खिलते हैं। इसकी सैंकड़ों जातियां हैं जिनमें से अधिकांश एशियाई मूल की हैं जबकि कुछ जातियों के मूल प्रदेश यूरोप, उत्तरी अमेरिका तथा उत्तरी पश्चिमी अफ्रीका भी है जहां गुलाब के पौधे पाए जाते हैं।
🌹गुलाब का फूल कोमलता और सुंदरता के लिए जाना जाता है। छोटे बच्चों की उपमा लोग गुलाब के फूल से करते हैं।
गुलाब उगाने के लिए इसकी कलमी ही लगाई जाती है। इसके फूल कई रंगों के होते हैं, लाल, पीले, सफेद इत्यादि. सफेद फूल के गुलाब को सेवती कहते हैं। हरे और काले रंग के भी फूल होते हैं। ऋतु के अनुसार गुलाब के दो भेद भारतवर्ष में माने जाने हैं सदागुलाब और चैती। सदागुलाब प्रत्येक ऋतु में फूलता और चैती गुलाब केवल बसंत ऋतु में। चैती गुलाब में विशेष सुगंध होती है और वही इत्र और दवा के काम का समझ जाता है।
🌹गुलाब का इत्र बनाने के लिए गुलाबजल को एक छिछले बरतन में रखकर बरतन को गीली जमीन में गाड़कर रात भर खुले मैदान में पडा़ रहने देने से अगली सुबह सर्दी से गुलाबजल के ऊपर इत्र की बहुत पतली मलाई सी पड़ी मिलती है जिसे हाथ से काँछ लिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि गुलाब का इत्र नूरजहाँ ने १६१२ ईसवी में अपने विवाह के अवसर पर निकाला व इसे प्रयोग में लाया था।
🌹भारतवर्ष में गुलाब जंगली रूप में उगता है। कुछ लोग 'शतपत्री', 'पाटलि' आदि शब्दों को गुलाब का पर्याय मानते है। चौदहवीं शताब्दी में गुजरात में सत्तर प्रकार के गुलाब लगाए जाते थे। बाबर ने भी गुलाब लगाने की बात लिखी है। जहाँगीर ने तो लिखा है कि हिंदुस्तान में सब प्रकार के गुलाब होते है।
🌹 गुलाब के अनेक संस्कृत पर्याय है। अपनी रंगीन पंखुड़ियों के कारण गुलाब पाटल है, सदैव तरूण होने के कारण तरूणी, शत पत्रों के घिरे होने पर ‘शतपत्री’, कानों की आकृति से ‘कार्णिका’, सुन्दर केशर से युक्त होने ‘चारुकेशर’, लालिमा रंग के कारण ‘लाक्षा’ और गन्ध पूर्ण होने से गन्धाढ्य कहलाता है। फारसी में गुलाब कहा जाता है और अंग्रेजी में (Rose)रोज, बंगला में गोलाप, तामिल में इराशा और तेलुगु में गुलाबि है। अरबी में गुलाब ‘वर्दे’ अहमर है। सभी भाषाओं में यह लावण्य और रसात्मक है। शिव पुराण में गुलाब को "देव पुष्प" कहा गया है. ये रंग बिरंगे नाम गुलाब के वैविध्य गुणों के कारण इंगित करते हैं।
🌹हिन्दी के श्रृंगारी कवियों ने गुलाब को रसिक पुष्प के रूप में चित्रित किया है ‘फूल्यौ रहे गंवई गाँव में गुलाब’। कवि देव ने अपनी कविता में बालक बसन्त का स्वागत गुलाब द्वारा किए जाने का चित्रण किया है। कवि श्री निराला ने गुलाब को पूंजीवादी और शोषक के रूप में अंकित किया है। रामवृक्ष बेनीपुरी के अनुसार यह संस्कृति का प्रतीक है।
🌹असीरिया की शाहजादी पीले गुलाब से प्रेम करती थी और मुगल बेगम नूरजहाँ को लाल गुलाब अधिक प्रिय था। मुगलानी जेबुन्निसा अपनी फारसी शायरी में कहती है ‘मैं इतनी सुन्दर हूँ कि मेरे सौन्दर्य को देखकर गुवाब के रंग फीके पड़ जाते हैं।‘ रजवाडे़ गुलाब के बागीचे लगवाते थे।सीरिया के बादशाह गुलाबों का बाग स्थापित करते थे।
🌹भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं॰ जवाहर लाल नेहरू गुलाब को गुलाब बेहद प्रिय था यूरोप के दो देशों का राष्ट्रीय पुष्प सफेद गुलाब और दूसरे देश का राष्ट्रीय पुष्प लाल गुलाब थे
। दोनों देशों के बीच गुलाब युद्ध छिड़ गया था। इसके बावजूद यूरोप के कुछ देशों ने गुलाब को अपना राष्ट्रीय पुष्प घोषित किया है। राजस्थान की राजधानी जयपुर को गुलाबी नगर कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि गुलाब के इत्र का आविष्कार नूरजहाँ ने किया था।
🌹भारत में उत्तर प्रदेश के हाथरस, एटा, बलिया, कन्नौज, फर्रुखाबाद, कानपुर, गाजीपुर, राजस्थान के उदयपुर (हल्दीघाटी), चित्तौड़, जम्मू और कश्मीर में, हिमाचल इत्यादि राज्यों में गुलाब की खेती की जाती है।
🌹फूल के हाट में अथवा सामान्यत: बाजारों में गुलाब के गजरे खूब बिकते हैं.गुलाब की पंखुडियों और शक्कर से गुलकन्द बनाया जाता है। गुलाब जल और गुलाब इत्र के कुटीर उद्योग चलते है। उत्तर प्रदेश में कन्नौज, जौनपुर आदि में गुलाब के उत्पाद की उद्योगशाला चलती है। दक्षिण भारत में भी गुलाब के उत्पाद के उद्योग चलते हैं। दक्षिण भारत में गुलाब फूलों का खूब व्यापार होता है। मन्दिरों, मण्डपों, समारोहों, पूजा-स्थलों आदि स्थानों में गुलाब फूलों की भारी खपत होती है। यह अर्थिक लाभ का साधन है।
हम सब एक दूसरे को गुलाब की चमका देते हुए कहते हैं कि गुलाब की तरह सदैव खिलो और महको।सचमुच में गुलाब की महत्ता बहुत सारे हैं। हमें गुलाब रुपी पौधों की भांति इसकी सुंदरता,लाभ,प्रतीक आदि को लेकर हमेशा सजग रहने चाहिए।
सुरेश कुमार गौरव,
शिक्षक,उ.म.वि.रसलपुर,पटना (बिहार)
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