समय के कुचक्र में उलझता किशोरावस्था - श्री विमल कुमार 'विनोद' - Teachers of Bihar

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Sunday, 12 February 2023

समय के कुचक्र में उलझता किशोरावस्था - श्री विमल कुमार 'विनोद'


बाल विकास व मनोविज्ञान के अंतर्गत बच्चों के विकास की बात का उल्लेख कई चरणों में किया गया है जिसके अंतर्गत बच्चों का विकास कई अवस्था में जैसे शैशवावस्था ,पूर्व बाल्यावस्था ,उत्तर बाल्यावस्था ,किशोरावस्था इत्यादि में होता है ।इसमें से किशोरावस्था वैसी अवस्था है जब बच्चों का लैंगिक विकास सुप्तावस्था में रहता है यानि इसी अवस्था में बच्चे नैतिकता संबंधी बातों को सीखने का प्रयास करते हैं तथा बच्चों के नैतिक मूल्यों का भी अध्ययन किया जाता है ।

          एक अध्ययन के रूप में तथा बदलते हुए परिस्थितियों में आज की तुलना जब मैं अपने समय से ( जब मैं इसी उम्र में विद्यार्थी था )से करूँ तो लगेगा कि दोनों समय के विद्यार्थी के व्यवहार में एक बहुत बड़ा अंतर नजर आता है । इसका कारण चाहे बच्चों के विकास में रह गई कमी हो , नैतिकता संबंधी शिक्षा की कमी हो ,बदलते हुए परिवेश का प्रभाव हो , समाज में तेजी से फैल रही पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव या प्रदूषित होता हुआ सामाजिक परिवेश ।

          बच्चों में गुण दो प्रकार से आते हैं -पहला आनुवांशिकता से तथा दूसरा पर्यावरणीय परिवेश से , आज के संदर्भ में जब मैं विद्यालय में बच्चों का अधययन करता हूँ तो मुझे लगता है कि इन बच्चों के व्यवहार को किस प्रकार से अध्ययन करके सुधारने का प्रयास किया जाय जो कि आज समाज के लिए एक चुनौती पूर्ण कार्य के रूप में दिखाई देता है ।आखिर बच्चों की मानसिकता में इस तरह के असामान्य व्यवहार का होने के पीछे क्या कारण हो सकता है,क्या परिवार में माता पिता के द्वारा शीलगुणों का विकास करने का प्रयास नहीं किया गया या समाज के एक बड़े वर्ग के द्वारा बच्चों का मनो गतयात्मक विकास करने का प्रयास नहीं किया गया ,या तो शिक्षकों के द्वारा बच्चों का मानसिक,शैक्षणिक विकास करने में कमी कर दी गई ।क्योंकि बच्चों का विकास करने में माता-पिता,परिवार,समाज,शिक्षक सभी की बराबर भूमिका रहती है और अगर बच्चों का व्यवहार सामान्य से असामान्य की ओर अग्रसर हो रहा है तो इसके लिए हमारा शिक्षक वर्ग भी उतना ही उत्तरदायी है जितना कि उस बच्चे के माता पिता या समाज ।कहीं न कहीं शिक्षक वर्ग ने अपने बच्चे और विद्यालय के बच्चों को एक न समझने की भूल की होगी जिसका परिणाम पूरे समाज को भुगताना पड़ रहा है ।

        आज जब आप विद्यालय में प्रवेश करेंगे तो आपको बच्चों में जो अपने गुरु के प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिये उसमें कमी होती हुई नजर आयेगी और आपको भी अफसोस होगा कि आखिर किस तरह से इन बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन लाया जाए ,क्योंकि विद्यालय में शिक्षकों का उत्तदायित्व सिर्फ किताबों की लिखी हुई बातों को ही सिखाना नहीं बल्कि उसमें एक अच्छा व्यवहार पैदा करना भी है ।साथ ही आज के बदलते परिवेश ने बच्चे बच्चियों के रहन सहन तथा चाल चलन को भी प्रभावित किया है जो कि पूरे विद्यालय के परिवेश को प्रभावित करता है ।

      इसलिए एक इसलिये एक शिक्षक,पर्यावरणविद तथा मनोविश्लेषक के रूप में किशोरावस्था की स्थिति के इन बच्चों का अध्ययन कर इसके व्यवहार में सुधार लाने का प्रयास करने की कोशिश करता हूँ लेकिन सफलता भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ है ।साथ ही समाज के प्रबुद्ध नागरिकों तथा परिवार के लोगों से भी मेरा अनुरोध होगा कि बदलते हुए परिवेश में बच्चों के आचार विचार ,व्यवहार में परिवर्तन लाने का प्रयास करें ताकि किशोरों में सुन्दर गुणों का समावेश कराया जा सके तथा बच्चों के जीवन को सुन्दर,सुखमय तथा उज्वल बनाया जा सके ।


आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"भलसुंधिया,गोड्डा(झारखंड)।

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