जैव-विविधता के संकटापन्न के लिये उत्तरदायी-प्रदूषण"- श्री विमल कुमार विनोद - Teachers of Bihar

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Tuesday, 28 February 2023

जैव-विविधता के संकटापन्न के लिये उत्तरदायी-प्रदूषण"- श्री विमल कुमार विनोद

  पारिस्थितिकी तंत्र में बहुत सारे जीव-जंतु पाये जाते हैं,जिससे संपूर्ण परितंत्र संचालित होता है। पुरातन भारतीय ग्रंथों के अनुसार इस पृथ्वी पर लगभग 84 लाख योनियां पायी जाती है जिसमें मनुष्य को सभी योनियों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है।इसके अलावे इस पृथ्वी पर विद्यमान विभिन्न प्रकार के वनस्पतियों एवं जीव-जंतुओं के समुदाय को जैव विविधता की संज्ञा दी गई है, जो कि तीन कारकों से प्रभावित होती हैं-प्राकृतिक वास्य-स्थल, वनस्पतियों की विभिन्न प्रजातियों तथा जीव जन्तुओं का विभिन्न प्रजातीय समुदाय।

समस्त विश्व में जैव-समृद्ध प्राकृतिक वास्य-स्थलों को आज भी महत्व दिया जा रहा है क्योंकि जैव विविधता के लिये ये स्थल अमूल्य है।

    बीसवीं सदी के आते -आते अधिकांश पारिस्थितिकी-तंत्रों का अत्यधिक दोहन मानव के द्वारा किया जाने लगा।चूँकि जैव- विविधता अपने आप में एक  प्राकृतिक संसाधन है,इसलिए मानव अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए इसका अत्यधिक क्षरण करता गया।

एक आँकड़े के अनुसार प्रतिवर्ष करीब 12 से 22 हजार प्रजातियां नष्ट होती जा रही है।

  वर्तमान समय में जैव प्रजातियां संकटापन्न के दौर से गुजर रही है क्योंकि इनके वास्य-स्थलों को जैसे पर्वत,जंगल,समुद्र,नदी,झील झरना और तालाब आदि को मनुष्यों ने अपने हितों की पूर्ति के लिये लूटा है।आज पर्यावरण की स्थिति इतनी दयनीय हो गई है कि लोग तथा सरकार जंगलों को काटकर वन्य जीवों के वास्य स्थल को तबाह कर रहे हैं।सरकार द्वारा विकास के नाम पर पर्वतों को काटकर करके   अस्तित्व विहीन बनाया जा रहा है।

 बदनसीबी तो इस हद तक बढ़ गई है कि लोग अपने घरों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों को अपने घर के आसपास के गड्डों में फेंकने से जरा भी नहीं हिचकते हैं।

बड़ी दुर्भाग्य की बात है कि शहरों तथा नगरों में लोग अपने-अपने घरों के मल मूत्र तथा अवशिष्ट पदार्थ को नालों के द्वारा नदियों में बहाकर प्रदूषित करने में जरा सा भी नहीं सोचते हैं।गंगा,यमुना,दामोदर,गेरूआ,हरना,कझिया,सुन्दर इत्यादि नदियों के धारा तथा स्वच्छ जल को लोग घरों से निकलने वाले कचरे से भर देते हैं।

 पर्यावरण विज्ञान का मानना है कि प्रदूषण परागण तथा जनसंख्या दोनों को मारती है,इसलिये आज नदियों में पायी जाने वाली बहुत सी जीव-जंतु विलुप्तिकरण के कगार पर पहुँच गई है।

सभी प्राणियों को स्वतंत्र एवं स्वच्छंद रूप से जीने में अच्छा लगता है लेकिन मनुष्य अपने शोक को पूरा करने के लिये हाथी ,बंदर,भालू,शेर,सर्प,मगरमच्छ इत्यादि को पकड़ कर उसका प्रयोग अपने शौक तथा जीविकोपार्जन के लिये करता है,जो कि पारिस्थितिकी तंत्र को तबाही के शिखर पर पहुँचा देते हैं।

भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण जंगल को काटकर कृषि भूमि में परिवर्तित कर दिया गया।विशेषकर गंगा-यमुना-ब्रहपुत्र का क्षेत्र था,जो वृक्षविहीन हो गया।उसी प्रकार केदारनाथ के पास जंगलों को काटकर सड़क बना दिया गया। हाल में घटित सुनामी प्रकोपों से समुद्र तटीय क्षेत्रोंके वास्य-स्थलों का विघटन हो गया।

चूँकि किसी भी जीव के जीवित रहने के लिये वास्य स्थल तथा जैव सूचक उत्तरदायी होते हैं,जो कि इस बात को सूचित करता है कि कोई भी जीव का पलायन होने के क्या कारण है तथा जिस प्रकार से बताया गया है कि प्रदूषण के कारण ही जीव जंतु की मृत्यु हो जाती है,जैसे कि किसी तालाब में मल मूत्र तथा गंदे जल को प्रविष्ट करा दिया जाय तो निश्चित रूप से जल प्रदूषित हो जायेगा जिसके चलते उसमें वास करने वाले जीव जन्तु मर जायेंगे।

दूसरी बात यह है कि आप अपने घरों तथा कल कारखानों से निकलने वाली गंदगी युक्त जल को नदियों में प्रवाहित कर देगें तो निश्चित रूप से उस प्रदूषण का बुरा प्रभाव पड़ेगा।साथ ही जब नदी,तालाब,गड्डों में गंदगी रहेगी तो        कोरोना , मलेरिया,कालाज्वर,डेंगू जैसी भयानक जानलेवा बीमारी का शिकार मनुष्य होता ही रहेगा।

   वर्तमान समय में लोगों के द्वारा कृषि कार्य को करने के क्रम में रासायनिक कीटनाशकों जैसे थाइमाइट,फोलिडाल तथा अन्यखतरनाक कीटनाशकों को दिये जाने के कारण जमीन पर पाये जाने वाले केचुआ ,घोंघा,मांगुर तथा अन्य जैव प्रजातियों का विलुप्तीकरण होने के कारण पारिस्थितिकी तंत्र को अपूरणीय क्षति हुई है।पारिस्थितिकी तंत्र में केचुआ जो कि एक वर्ष में 2 से 80 टन मिट्टी निकालता है को किसान थाइमाइट जैसे कीटनाशक देकर मार डालता है।        

   आज मनुष्यों के द्वारा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने के कारण गिद्ध की प्रजाति लगभग समाप्त हो गई।साथ ही सर्प जो कि चूहा को खाता है कि प्रजाति समाप्त हो रही है। एक शोध के अनुसार प्रतिदिन करीब चार जैव प्रजातियों का विलुप्ति करण प्रतिदिन हो रहा है।

   आने वाले समय में यदि प्रकृति के हो रहे दोहन को न रोका जाएतो सिर्फ बालू से बने बड़े- बड़े महल और रूपये ही रहेंगे।इसकेअलावे सारे जीव- जंतु तथा अन्य जलीय जैव प्रजाति नष्ट हो जायेंगेअंत में,एक पर्यावरणविद होने केनाते विश्व समुदाय से अनुरोध है कि विकास के दौड़ में पर्यावरण

की सुरक्षा का भी ख्याल रखा जाय ताकि जैव विविधता को

संतुलित रखा जा सके।


आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"भलसुंधिया,गोड्डा(झारखंड)।

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