02 अक्टूबर जयंती विशेष- राकेश कुमार - Teachers of Bihar

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Monday, 2 October 2023

02 अक्टूबर जयंती विशेष- राकेश कुमार

 शांति के दूत महात्मा गांधी एवं सादगी के प्रतिमूर्ति लाल बहादुर शास्त्री 

             

               कोई बच्चा जब धरती पर आता है तो एक उम्मीद उसके साथ जुड़ जाती है और वो उम्मीद उसके परिवार से शुरू होकर समाज, समुदाय और राष्ट्र तक जा पहुंचती है इसलिए कहा गया है कि बच्चे राष्ट्र के भविष्य होते हैं, इसलिए बच्चे के आस-पास एक ऐसे माहौल का निर्माण किया जाता है कि वह नैतिक मूल्यों के साथ एक संवेदनशील व्यक्तिव के पहलू से रूबरू हो सके। बच्चों के जीवन पर उनके माता-पिता, समुदाय और शिक्षकों का जबरदस्त प्रभाव होता है इन सबों का जीवनशैली उसके व्यक्तिव पर सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार का प्रभाव डालता है। संघर्ष ,मुश्किलों से निबटना, समस्याओं का निराकरण करना अपने सभी कार्यों को स्वयं करना इन सभी आदतों का विकास बाल्यावस्था से ही शुरू होता है तो हम एक ऐसे बच्चे का निर्माण करते हैं जो देश के कर्णधार बन जाते हैं जो आगे चलकर शांति के दूत महात्मा गांधी एवं सादगी के प्रतिमूर्ति लाल बहादुर शास्त्री बन जाते हैं । इन दोनों की व्यक्तिव की विशालता के आगे शब्दों की संख्या भी कम पड़ जायेगी या कहें तो कुछ शब्दों में इनकी जीवनी को आलेख के रूप में व्यक्त नहीं किया जा सकता है,लेकिन जयंती पर इनसे जुड़ी बातों की चर्चा जरूरी है ताकि हमारी युवा पीढ़ी इनके जीवन से प्रेरणा ले सकें इस कड़ी में सबसे पहले शांति दूत महात्मा गांधी उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद्र गांधी था, जो ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत के दीवान थे। महात्मा गांधी का विवाह महज 13 साल की उम्र में कस्तूरबा गांधी के साथ हो गया था। विवाह के दो साल बाद गांधी जी के पिता का निधन हो गया और पिता की मृत्यु के ठीक एक साल बाद उनकी पहली संतान हुई, लेकिन दुर्भाग्यवश जन्म के कुछ समय बाद ही उसकी मृत्यु हो गई

हालांकि इन कठिन परिस्थितियों में भी गांधी जी ने हार नहीं मानी और 1887 में अहमदाबाद से हाई स्कूल की डिग्री प्राप्त की। तथा कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद साल 1888 में उन्होंने लंदन जाकर वकालत की पढ़ाई करने का निश्चय किया।


स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी का योगदान

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1915 में गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे और अपने गुरु गोपालकृष्ण गोखले के साथ इंडियन नेशनल कांग्रेस में शामिल हुए। इस दौरान भारत गुलामी की जंजीरों से जकड़ा हुआ था और किसी एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जो स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा दे सके। गोपालकृष्ण गोखले ने उन्हें देश की नब्ज को समझने का सुझाव दिया। गांधी जी ने देश के हालात को समझने के लिए भारत भ्रमण की योजना बनाई, जिससे देश की नब्ज को जान सकें और लोगों से जुड़ सकें। उन्होंने असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन का भी नेतृत्व किया था। देश की स्वतंत्रता में गांधी जी के योगदान को शब्दों में नहीं मापा जा सकता। उन्होंने अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर अंग्रेजो को भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया था।


सादगी के प्रतिमूर्ति लाल बहादुर शास्त्री 

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लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को मुग़लसराय, उत्तर प्रदेश में 'मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव' के यहाँ हुआ था। इनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे। अत: सब उन्हें 'मुंशी जी' ही कहते थे। बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में लिपिक (क्लर्क) की नौकरी कर ली थी। लालबहादुर की माँ का नाम 'रामदुलारी' था। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण बालक लालबहादुर को परिवार वाले प्यार से नन्हें कहकर ही बुलाया करते थे। जब नन्हें अठारह महीने का हुआ तब दुर्भाग्य से पिता का निधन हो गया। उसकी माँ रामदुलारी अपने पिता हजारीलाल के घर मिर्ज़ापुर चली गयीं। कुछ समय बाद उसके नाना भी नहीं रहे। बिना पिता के बालक नन्हें की परवरिश करने में उसके मौसा रघुनाथ प्रसाद ने उसकी माँ का बहुत सहयोग किया। ननिहाल में रहते हुए उसने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई। काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलते ही प्रबुद्ध बालक ने जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा के लिये हटा दिया और अपने नाम के आगे शास्त्री लगा लिया। इसके पश्चात् 'शास्त्री' शब्द 'लालबहादुर' के नाम का पर्याय ही बन गया।


सम्मान और पुरस्कार

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शास्त्रीजी को उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये पूरा भारत श्रद्धापूर्वक याद करता है। उन्हें वर्ष 1966 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

इन महापुरुषों के जयंती पर हम सभी का दायित्व बनता है कि इनके सपनों का भारत बनाने में अपना सहयोग प्रदान करें और इनके जीवन और जयंती को सार्थकता प्रदान करें।



आलेखकर्ता 

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राकेश कुमार [शारीरिक शिक्षक]

मध्य विद्यालय बलुआ 

मनेर [पटना]

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