राजा सगर को साठ हजार पुत्र थे।इनके पुत्रों ने कपिलमुनि के आश्रम में अपने घोड़ों को ले जाकर बांध दिया।उस समय कपिलमुनि ध्यान में लीन थे।राजा सगर के पुत्रों के द्वारा कपिलमुनि को चोर बनाये जाने की बात से वह क्रोधित हो गये और सगर मुनि के पुत्रों को शाप दे दिया,जिससे सभी भस्म हो गये।
इसके बाद सगर मुनि ने अपने वंश को वापस करने के लिये ब्रहा जी का ध्यान किया।ब्रह्मा जी ने राजा सगर को वरदान दिया कि तुम्हारे वंश में एक भगीरथ नामक राजा बनेगा जो कि तुम्हारे वंश का तारनहार होगा।
जब भगवान शिव ने नारद मुनि तथा
भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया तो इस संगीत के प्रभाव से विष्णु का पसीना निकलने लगा,जो ब्रह्मा ने उसे अपने कमंडल में भर लिया।इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ और वह ब्रह्मा के संरक्षण में रहने लगी।इसके बाद चूँकि इस पृथ्वी पर सगर राजा के साठ हजार शाप से भस्म हुये पुत्रों के उद्धार किये जाने की बात थी तो गंगा माता को इस पृथ्वी पर अवतरित किये जाने के लिये देवताओं ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना करनी शुरू कर दी।ऐसा माना जा रहा था कि गंगा जैसे ही स्वर्ग से धरती पर उतरती वह रसातल में चली जायेगी,इसलिए शिव जी की जटाओं में लपेटकर उसको पृथ्वी में अवतरित करना था।
गंगा के इस पृथ्वी पर अवतरित होने के संबंध में बहुत सारी मान्यतायें हैं, जिनमें अधिकांश मान्यतायें गंगा के पृथ्वी पर लाने के लिये भगीरथ तपस्वी को इसका श्रेय देती है,जो बहुसंख्यक मानस द्वारा स्वीकार किया गया है। भागीरथ के तप के बाद शिव जी ने इस पृथ्वी पर गंगा को लाने की बात स्वीकार की।
भागीरथ की कठोर तपस्या से आखिरकार भगवान ब्रह्मा जी प्रसन्नचित्त होकर गंगा को अवतरित होने के लिये वरदान दिये।इसके बाद भगवान विष्णु की कठोर तपस्या से खुश होकर भगवान विष्णु ने गंगा को कहा कि "मृत्यु लोक के कल्याण के लिये तुम्हें धरती पर जाना ही होगा"।इस पर गंगा बोली कि "पापियों के पाप को धोते-धोते मेरा जल अपवित्र हो जायेगा"।इस पर विष्णु जी बोले कि "जैसे ही कोई संत तुम्हारे जल को स्पर्श करेगा,तुम पुनः तुम पाप मुक्त हो जायेगी।"आखिरकार गंगा जी को
हिमालय पर्वत स्थित" बिन्दुसर" नामक जगह पर छोड़ दिया गया।यहाँ
से गंगा जी सात धाराओं में बंट गयी।पहली तीन धाराएं हवलादिनी,पावनी
और नलिनी पूर्व की ओर,अन्य तीन सुचक्षु,सिन्धु और सीता पश्चिम की ओर तथा आखिरी सातवीं धारा महाराज भागीरथ के पीछे-पीछे चली।
एक दिन गंगा जी चलते-चलते उस स्थान पर पहुँचती है जहाँ ऋषि जह्नु
यज्ञ कर रहे थे।गंगा जी बहते-बहते अंजान में उनके यज्ञ की सारी सामाग्री बहाकर रे जाती है।यह देखकर जह्नु ऋषि को बहुत क्रोध आ जाती है और वह गंगा के जल को पी जाते हैं।यह देखकर सभी ऋषि मुनि बहुत विस्मय में पड़ जाते हैं और गंगा जी को मुक्त करने के लिये जह्नु ऋषि से स्तुति एवं प्रार्थना करने लगते हैं।सभी देवतागण तथा ऋषि अपने आप में व्याकुल हो रहे हैं कि यदि गंगा पुनः नहीं बहेगी तो फिर राजा सगर के पुत्रों के जलाये गये शव के राख को गंगाजल में प्रवाहित कैसे किया जा सकेगा।इसके बाद ऋषि जह्नु प्रसन्न होते हैं पुनः विष्णु पुराण में वर्णित किये गये मान्यता के अनुसार जह्नु ऋषि अपने मुख से गंगा को प्रवाहित करती है,जिस दिन हमारे देश में गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है।यहीं से गंगा जी का पुनर्जन्म होता है।इसके बाद गंगा आगे बहती हुई जाकर राजा सगर के साठ हजार पुत्र के अंतिम संस्कार किये गये पुत्र के राख को अपने जल में समाहित कर लेती है।इससे राजा सगर के साठ हजार पुत्र स्वर्ग सिधार जाते हैं।
इस प्रकार ऋषि जह्नु के मुख से गंगा का पुनर्जन्म होने के कारण इसका नाम "जाह्नवी" पड़ा।
श्री विमल कुमार"विनोद"भलसुंधिया
गोड्डा(झारखंड)की लेखनी से।

No comments:
Post a Comment