आजकल के रईस घरानों के लड़के/ लड़कियां जो लाखों रूपए खर्च करके बाहर पढ़ाई करते हैं अगर सौभाग्य से नौकरी मिल जाती है तो मत पूछिए इतना गुरूर कि पत्थर चूरचूर हो जाए। फिर जब अपने गरीब रिश्तेदार को देखते हैं तो इग्नोर करते हैं अगर नजर मिल जाए तो औपचारिकता वश प्रणाम करने नजदीक आते हैं। प्रणाम वो इस कदर करते हैं कि ना सर ठीक से झुकता है ना कमर ।हाथ ना पैर तक पहुंचता है ना धरती पर बस हवा में रहता है। ऐसा लगता है कहीं प्रणाम करने से उसके हाथ गंदे ना हो जाए या वो अछूत ना हो जाए... हाय रे पढ़ाई,हाय रे गुमान।"संस्कार" किसी दुकान से खरीदी जाने वाली वस्तु नहीं। एक कहावत है -बच्चा मनुष्य का पिता होता है.. इसलिए हम जैसे रहेंगे हमारी संतान भी वैसी होगी। हां अपवाद वाली बात अलग है।रही बात विद्या कि तो शास्त्रों में है - विद्या ददाति विनयम,
विनयाद् याति पात्रताम, पात्रत्वात तदा धनमाप्नोति ।धनात् धर्मं तत: सुखम। अर्थात्
विद्या यानि ज्ञान हमें विनम्रता प्रादान करता है, विनम्रता से योग्यता आती है और योग्यता से हमें धन प्राप्त होता है जिससे हम धर्म का कार्य करते हैं और धर्म से हमें सुख मिलता है।
अब सवाल यह है कि लाखों रुपए खर्च करके हम क्या सीखते हैं? भौतिक विद्या पढ़कर काम, क्रोध,मोह, अहंकार, इर्ष्या का जन्म हमारे अन्दर होगा हीं। अध्यात्म विद्या से विनम्रता, शीलता, सदाचारिता का आभिर्भाव हमारे हृदय में होगा। रामचरित मानस में भी लिखा है -
प्रात काल उठिके रघुनाथा,
मातु पिता गुरु नावहिं माथा।
रोज सबेरे उठकर हम अपने माता-पिता और गुरु को प्रणाम करें जिस प्रकार भगवान श्रीराम करते थे। यहीं से आप सुसंस्कारित होंगे।जिनको गुरु मिल जाते हैं उनके जीवन का समस्त विकार गुरु कृपा से धीरे- धीरे दूर हो जाता है। जिन्होंने गुरु धारण किया वह सचमुच बड़े सौभाग्यशाली हैं।❤️♥️💐
स्वरचित:-
मनु कुमारी,
प्रखंड शिक्षिका,मध्य विद्यालय सुरीगांव,बायसी,पूर्णियां।
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