कुछ वर्षों पहले हमारे घर-आंगन में फुदकने वाली गौरैया आज विलुप्ति के कगार पर है। हम अपने रोजमर्रा के कार्यो में इतने व्यस्त है कि इनकी लगातार घटती हुई संख्या पर हमारा ध्यान भी नहीं गया। सोचिए कुछ ही वर्षो पूर्व हमारे आंगनों में गौरैया की संख्या कितनी हुआ करती थी और आज कितनी है और है भी या नहीं।
इस नन्हें से परिंदे को बचाने के लिए हम प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस के रूप में तो मनाते हैं। परंतु क्या केवल एक दिन काफी है इस नन्ही सी फुदकती रूठी चिरैया को फिर से मनाने के लिए?
पर्यावरण संरक्षण में गौरैया के महत्व व भूमिका के प्रति लोगों का ध्यान आकृष्ट करने तथा इस पक्षी के संरक्षण के प्रति जनजागरूकता उत्पन्न करने के इरादे से यह आयोजन किया जाता है। यह दिवस पहली बार वर्ष 2010 में मनाया गया था।
इस नन्ही चिरैया के विलुप्त होने का कारण हम जालिम इंसान ही हैं। हमने आज के फाइव जी वाले ज़माने में दुनिया को अपने मुट्ठी में तो कर लिया लेकिन मुट्ठी भर अनाज इस परिंदे के लिए न बिखेर पाएं। यहां तक कि खिड़की और रौशदान तक मे इनके लिए मुट्ठी भर स्थान तक छोड़ी हमनें। यही कारण है कि आज इस चिड़िया का अस्तित्व मात्र बच जाए यही सोच कर हम सब गौरैया दिवस मना रहे हैं। बदलते वक्त के साथ हमने अपने रहन सहन में परिवर्तन कर लिया। आज बड़ी बड़ी इमारतों ने कच्चे मकानों का स्थान ले लिया है। और इनकी बनावट ऐसी बिल्कुल नहीं कि गौरैया अपने लिए घोंसला पाएं। पहली बरसात के बाद जिस आंगन से सौंधी माटी की सुगंध आया करती थी आज वो आंगन भी विलुप्त है और जहां है वहा संगमरमर और टाइल्स बिछे हैं। एयरकंडीशनरों ने रोशनदान तो क्या खिड़कियां तक बन्द करवा दीं। तो फिर कहाँ रहे यह छुटकी?
गौरैया ग्रामीण परिवेश का प्रमुख पक्षी है, किन्तु गांवों में भी फसलों को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशकों के प्रयोग करने लगे है हम। और भूख मिटाने को जब ये पक्षी दाने चुगते है तो साक्षात मृत्यु से सामना होता है इनका। और इस कारण गांवों में भी गौरैया की संख्या में कमी हो रही है।
प्रकृति ने सभी वनस्पतियों और प्राणियों के लिए विशिष्ट भूमिका निर्धारित की है। इसलिए पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं को पूरा संरक्षण प्रदान किया जाए।
गौरैया के संरक्षण में हम इंसानों की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। आवास की छत, बरामदे अथवा किसी खुले स्थान पर बाजरा या टूटे चावल डालने व उथले पात्र में जल रखने पर गौरैया को भोजन व पीने का जल मिलने सिर्फ एक दिन नहीं हमें हर दिन जतन करना होगा गौरैया को बचाने के लिए।
गौरैया महज एक पक्षी नहीं है, ये हमारे जीवन का अभिन्न अंग भी रहा है। जब मैं छोटी थी तो घण्टो इन्हें पकड़ने के लिए इनके साथ व्यस्त रहती थी और ये भी पास आ कर ऐसे भाग जाती मानो आँख मिचौली खेल रही हो। परंतु आज के बच्चे इसे बस मोबाइल पर वीडियो में ही देख पाते है या फिर गाहे बगाहे कभी कभार ही साक्षात देख पाते हैं। हम अगर चाहे तो हमारे बच्चों को दुबारा यह सुख दे सकते है। बस इनके लिए हमें थोड़ी मेहनत रोज करनी होगी। हम बाजार से छोटे छोटे बने बनाए नेस्ट ला कर सुविधाजनक स्थानों पर लगा सकतें हैं। या फिर पुराने डिब्बों को भी काट कर घोसले का आकार दिया जा सकता है । छत पर किसी खुली छायादार जगह पर किसी बर्तन में इनके लिए चावल और पीने के लिए साफ पानी। खिड़कियों में लगे ग्रिल पर भी हम किसी बर्तन को अटका कर यह कार्य कर सकते हैं। क्योंकि आजकल खिड़कियों में मिरर ग्लास लगे होते है और पक्षियों का आकर्षण इनमें बहुत होता है इसलिए मैं ऐसा कर चुकी हूँ। और मेरे घर तो सुबह सुबह अलार्म के स्थान पर इन्ही के मीठे स्वर गूंजते है। अगर आप भी इस रूठी हुई छुटकी चिरैया को मनाना चाहतें है तो आज से ही यह सब करें।
जय हिंद 🇮🇳
निधि चौधरी, किशनगंज
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