बिहार कोकिला:विंध्यवासिनी देवी - हर्ष नारायण दास - Teachers of Bihar

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Thursday 7 March 2024

बिहार कोकिला:विंध्यवासिनी देवी - हर्ष नारायण दास

विंध्यवासिनी देवी का जन्म पाँच मार्च उन्नीस सौ बीस को उनके नाना बाबू चतुर्भुज सहाय के घर हुआ था।इनके पिता बाबू जगत बहादुर प्रसाद ब्रह्मपुर रोहतक(नेपाल)के रहने वाले थे।बचपन में घर वाले उन्हें बिंदा कहकर पुकारते थे।पढ़ने लिखने में उन्हें मन नहीं लगता था।नन्ही बिंदा ने नाना के साथ अयोध्या की यात्रा की।वहाँ बाबा गोमती दास को उन्होंने"जय जय गिरिबरराज किशोरी।

जय महेश-मुखचंद्र चकोरी।।

जय जय वदन षडानन दुति त्राता।

जगत जननि दामिनी दुति गाता।।गाकर सुनाया।

15 वर्ष की उम्र में सारण जिले के राई पट्टी (दिघवारा)निवासी सहदेवेश्वरचंद्र वर्मा के साथ उनका विवाह हुआ।वर्माजी पारसी थियेटर में अच्छे रंगकर्मी और हारमोनियम वादक थे। उन्होंने विंध्यवासिनी देवी को संगीत की शिक्षा भी दी1945 ईस्वी में पटना आई और आर्य कन्या विद्यालय में संगीत शिक्षिका के पद पर नियुक्त हुई।

पटना में आकाशवाणी केन्द्र की स्थापना के उद्घाटन समारोह में विंध्यवासिनी देवी के स्वरचित गीत -भइले पटना में रेडियो के शोर, बटन खोल द तनि सुन सखिया'' के साथ सम्पन्न हुआ। उनके गाये भोजपुरी लोकगीत सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि"मॉरीशस"फिजी जैसे देशों में गूँजते रहे।उनके गीत भावे ना मोहि अंगनवा, बिनु मोहनवां बादल गरजे ला, चमके बिजुरिया ता पर बहेला पवनवां।जैसे सावन झहरत बुंदिया वइसे झरेला मोर नयनवां, जाइ बसल मधुबनवां।कुब्जा सवत साजन बिलमावल, जाइ बसल मधुबनवां।अबले सखि!मोर मोर पिया ना अइले, बीतल मास सवनवां।

विंध्य कहे जिया धड़केला, सजनी कगवा बोलत अंगनवां।

विंध्यवासिनी देवी बहुमुखी प्रतिभा शाली लोकगायिका थी।उन्होंने सभी ऋतुओं, पर्व-त्यौहारों और संस्कारों से जुड़े परंपरागत गीत को तो अपना स्वर दिया ही है, मौलिक लोकगीतों की भी रचना की है।1962-63 में पहली मगही फ़िल्म"भइया'' के संगीत निर्देशक चित्रगुप्त के निर्देशन में उन्होंने अपना स्वर दिया।हरिमोहन झा लिखित मैथिली फ़िल्म "कन्यादान'' में गायन के साथ-साथ संगीत निर्देशन भी किया।रेणु के मैला आँचल पर बनी फिल्म"डागदर बाबू'' मेंभी उन्होंने स्वर दिया।भूपेन हजारिका के संगीत-निर्देशन में बनी फिल्मछठ मइया की महिमा में भी स्वर दिया है।विमाता फ़िल्म में"डोमकच''और झिझिया की लोक प्रस्तुति से उन्हें काफी ख्याति और प्रशंसा मिली।उन्होंने पटना में विंध्यकला मंदिर नाम की सांगीतिक संस्था की स्थापना की जहाँ छात्रों को संगीतकी शिक्षा दी जाती है।1983 में रामनवमी के दिन इन्होंने लोक रामायण का प्रणयन आरम्भ किया। ये गीत रामायण के सातों काण्डो पर आधारित हैं।उन्होंने लोकसंगीत सागर नामक एक ग्रन्थ की रचना की है जिसमें 15 हजार से अधिक लोक गीत हैं।बिहार राष्ट्रभाषा परिषद द्वारा प्रकाशित भोजपुरी, मगही और मैथिली के संस्कार गीतों की स्वरलिपि तैयार कर अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया है।उनकी एक और कृति ऋतुरंग भी उल्लेखनीय है।ऋतुरंग में भारत की छहों ऋतुओं की सुषमा, महत्ता और विशेषताओं को गीतबद्ध गया है।इसके अतिरिक्त समसामयिक विषयों पर आधारित मौलिक गीत रचकर सफल गीतकार होने का परिचय दिया है।उन्होंने वर्षामंगल, सामा-चकेवा,जट-जटिन, झिझिया, डोमकच,बखो-बखाइन, पवड़िया आदि का उल्लेख किया जा सकता है।1957 में संगीत-नाटक अकादमी द्वारा प्रथम बार नाटक प्रतियोगिता में सम्मिलित बेनीपुरी जी की प्रसिद्ध नाट्यकृति अम्बपाली का उन्होंने सफल निर्देशन किया था।आचार्य शिवपूजन सहाय द्वारा"लोकसंगीत आचार्या1974 में तथा भारत सरकार द्वारा"पद्मश्री''से सम्मानित किया गया।इसके अलावे पृथ्वीराज अवार्ड, बिहार रत्न,बिहार गौरव जैसी सम्मान उपाधियों के अतिरिक्त1954 में संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली के प्रथम राष्ट्रपति संगीत महोत्सव में स्वर्णपदक देकर इन्हें सम्मानित किया गया।

18 अप्रैल2006 को पटना के कंकड़बाग में86 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया।


प्रेषक-हर्ष नारायण दास

प्रधानाध्यापक

म०विद्यालय घीवहा

फारबिसगंज(अररिया)

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