चिंतित,खामोश मतदाता- श्री विमल कुमार"विनोद" - Teachers of Bihar

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Sunday 12 May 2024

चिंतित,खामोश मतदाता- श्री विमल कुमार"विनोद"


लोकतंत्र जिसे जनतंत्र भी कहा जाता है,जिसमें शासन की बागडोर जनता के हाथों में होती है,जहाँ जनता अपने 

सफल जीवन तथा भविष्य के लिये तथा शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिये योग्य,कर्मठ, शिक्षित,जुझारू उम्मीदवार को चुनती है।

आज के समय में सत्ता,शक्ति के खेल

में जहाँ पर मूल्य आधारित राजनीति

के जगह पर धन,बल,मूल्य विहीन राजनीति जिसको देखकर शायद लोकतंत्र के गुण कम बल्कि अवगुण 

ज्यादा अधिक दिखने लगे हैं।आज के समय में चुनाव की रणनीति तथा राजनीति मुख्य रूप से चुनावी घोषणा-पत्र पर नहीं बल्कि रूपये की रंगीन गड्डी पर आधारित हो गयी है, जिसने मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में मुख्य भूमिका निभाने का प्रयास किया है।

मामला चाहे जो हो या तो जन- प्रतिनिधि चुनाव जीतने के बाद पाँच 

वर्षों तक जनता को समस्या के घाट पर छोड़कर चला जाता हो या तो जन प्रतिनिधि का जनता के उपर से विश्वास उठता जाता हो या जनता के मन में  जन-प्रतिनिधि के लुटेरा होने की बात आती हो या चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को मतदाता पर भरोसा न हो।इन सारी बातों ने मतदान में नोटों के बंडल का खेल

खेलने में जबर्दस्त भूमिका निभाने की कोशिश की है।

चुनाव के दिनों में मंदिर-मस्जिद के  शुभचिंतक  जो कि कल तक समाज में धर्म,सांप्रदायिकता का विद्वेष बोते रहे आज उनके मन में जो मंदिर,

मस्जिद या अन्य चीजों के जीर्णोद्वार की बात सामने आ रही है,पुनः जनता को लूटने तथा उसके शोषण करने का एक जबर्दस्त खाका बुनने जा रही है।आज कोई प्रत्याशी  कोई मंदिर में धन प्रभु जी के नाम से दान करता है तो कोई सीमेंट,छड़,ईंट दान करता है तो ऐसे लोगों से हम मतदाताओं को संभलकर रहना चाहिए क्योंकि जो आपको देगा

दस रूपया तो जीतने के बाद आपसे दस हजार रूपये लूटने का ताना- बाना बून रहा है।इसलिए"लटकले रे बेटा तो गेले" वाली बात होगी।इसलिए एक राजनीति शास्त्र के शिक्षक,समीक्षक होने के नाते 

मेरी आम मतदाताओं से अनुरोध है कि आपको हर हालत में अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट देनी चाहिए,क्योंकि मुझे लगता है कि गरीबों का मसीहा,मंदिर मस्जिद का जीर्णोद्वार कर्ता सिर्फ और सिर्फ चुनाव के दिनों में ही पैदा लेता है,बाद बाकी दिन वह ढाक के तीन पात की तरह ही होते है।

आज का युग आर्थिक युग है जहाँ बाप बड़ा न भैया,सबसे बड़ा रूपया वाली बात है तथा चांदी का कटोरा सबों को अच्छा लगता है,ऐसी परिस्थित में यदि कोई जबर्दस्ती नोट देता हो तो न लेना भी उसके मन में अपने प्रति वैमनस्यता का भाव पैदा करता है।इसलिए राजनीति में वादे तो किये जाते हैं,निभाये नहीं जाते।

इस संबंध में मेरा इशारा कुछ और है,

लेकिन हर हाल में नोट,शराब और दलाली तथा लंबी-लंबी ख्याली पुलाव से हटकर ही मतदान करने की सोच विकसित करते हुये अपनी 

अंतरात्मा की आवाज पर सोच,

समझकर मतदान करें तथा आपका वोट किसी उच्च कोटि के राजनीतिज्ञ को मिले जो कि कल के भविष्य का निर्धारण कर सके कि ढेर सारी 

शुभकामनाओं के साथ आपका ही


श्री विमल कुमार"विनोद"भरसुंधिया

गोड्डा(झारखंड)।

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